अरविंद केजरीवाल की रैली का यह है मतलब!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इस समय उत्साह से भरे हुए हैं। हालांकि अध्यादेश जारी होने बाद वो निराश भी हैं, क्योंकि सर्विसेज की पूरी कमांड अब एक बार फिर से दिल्ली के उपराजयपाल के हाथों में आ गई है । जब कि इस अध्यादेश के खिलाफ जारी उनकी मुहीम में विपक्ष के तमाम नेताओं का समर्थन भी मिलने लगा है।
![]() दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल |
इसी मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली करने की योजना बना ली है। उम्मीद की जा रही है कि उस रैली में एक लाख से भी ज्यादा भीड़ उमड़ सकती है। हालांकि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि उस रैली में विपक्ष के कौन-कौन से नेता शामिल होंगें।
यहाँ बता दें कि कुछ दिन पहले केंद्र की सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था जिसके बाद सर्विसेज का सारा अधिकार दिल्ली के उप राज्यपाल के हाथों आ गया था। हालांकि तक़रीबन एक माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बता दिया था कि दिल्ली में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है, लिहाजा सर्विसेज भी दिल्ली सरकार के अधीन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद दिल्ली सरकार बहुत खुश हुई थी। आम पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे को मिठाइयां खिलाकर खुशियां भी मनाईं थीं, लेकिन उन सबकी ख़ुशी उस समय गायब हो गईं थीं जब केंद्र की सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर दिया था।
उस अध्यादेश के जारी होने के बाद सारी शक्तियां एक बार फिर से दिल्ली के उपराज्यपाल के पास आ गईं थीं। अरविन्द केजरीवाल ने उस अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी नेताओं से मिलना शुरू कर दिया था। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ,उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ,एनसीपी प्रमुख शरद पवार ,उद्धव ठाकरे ,वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम् के स्टालिन से मुलाक़ात कर निवेदन किया था कि जब यह अध्यादेश राज्यसभा में पेश किया जाय तो सब लोग उसका विरोध करें। विपक्ष के तमाम नेताओं का उन्हें समर्थन भी मिला था।
अब अरविन्द केजरीवाल उस मुहीम को नेक्स्ट लेवल पर लेकर जाना चाहते हैं। इसी सोच के तहत उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली करने की योजना बना ली है। वो शायद इस रैली के जरिए देश की जनता, खासकर दिल्ली की जनता को यह बताने की कोशिश करेंगे कि जब दिल्ली सरकार के अधिकारी और कर्मचारी उनकी नहीं सुनेंगें तो वह जनता के हितों को लेकर कैसे काम कर पाएंगे। शायद वह यह भी बताने की कोशिश करेंगे कि जब अधिकारी उनकी नहीं सुनेगे तो वो दिल्ली में विकास कार्यों को समय पर कैसे करा पाएंगे। क्योंकि जो भी कार्य होंगे, उन सबकी फाइलें दिल्ली के उपराजयपाल से पारित करवानी पड़ेगी। हालांकि अरविन्द केजरीवाल की कोशिश यह भी है कि वो इसी बहाने विपक्षी एकता की डोर को भी मजबूत करते रहें।
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