प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की दिल्ली सरकार को फटकार, कहा- हफ्ते भर के लिए वर्क फ्रॉम होम पर करें विचार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजधानी में वायु प्रदूषण के संबंध में बहाने बनाने के लिए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों से कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम की व्यवहार्यता की जांच करने को कहा और राज्यों से यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि 1-2 सप्ताह तक पराली न जलाई जाए।
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मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्य कांत की पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा से कहा, "दिल्ली सरकार राजधानी में वायु प्रदूषण के लिए एक प्रमुख योगदान कारक के रूप में किसानों पर पराली जलाने का आरोप लगाना चाहती है। जबकि यह यहां प्रदूषण का एक महत्वहीन स्रोत है।"
पीठ ने केंद्र के हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि पराली जलाने से सर्दियों में वायु प्रदूषण में केवल चार प्रतिशत का योगदान होता है।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "वर्तमान में, बड़ी मात्रा में पराली जलाई जा रही है। हम राज्यों से कह रहे हैं कि 1-2 सप्ताह तक पराली न जलाई जाए।"
पीठ ने कहा कि हम भारत सरकार, एनसीआर से जुड़े राज्यों को कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम शुरू करने की प्रक्रिया की जांच करने का निर्देश देते हैं। पीठ ने केंद्र और राज्यों से यह भी कहा कि कर्मचारियों के लिए घर से काम करने पर भी विचार किया जाए।
मेहता ने प्रस्तुत किया कि हरियाणा सरकार ने वर्क फ्रॉम होम को लागू करने के लिए कुछ कदम उठाए और उन्होंने कूड़ा-कचरा जलाना भी बंद कर दिया है।
दिल्ली-एनसीआर में हवा जहरीली होती जा रही है और वायु प्रदूषण की वजह से लोगों का जीना मुहाल हो गया है। दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आपात बैठक बुलाने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए निर्माण, गैर-जरूरी परिवहन, बिजली संयंत्रों को रोकने और घर से काम (वर्क फ्रॉम होम) लागू करने जैसे मुद्दों पर मंगलवार तक एक इमरजेंसी बैठक बुलाने का निर्देश दिया है।
शीर्ष अदालत ने पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा के मुख्य सचिवों को केंद्र द्वारा निर्धारित मंगलवार की आपात बैठक के लिए उपस्थित रहने को कहा।
केंद्र के हलफनामे के अनुसार, पराली जलाने से राजधानी में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर नहीं होता है, बल्कि पीएम 2.5 और पीएम 10 में केवल 11 प्रतिशत का योगदान होता है।
पीठ ने मेहरा से पूछा, "सड़कों की सफाई के लिए आपके पास कितनी मशीनें हैं?"
जैसे ही मेहरा ने इसके बारे में बताना शुरू किया, न्यायमूर्ति कांत ने कहा, "इस तरह के कमजोर बहाने हमें उस राजस्व का ऑडिट करने के लिए मजबूर करेंगे जो आप कमा रहे हैं और लोकप्रियता के नारों पर खर्च कर रहे हैं।"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने मेहरा से कहा, "हम कुछ सकारात्मक कदम चाहते हैं..आप मशीनों की संख्या कैसे बढ़ाएंगे."
पीठ ने मेहरा से कहा कि वह नगर निगमों पर बोझ न डालें, और दिल्ली सरकार से वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर स्पष्ट जवाब मांगा।
मेहरा ने सड़क की सफाई की दिशा में किए गए उपायों पर कहा कि नगर निगमों को इसका विवरण देने के लिए एक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा जा सकता है। निर्देश मिलने के बाद मेहरा ने पीठ को बताया कि 69 मशीनें (मैकेनिकल रोड स्वीपर मशीन) हैं और कहा कि सरकार वायु प्रदूषण को रोकने के लिए युद्धस्तर पर काम करेगी।
शीर्ष अदालत एक नाबालिग आदित्य दुबे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पराली जलाने के मामले पर निर्देश देने की मांग की गई थी, जिससे राजधानी में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
सूप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों से 24 घंटे के भीतर एक कार्य योजना मांगी है, जिसमें वाहनों के यातायात, निर्माण कार्य, पराली जलाने, भारी वाहनों का प्रवेश, धूल, बिजली संयंत्रों से होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए टास्क फोर्स द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण देने को कहा गया है।
मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से पेश वकील से कहा, "कल शाम तक एक एक्शन प्लान की आवश्यकता है। इसके लिए एक बैठक करें।"
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों से लोगों को घर से काम करने की अनुमति देने को भी कहा।
पीठ में न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्य कांत भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि पराली जलाने से राजधानी में वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर नहीं होता है, बल्कि कृषि अपशिष्ट सामग्री को जलाने से पीएम 2.5 और पीएम 10 में केवल 11 प्रतिशत का योगदान होता है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए तत्काल उपाय करने के लिए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकारों की मंगलवार को एक आपात बैठक बुलाए।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकारों से कहा कि वे किसानों के खिलाफ कार्रवाई न करें, बल्कि उन्हें पराली जलाने से रोकने के लिए राजी करें।
पीठ ने कहा, "किसानों के खिलाफ कार्रवाई न करें, उन्हें मनाएं।" पीठ ने जोर देकर कहा कि वाहनों के प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण और धूल नियंत्रण उपायों पर कार्रवाई की आवश्यकता है, जो वायु प्रदूषण में लगभग 76 प्रतिशत योगदान देता है।
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह स्थानीय उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए पूर्ण लॉकडाउन जैसे कदम उठाने के लिए तैयार है, जिससे राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी, लेकिन साथ ही कहा कि इसका सीमित प्रभाव ही होगा।
एक हलफनामे में, दिल्ली सरकार ने कहा, "जीएनसीटीडी स्थानीय उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए पूर्ण लॉकडाउन जैसे कदम उठाने के लिए तैयार है। हालांकि, ऐसा कदम सार्थक होगा यदि इसे पड़ोसी राज्यों में एनसीआर क्षेत्रों में लागू किया जाता है। दिल्ली के कॉम्पैक्ट आकार को देखते हुए, लॉकडाउन का वायु गुणवत्ता व्यवस्था पर सीमित प्रभाव पड़ेगा।"
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