बिहार में जाति आधारित जनगणना के बाद अब सबसे मजबूत हो जाएंगे तेजस्वी यादव !
बिहार में हुई जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक मिसाल कायम कर दी है,जबकि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की बाँछें खिल गई हैं।
![]() Tejashwi yadav |
इस रिपोर्ट से एक बात साफ हो गई है कि पूरे बिहार में यादव बिरादरी की संख्या सबसे ज्यादा है, हालांकि अप्रत्यक्ष रूप से अब तक यही माना जा रहा था कि यादव बिरादरी की संख्या वहां अधिक है,लेकिन उसका कोई वैधानिक प्रमाण नहीं था। अब इस रिपोर्ट के बाद वैधानिक रूप से यह स्पष्ट हो गया है कि बिहार में 14% आबादी यादव बिरादरी की है, जो सबसे ज्यादा है।
ऐसे में अब हर चुनाव में तेजस्वी यादव का ना सिर्फ कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ेगा, बल्कि अन्य दलों के नेता भी उन्हें कमजोर समझने की गलती नहीं करेंगे। अब बिहार देश का पहला ऐसा प्रदेश बन गया है, जिसने जातिगत जनगणना कराकर रिपोर्ट भी सार्वजनिक कर दी है। ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगामी लोकसभा चुनाव से पहले एक ऐसा दांव खेल दिया है, जो शायद लोकसभा चुनाव में अन्य मुद्दों के साथ यह भी एक बड़ा मुद्दा बनेगा। उधर नीतीश कुमार की इस रिपोर्ट के बाद बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी, भाजपा में खलबली मची हुई है।
किसी न किसी बहाने से भाजपा इस सर्वे रिपोर्ट में खोट निकालने की कोशिश कर रही है। जबकि जाति आधारित जनगणना करने को लेकर जब बिहार की तत्कालीन सरकार ने 2019-20 में विधान सभा में प्रस्ताव पारित किया था, तो उसका समर्थन बीजेपी ने भी किया था। तब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हुआ करते थे। आज इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के बाद बीजेपी के नेताओं का कहना है कि रिपोर्ट में कुछ त्रुटियां हैं। कुछ नेताओं ने यहां तक आरोप लगाया है कि सवर्ण जातियों की जनसंख्या ठीक से नहीं दर्शाई गई है।
ऐसे आरोप लगाने वाले नेताओं का कहना है कि 2022 में विकिपीडिया ने बिहार में सवर्ण जातियों की जनसंख्या 22% के आसपास बताई थी। जबकि इस बार घटकर वह लगभग 15% हो गई है। बिहार में सबसे ज्यादा आबादी अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों की है। इनकी आबादी 36% के आसपास बताई गई है। जबकि ओबीसी की आबादी 27% के आसपास है। जबकि मुस्लिम की आबादी 17 प्रतिशत बताई गई है। राजनीति में वर्षों से एक नारा बड़े ही जोर-शोर से उठाया जाता रहा है। जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी।
ऐसे में अब अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोग भी उस नारे को मजबूती से बुलंद करते हुए दिखाई देंगे, लेकिन सवाल यह है कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लोगों में ऐसा नेता है कौन, जो अपने हक और अपने भागीदारी की बात को राज्य की जनता के सामने मजबूती से पेश करेगा। बहरहाल इस सर्वे के बाद तेजस्वी यादव निश्चित तौर पर बिहार में और अधिक मजबूत बनकर उभरेंगे। वैसे भी बिहार में जातिगत आधार पर वोटिंग होने का सिलसिला काफी पुराना है। लाख दावे किए जाएं कि चुनाव फेयर होना चाहिए, लेकिन बिहार, शायद देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां पर आज भी जातिगत समीकरणों के आधार पर वोटिंग करने का एक पैटर्न बना हुआ है।
लालू प्रसाद यादव पर यह आरोप लगाता रहा है कि बिहार में वह मुस्लिम यादव के समीकरण के बलबूते एक लंबे समय तक बिहार की सत्ता पर काबिज होते रहे। आज भी विधानसभा में राजद, अगर सबसे बड़ी पार्टी है तो, कहीं ना कहीं उसके पीछे उसका यादव-मुस्लिम समीकरण का मजबूत होना ही है। ऐसे में इस सर्वे के बाद एक बात की जानकारी पूरे देश को हो गई कि बिहार में सिर्फ यादव और मुस्लिम समीकरण को ही तेजस्वी यादव ने अगर साध लिया तो पूरे 27 % के साथ बिहार में वह सबसे ऊपर हो जायेंगे।
इसके अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ अनुसूचित जाति के वोटो का 10-12% समर्थन उन्हें मिल गया तो फिर बिहार में तेजस्वी यादव को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पाएगा। सबसे अच्छी बात यह है कि इस समय नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, दोनों साथ हैं। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव चुनाव में इस सर्वे का असर देश के बाकी राज्यों में भले ना हों, लेकिन बिहार में इस सर्वे का फायदा तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार को जरूर मिलेगा। यह भी संभावना है कि बिहार में कुछ लोगों की जुबान पर एक नारा भी सुनने को मिल जाएगा, बिहार में एक बिरादरी सब पर भारी।
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