जेएनयू की प्रवेश नीति बरकरार रखने के आदेश पर रोक
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को एकल पीठ द्वारा दिए गए उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एम.फिल और पीएचडी पाठ्यक्रमों में छात्रों की संख्या सीमित रखने की यूजीसी की अधिसूचना के अनुसार जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की प्रवेश नीति को बरकरार रखने के लिए कहा गया था.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (फाइल फोटो) |
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायाधीश अनु मल्होत्रा वाली खंडपीठ ने जेएनयू के विद्यार्थियों की ओर से दायर याचिका पर एक अंतरिम आदेश के तहत अगली सुनवाई यानी 28 अप्रैल तक एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगा दी है.
अदालत ने कहा, "अदालत सुनवाई की अगली तारीख तक एकल पीठ के फैसले पर रोक का निर्देश देती है."
कुछ विद्यार्थियों ने न्यायाधीश वी. के. राव द्वारा 16 मार्च को दिए उस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने यह कहते हुए जेएनयू के विद्यार्थियों को कोई राहत देने से इंकार कर दिया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियम जेनयू के लिए भी मान्य और बाध्यकारी हैं.
विद्यार्थियों का कहना है कि यूजीसी की पांच मई, 2016 की अधिसूचना से उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा क्योंकि इस अधिसूचना के कारण उन्हें शोध कार्य के लिए प्राध्यापक नहीं मिल पाएंगे.
वहीं, जेएनयू प्रशासन ने उच्च न्यायालय से कहा कि यूजीसी की अधिसूचना उनके लिए बाध्यकारी है और देश के सभी 43 केंद्रीय विश्वविद्यालय इसका पालन कर रहे हैं.
जेएनयू प्रशासन ने कहा था कि अगर वह यूजीसी के नियमों का पालन नहीं करेगा तो न ही उसे अनुदान मिलेगा और न ही वह डिग्रियां दे पाएगा.
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