महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस को करनी होगी कड़ी मशक्कत

Last Updated 14 Sep 2014 03:06:51 PM IST

लोकसभा चुनाव में करारी हार झेल चुकी कांग्रेस को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी.


कांग्रेस को दोनों ही राज्यों में लोकसभा चुनाव में भारी हार का सामना करना पड़ा था. मोदी सरकार के केन्द्र में सत्ता संभालने के बाद किसी राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इन चुनावों में जहां मोदी सरकार के प्रदर्शन पर जनता की राय सामने आयेगी वहीं लोग इन राज्यों की कांग्रेस सरकारों के कामकाज को भी कसौटी पर परखेंगे.

दोनों ही राज्यों में लंबे समय से कांग्रेस की सरकार हैं. महाराष्ट्र में वह 15 और हरियाणा में दस वर्षो से सत्ता में है. इस वजह से दोनों जगह इसके समक्ष सत्ता विरोधी रूझान से निपटना एक बडी चुनौती होगी.

अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस के लिये पार्टी नेताओं को एकजुट रखना भी एक बड़ी समस्या होगी. हरियाणा में मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को लेकर पार्टी के कई नेता नाराज हैं.

ये चुनाव उसके लिए लोकसभा चुनाव की हार से उबरने का मौका और चुनौती दोनों ही साबित होंगे. लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी के नेतृत्व विशेष रूप से उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर पार्टी के भीतर सवाल उठे थे जिससे अभी भी पार्टी में अंतर्कलह बना हुआ है.

इन विधानसभा चुनाव मे यदि पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो उसे इस कलह से पार पाने में भी आसानी होगी.

महाराष्ट्र में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन सरकार चला रही है और अभी तक दोनों के बीच 37 चुनावों के लिये सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है. लोकसभा चुनाव में अपने बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए राकांपा इस बार राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से आधी की मांग कर रही है.

पिछली बार कांग्रेस ने 174 और राकांपा ने 114 सीटों पर चुनाव लडा था. राज्य में भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना का एक बार फिर गठबंधन बनाकर चुनाव मैदान में उतरना तय है और दोनों ही लोकसभा चुनाव के परिणामों से बहुत उत्साहित हैं. कांग्रेस के कुछ नेता बीच में बगावती तेवर अपनाते रहे हैं. इस स्थिति में कांग्रेस के लिए एक बार फिर सत्ता में आना आसान नहीं होगा.

हरियाणा में भी दस वर्ष के सत्ता विरोधी रूझान के साथ-साथ कई नेताओं के पार्टी छोडकर जाने और कुछ के पार्टी में रहते हुए अभी भी मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के खिलाफ बगावती तेवर अपनाने से कांग्रेस की राह आसान नहीं दिखाई दे रही है.

पार्टी को राज्य में जहां भाजपा और इंडियन नेशलन लोकदल से लौहा लेना है वहीं उसे छोड़कर गये विनोद शर्मा की जन चेतना पार्टी से भी निपटना होगा. शर्मा ने हरियाणा जनहित कांग्रेस से हाथ मिला लिया है.

कांग्रेस को तीन प्रमुख नेताओं चौ बीरेन्द्र सिंह, राव इन्द्रजीत सिंह और अवतार सिंह भडाना के जाने के बाद इनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी कडी मेहनत करनी होगी. राज्य में भाजपा और इनेलो इस बार भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं और इससे कांग्रेस कुछ राहत की सांस ले सकती है.

पार्टी को दोनों ही राज्यों में अपनी सरकारों की उपलब्धियों और मोदी सरकार के महंगाई कम करने जैसे अपने वादों को पूरा करने में असफल रहने की बात जनता तक पहुंचानी होगी.



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