शिबू के स्थानीय नीति में बदलाव के बयान से झारखंड में मचा घमासान

Last Updated 16 Jan 2020 03:36:40 PM IST

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के राज्य की स्थानीय नीति में बदलाव किए जाने के बयान देकर झारखंड में राजनीतिक सरगर्मी एक बार फिर बढ़ा दी है।


सोरेन ने बुधवार को दुमका में खिजुरिया स्थित आवास पर संवाददाताओं से बातचीत में कहा था कि राज्य सरकार झारखंड के आदिवासी और मूलवासियों को उनका वाजिब हक और अधिकार दिलाने के लिए स्थानीय नीति में बदलाव करेंगी तथा अपने चुनावी घोषणा पत्र के आलोक में सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता के लिये 1932 के आसपास हुए अंतिम सर्वे में दर्ज खतियानी रैयतों का लाभ मुहैया कराने का प्रावधान करेगी।

 झामुमो अध्यक्ष ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा स्थानीय नीति में वर्ष 1985 तक की तिथि निर्धारित किये जाने को गलत करार देते हुए कहा कि स्थानीय नीति में 1985 का कट ऑफ डेट निर्धारित किये जाने से झारखंड के मूलवासी-आदिवासी को उनके हक और अधिकार से वंचित कर दिया गया है। उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा कि राज्य में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी महागठबंधन की नई सरकार1932 कट ऑफ डेट लागू करेगी।

सोरेन के इस बयान का विपक्षी भाजपा ने जबरदस्त विरोध किया है। गोड्डा से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर कहा, ‘‘हमारे संथालपरगना में संथाल 1810 के आस-पास आए। यहां के मूल आदिवासी पहाडिया, घटवाल, खेतौरी एवं कुडमी हैं। उन्होंने कहा कि बाद में आने के कारण लगभग 50 प्रतिशत संथाल आदिवासियों के पास कोई खतिहान नहीं है।’’

दुबे ने कहा कि पूरे झारखंड में लगभग 55 लाख मुसलमान हैं और उनमें से लगभग 35 लाख लोगों के पास खतिहान नहीं है क्योंकि ज्यादातर बंगलादेश या अन्य राज्यों से आए हुए हैं। उन्होंने कहा कि पूरा जमशेदपुर शहर टाटा का होगा, पूरा धनबाद, बोकारो, हजारीबाग एवं रांची, देवघर, दुमका शहर वीरान हो जाएगा।

सांसद ने कहा, ‘‘मैं गुरूजी का सम्मान करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कंग्रेस और मूलवासी की बात करने वाले झारखंड के सभी नेताओं को चुनौती देता हूं कि यदि उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं है तो वर्ष 1932 कट ऑफ डेट के खतिहान का प्रावधान एक महीने के भीतर लागू करें। हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।’’

वहीं, वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव से पूर्व झामुमो छोड़ भाजपा में शामिल हुए बेहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल षाडंगी ने सोरेन के बयान के विरोध में माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर ट्वीट किया, ‘‘विपक्ष के जो साथी इससे सहमत हैं कि राज्य के मानव संसाधनों के लिए बनी संभावनाएं खतियान के आधार पर परिभाषित स्थानीय नीति से सुरक्षित रहेंगी तो फिर देश की संभावनाओं को गैरकानूनी ढंग से आए घुसपैठियों से बचाने के लिए बने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर भी उनका यह अप्रासंगिक विरोध क्यों।’’

गौरतलब है कि तत्कालीन रघुवर दास सरकार ने वर्ष 2016 में मंत्रीमंडल की बैठक में झारखंड की स्थानीय नीति के लिए कट ऑफ डेट 1985 निर्धारित करने से संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। वहीं, स्थानीय नीति को लेकर ही वर्ष 2002 में झारखंड में जमकर विरोध हुआ था और राज्य के पहले मुख्य्मंत्री बाबूलाल मरांडी को अपना पद छोड़ना पड़ा था।

स्थानीयता के मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा अगस्त 2013 में दिये गये बयान पर सरकार में शामिल सहयोगी दल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने सवाल उठाए थे। सोरेन ने कहा था कि जिनका नाम खतियान में है, वही असली झारखंडी हैं। झारखंड के बड़े हिस्से में सव्रे के बाद 1932 में खतियान बना था इसलिए 81 साल पहले जिन लोगों के नाम खतियान में थे, वही झारखंडी होंगे। लेकिन वर्ष 2019 में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की नयी सरकार आने के बाद इस कट ऑफ डेट को निरस्त कर वर्ष 1932 के खातियानी रैयत को आधार मान कर स्थानीयता को परिभाषित करने का मन बनाया है।

 

वार्ता
दुमका/रांची


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment