साल भर में 841 मृतकों से स्वैच्छिक अंगदान से दिख रहे जागरूकता के संकेत

Last Updated 23 Aug 2014 10:23:59 AM IST

स्वैच्छिक अंगदान को बढ़ावा देने के लिए एम्स-जेपीएन एपेक्स ट्रामा सेंटर में स्थापित ‘सेपरेट काउंसिलिंग सेल’ (एससीएस) की शुरुआत अब रंग लाने लगी है.


गुर्दा

वर्ष 2013 में कुल 841 ब्रेनडेड व्यक्तियों के रिश्तेदारों ने अंगदान करने की अनुमति दी. दान के रूप में मिले इन अंगों से कुल 1230 बीमारों का जीवन बचाया गया.

इनमें 145 बच्चे, 265 महिलाएं और 830 पुरुष रोगी शामिल हैं. इसकी शुरुआत 2 जनवरी 2011 में की गई थी.

निरंतर लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित किया जा रहा है. अंगदान के लिए राजी होने वालों में कार्निया, खराब गुर्दे व अन्य प्रकार के टिश्युओं का प्रत्यारोपण किया जाना भी शामिल है.

इसके अलावा दान के रूप में मिले अंगों में से 203 लोगों को अस्थि के टुकड़े, त्वचा व उत्तक प्रत्यारोपित किए गए विशेषज्ञों के अनुसार अंग दान करने का सुनहरा अवसर होता है व्यक्ति की मृत्यु के 12 घंटे के अंदर उसके रिश्तेदार मृतक के जिंदा अंगदान करने की अनुमति दे दें. तभी उसके जिंदा अंग को निकाला जा सकता है.

इसके बाद उसे अंग बैंक में रखा जाता है फिर उसे जरूरत मंदों में रक्त समूह मिलान के बाद प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.

रिट्रोस्पेक्टिव रिव्यू ऑफ डेथ सेंटर एंड नेशनल आई बैंक से प्राप्त रिकार्ड के अनुसार दिसम्बर 2013 तक कुल 54,234 लोगों को अंगदान के लिए पंजीकृत किया गया.

इन लोगों की काउंसलिंग भी की गई और उन्हें मृत्यु के बाद स्वैच्छिक अंगदान के लिए प्रेरित किया गया. इसके तहत 20 हजार लोगों ने अपने आंखों की कार्निया,यकृत, गुर्दा दान करने वाले शपथ पत्र पर स्वहस्ताक्षर किए.

इसमें 60 फीसद वे लोग शामिल थे जिनका कोई न कोई रिश्तेदार दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद यहां लाया गया और उसकी कुछ समय उपचार के बाद ही मृत्यु हो गई. ऐसी दुख की घड़ी में सेपरेट काउंसिलरों ने महती भूमिका अदा की और 8,907 मृतकों के रिश्तेदारों ने अपने समेत उसके जिंदा अंगों को दान करने में दिलचस्पी दिखाई.

दुर्घटना में ब्रेन डेथ व आकस्मिक मृत्यु के बाद यदि मृतक के परिजन उसके जिंदा अंग को दान करने की अनुमति निर्धारित समय में कर देते हैं तो उसके लिए दिल्ली के पोस्टमार्टम हाउस में विशेष आब्जरवेशन एवं आर्गन प्र्जिव विंग विकसित किया गया है.

निकाले गए जिंदा अंगों को एम्स में बने आर्गन रिट्राइवल आर्गनाइजेशन बैंक में संरक्षित कर रख दिया जाता है. बाद में इन्हें ऐसे ही अंगों के प्रत्यारोपण कराने की बाट जोह रहे रोगियों में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.

एम्स के निदेशक एवं सेंटर में ओरबो के संयोजक डा. एमसी मिश्रा ने कहा कि कार्निया की ही बात की जाए तो देश में हर साल दो लाख लोगों को जरूरत होती है. लेकिन कार्निया मुश्किल से 20 हजार तक ही दान के रूप में मिल पाती है.

यानी की एक लाख 80 हजार नेत्र रोगियों को कार्निया दान के रूप में न मिल पाने के चलते वे ताउम्र अंधता का जीवन व्यतीत करने को विवश हैं. वर्ष 2012 में 641 ब्रेनडेड से स्वैच्छिक दान के रूप में मिले थे अंग, 920 रोगियों को मिला था जीवनदान एम्स जेपीएन एपेक्स सेंटर के विशेषज्ञों ने किया यह कमाल स्वैच्छिक अंगदान देने के प्रति बढ़ रही है रुचि परिजनों को जागरूक करने को विशेष काउंसलिंग सेपरेट काउंसिलिंग सेल में 12 विशेषज्ञों को लगाया गया है जो विभिन्न पालियों में इमरजेंसी में अपनी सेवाएं देते हैं.

जब यहां पर दुर्घटनाग्रस्तों को लाया जाता है, रोगी को तो तुरंत उसकी गंभीरता के मुताबिक इलाज प्रारंभ कर दिया जाता है जबकि उसके साथ आने वाले रिश्तेदार से किसी भी अप्रिय घटना के मद्देनजर एक फार्म भराया जाता है.

उन्हें यह बताया जाता है कि यदि जाने अनजाने में रोगी की मृत्यु हो गई तो क्या उसके जिंदा अंगों को दान करेंगे. साथ ही उसे भी इस फार्म को भविष्य का हवाला देकर भरवाया जाता है.

 

 



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