Karnataka में "संकल्प पत्र' और "प्रजा ध्वनि' के बीच क्यों आए हनुमान जी?
कर्नाटक विधान सभा चुनाव में प्रजा ध्वनि और संकल्प पत्र की बात चली लेकिन उलझ कर रह गई हनुमान जी पर। आज पूरे कर्नाटक में सिर्फ हनुमान जी की चर्चा हो रही है। सत्ता पर काबिज होने की बात करने वाले नेता आज हनुमान जी पर आकर अटक गए हैं।
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आखिर वहां ऐसा क्यों रहा है? दरअसल कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र का नाम दिया है संकल्प पत्र, जबकि भाजपा ने अपने चुनावी घोषण पत्र का नाम प्रजा ध्वनि रखा है। दोनों पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा पत्रों के माध्यम से कर्नाटक की जनता से खूब लोकलुभावन वादे किए हैं। अब हनुमान जी के जरिए, एक खास समुदाय को टारगेट करने की कोशिश क्यों की जा रही है?
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में पॉपुलर फ्रंट आफ इण्डिया यानी पीएफआई और बजरंग दल जैसे संगठनों पर बैन लगाने की बात की है। दोनों पार्टियों के घोषणा पत्र की किसी बात पर कोई विवाद नहीं है, बस एक बात को छोड़कर, और वह है बजरंग दल। भाजपा ने कांग्रेस के बजरंग दल पर बैन वाली बात को पकड़ लिया है। अब तक देश के कम ही लोग जानते थे कि हनुमान जी का कर्नाटक से क्या सम्बन्ध है। लेकिन वहां की विधान सभा चुनाव ने बजरंग बली के सम्बन्ध को उजागर कर दिया है। उनके सम्बन्ध को उजागर करने में भले ही भाजपा का ज्यादा हाथ हो लेकिन उसका श्रेय कांग्रेस को भी जाता है।
बजरंग दल एक हिंदूवादी संगठन है, बल्कि कुछ लोग इसे हिन्दू कट्टरवादी संगठन भी कहते हैं। इसकी शुरुवात उत्तर प्रदेश से 8 अक्टूबर 1984 से हुई थी। इसके संस्थापक उस समय के तेज तरार हिन्दू नेता विनय कटियार थे। यह संगठन अपने स्लोगन या अपने मोटो सेवा ,सुरक्षा और संस्कृति के आधार पर काम करने की बात करता है। इस संगठन से जुड़े सदस्य अपने आपको सुव्यवस्थित, संस्कारी और बुद्धिजीवी होने का दावा करते हैं। दूसरी तरफ पॉपुलर फ्रंट आफ इण्डिया भी एक इस्लामिक कट्टरवादी संगठन है। इनके सदस्य भी अपने आपको कमोबेश वैसा ही बताते हैं जैसा कि बजरंग दल वाले अपने आपको बताते हैं।
हालांकि कुछ माह पहले एनआईए ने पीएफआई के कई ठिकानों पर छापेमारी की थी। दावा किया गया था कि इनके ऑफिसों से देशविरोधी गतिविधियां संचालित होतीं हैं। इस संगठन को फिलहाल बैन कर दिया गया है। यहां बता दें कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद यानि 1992 में बजरंग दल को भी बैन कर दिया गया था। उस समय देश में नरसिम्हा राव की सरकार थी। वह बैन एक साल के बाद हटा लिया गया था। बजरंग दल और पीएफआई को लेकर देश भर के लोगों की अलग-अलग राय है। आम तौर पर मुस्लिम समुदाय जहाँ पीएफआई को सही बताने का दावा करता है वहीं हिन्दू वर्ग के लोग बजरंग दल को सही बताते हैं।
इन दोनों संगठनों को लेकर देश भर के लोगों का अलग-अलग नजरिया है। पीएफआई पर जहाँ देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगता है, वहीँ बजरंग दल पर हिंसा फ़ैलाने का आरोप लगता रहता है। कोई भी संगठन किसी मूल उद्देश्य को लेकर बनाया जाता है, लेकिन धीरे- धीरे सभी संगठन अपने-अपने वसूलों और सिंद्धान्तों को शायद भूलने लगते हैं। वैसे भी हमारे देश में हिन्दू और मुस्लिम के नाम पर कुछ न कुछ बनाने की परम्परा पहले से ही रही है। गिनाने के लिए तो बहुत सी चीजें हैं, लेकिन दो ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान हैं जिन्हे देश ही नहीं दुनिया भर के लोग भी जानते होंगे। पहला बनारस का बीएचयू यानि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी है। उसकी स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1916 में की थी। लोगों को जानकार हैरानी होगी कि उस विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान ने उस समय एक लाख रूपये का दान दिया था, यह जानते हुए भी कि वह विश्वविद्यालय हिन्दू के नाम पर खुल रहा है।
बीएचयू के बाद 1920 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। उस समय के मुस्लिम विद्वान् सर सैयद अहमद खान ने उसकी स्थपना की थी। दोनों विश्वविद्यालय अलग-अलग धर्मों के नाम पर खुले लेकिन उनको लेकर कोई विवाद नहीं हुआ। आज भी दोनों विश्विद्यालय शिक्षा देने के मामले में उत्तम माने जाते हैं। धार्मिक मामलों को लेकर वहां ऐसा कोई हंगाम नहीं होता है जिसके बाद इनको बैन करने या उन पर धार्मिक उन्माद फैलाने का आरोप लगता हो। आज अगर बजरंग दल और पीएफआई को लेकर लोगों की राय अलग-अलग है तो निश्चित ही यह देश के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।
अब रही बात कर्नाटक में हनुमान जी एंट्री की। हनुमान जी को भगवान भी कहते हैं। वनवास के दौरान जहाँ-जहाँ राम, सीता और लक्ष्मण गए होंगे वहां हनुमान जी भी गए होंगे। देश के कई ऐसे हिस्से हैं, जहाँ हनुमान जी के होने की बात की जाती है। तुलसीदास जी ने खुद कहीं लिखा है,चित्रकूट के घाट पर, भई सन्तन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर। इस चौपाई के हिसाब से हनुमान जी चित्रकूट में भी रहे। हिन्दू विद्वानों का मानना है कि कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ हनुमान जी ना विराजते हों। ऐसे में जिस हनुमान जी को पूरा समाज नमन करता हो, उनके सामने सर नवाता हो, उस हनुमान जी को राजनीति में घसीटना शायद किसी को भी शोभा नहीं देता।
कांग्रेस ने बजरंग दल के सदस्यों की तुलना हनुमान जी से ना करने की बात कहकर कोई पाप नहीं किया है। बजरंग दल क्या ,हनुमान जी की तुलना तो किसी से हो ही नहीं सकती। ऐसे में अच्छा यही होता कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही कम से कम भगवान् हनुमान जी की मर्यादा , उनकी गरिमा और उनकी विश्वविख्यात महत्ता का ख्याल रखते हुए उन्हें राजनीति में ना घसीटें। वो अपनी-अपनी राजनैतिक दुकान चलाएं लेकिन उसमें कम से कम हनुमान जी को तो ना बेचें। चुनाव के बीच मे हनुमान जी को लाने का मतलब सब जानते हैं। वोटर अच्छी तरह जानता है कि हनुमान जी भक्ति कैसे होती है। फिर भी अगर किसी को लगता है कि हनुमान जी के सहारे उनकी नैया पार हो जाएगी तो भगवान उनका भला करे।
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