'विपक्षी एकता' की सधी शुरूआत, कई क्षेत्रीय दल ही बनेंगे रोड़ा
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार विपक्षी एकता को लेकर कई नेताओं से मिलकर यह संदेश देने की कोशिश जरूर कर रहे हैं कि विपक्षी दल अगर एकजुट हो जाएं तो नेता चुनने को लेकर ज्यादा परेशानी नहीं होगी। माना जा रहा है कि नीतीश विपक्ष के एकजुट करने की सधी शुरूआत जरूर कर दी है, लेकिन क्षेत्रीय दल ही नहीं राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस आसानी से सबकुछ मान ले यह जरूरी नहीं।
![]() बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, |
नीतीश कुमार अब तक कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, डी राजा सहित पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिल चुके हैं।
इन नेताओं से मिलने के बाद नीतीश कुमार ने सभी नेताओं के एक साथ आने का दावा की बात कर रहे हैं। नीतीश सोमवार को ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से मिलने के बाद कहा कि हमलोगों के बीच पॉजिटिव बात हुई है। यह तय हुआ है कि ज्यादा से ज्यादा पार्टियां मिलकर लोकसभा चुनाव के पहले पूरी तैयारी करें। सब लोग आपस में मिलकर बैठकर आगे की बात तय कर लेंगे।
कहा जा रहा है कि यह शुरुआत है और सभी लोग भाजपा को हटाने के मुद्दे पर एकसाथ आने की बात कर रहे हैं। ऐसे में अभी तक न सीट बंटवारे की बात हो रही है और न ही नेता बनने की। जब इन बातों की चर्चा प्रारंभ होगी तब सही एकजुटता का पता चल सकेगा।
माना जा रहा है कि अब तक यूपीए का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस बडे भाई की भूमिका में है। ऐसे में जहां सीट बंटवारे की बात आएगी तो कांग्रेस पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में खुद को कम आंकेगी यह आसान नहीं लगता। नेता के सवाल पर भी कांग्रेस किसी अन्य नामों के साथ समझौता करे इस पर भी सवाल उठता है।
राजनीति के जानकार अजय कुमार कहते हैं कि कांग्रेस को यह पता है कि उसकी जमीन सिमटी है तो इन क्षेत्रीय दलों के कारण ही सिमटी है। ऐसे में वह किसी क्षेत्रीय दल के नेता को विपक्ष का नेता नहीं मानेगी।
भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद भी कहते हैं कि नीतीश कुमार से न अब अपनी पार्टी संभल रही है और नहीं बिहार संभल रहा है। ऐसे में विपक्षी दलों के एकजुट करने की बारत बेमानी है। उन्होंने कहा कि सभी दलों की अपनी बड़ी बड़ी महत्वकांक्षा है। ऐसे में इन महत्वकांक्षा की पूर्ति में एक को खुश करने की कोशिश में दूसरा नाराज होना तय है।
इधर, कुमार कहते हैं कि नीतीश भले ही आज अपनी कोई महत्वाकांक्षा की बात नहीं कर रहे हों लेकिन नीतीश सियासत में कैसे खुद में बदलाव करते हैं, यह सबको पता है। ऐसे में केजरीवाल या ममता बनर्जी सहित किसी भी एक नाम पर सभी दलों को राजी करना आसान नहीं है।
भाजपा के एक अन्य प्रवक्ता मनोज शर्मा कहते हैं कि नीतीश की विश्वसनीयता अब बिहार में ही समाप्त हो गई है। बिहार राज्य में उनकी पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी है जबकि केजरीवाल की पार्टी की दो राज्यों में सरकार है और ममता बनर्जी की पार्टी पश्चिम बंगाल में काफी मजबूत है।
शर्मा यहां तक कहते हैं कि नीतीश कुमार जिस राजद के खिलाफ लड़ाई लडकर बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे, उसी राजद के साथ मिलकर बिहार में वे सरकार बना चुके हैं। ऐसे में किसी भी दलों का उनपर विश्वास होगा यह उम्मीद नहीं है।
ऐसे में यह कहा जा रहा है कि विपक्षी दलों की एकजुटता को लेकर सधी शुरूआत भाजपा के विरोधियों के लिए उत्साहित करने वाली बात है लेकिन क्षेत्रीय दलों में कब महत्वकांक्षा जोर मारने लगे, इसकी कोई गारंटी भी नहीं है।
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