सिविल लाइन्स की विवादित संपत्ति मामले में नया विवाद

Last Updated 06 Dec 2021 01:35:45 AM IST

सिविल लाइन्स में विवादित संपत्ति का ले आउट प्लान स्वीकृत करने की कवायद में नया विवाद शुरू हो गया है।


सिविल लाइन्स की विवादित संपत्ति मामले में नया विवाद

आरोप है कि आवेदन में जानबूझकर गलत जानकारी पेश की गई है। इतना ही नहीं नगर नियोजन विभाग ने भी उपलब्ध तथ्यों को नजर अंदाज कर स्थाई समिति को गुमराह करने की कोशिश की है। बावजूद इसके निगमायुक्त ने इस सवाल पर चुप्पी साध ली है कि झूठा शपथ पत्र दाखिल करने वाले आवेदक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी ?
गौरतलब है कि बीते सप्ताह स्थाई समिति में उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त ने अंडर हिल रोड की संपत्ति संख्या दो का ले आउट प्लान स्वीकृत करने के लिए प्रस्ताव पेश किया था। आरोप है कि प्रस्ताव में आवेदक ही नहीं, बल्कि निगम अधिकारियों ने भी दावा किया कि यह भूखंड विभाजित नहीं है और इसका भू उपयोग रिहायशी है। जबकि खुद पेश प्रस्ताव में स्पष्ट तौर पर जानकारी दी गई कि यहां पहले एक होटल मौजूद था।
इतना ही नहीं यह भी नहीं बताया कि इस संपत्ति को मार्च 1987 में दिल्ली सरकार ने अधिग्रहीत करने के लिए अधिसूचना जारी की थी, जिसके खिलाफ संपत्ति के एक भाग की मालिक शकुंतला गुप्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया था। 07 अगस्त 2009 को न्यायमूर्ति मुकुल मुल और नीरज कृष्ण कौल की दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले में सरकार की अधिसूचना को खारिज कर शकुंतला गुप्ता के हक में फैसला सुनाया था। इससे साफ हो जाता है कि इस संपत्ति के एक हिस्से की मालकिन शकुंतला गुप्ता भी थी और यह एक विभाजित संपत्ति है। मास्टर प्लान के तहत विभाजित संपत्ति का ले आउट प्लान स्वीकृत नहीं हो सकता। लेकिन स्थाई समिति में पेश प्रस्ताव में संपत्ति के स्वामियों के संदर्भ में किए गए उल्लेख में शकुंतला गुप्ता का कहीं हवाला ही नहीं दिया गया है। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार के भूमि एवं संपदा विभाग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जिस खसरा नंबर के आधार पर भूमि के स्वामित्व के दस्तावेज पेश किए गए हैं, वह खसरा मौजूदा संपत्ति से तीन-चार किलोमीटर दूर है। इतना ही नहीं, भूमि की खरीद-फरोख्त पंजीकृत करने वाले सब रजिस्ट्रार ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पेश साक्ष्यों के विपरीत यह संपत्ति उनके दस्तावेजों में मौजूद ही नहीं है।

ऐसे में निगम अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। शायद यही वजह है कि निगमायुक्त संजय गोयल ने इस बारे में पूछे गए सवालों से यह कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया कि उन्हें मामले की पूरी जानकारी नहीं है। सामने आई जानकारी सत्यापन के लिए मुख्य नगर नियोजक को भेज दी गई है। हालांकि निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि इस मामले में आवेदक के खिलाफ झूठा शपथ पत्र देने का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। क्योंकि उसने केवल गलत जानकारी ही नहीं दी, बल्कि निगम को गुमराह करने का प्रयास भी किया है। निगमायुक्त से जब पूछा गया कि उच्च न्यायालय के आदेश से यह स्पष्ट हो चुका है कि शकुंतला गुप्ता इस संपत्ति की स्वामी थी और आवेदक ने संपत्ति के पूर्व स्वामियों की सूची में उनका उल्लेख नहीं करके निगम को गुमराह किया है। ऐसे में निगम आवेदक के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगा?  तो उन्होंने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।

सहारा न्यूज ब्यूरो/ सुबोध जैन
नई दिल्ली


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