आजमगढ़ में इस बार निरहुआ फंस तो नहीं गए ?

Last Updated 09 Apr 2024 03:38:49 PM IST

आजमगढ़ और दिल्ली के बीच चलने वाली कैफियत सुपरफास्ट ट्रेन वैसे तो रोज ही आजमगढ़ से दिल्ली और दिल्ली से आजमगढ़ आ जा रही है, लेकिन आजकल इस ट्रेन में सफर करने वालों की संख्या ज्यादा ही बढ़ गई है।


Dinesh Lal Yadav, Dharmendra Yadav

कुछ लोग लोकसभा चुनाव में अपने-अपने प्रत्याशियों के समर्थन में दिल्ली से आजमगढ़ जा रहे हैं तो कुछ लोग चुनाव प्रचार करके वापस दिल्ली आ रहे हैं। पिछले कई दिनों से ऐसा ही सिलसिला चल रहा है। कुछ लोग इस उम्मीद में यात्रा कर रहे हैं कि उनका प्रत्याशी इस बार जीत कर आजमगढ़ से दिल्ली आएगा। बीजेपी के समर्थक दावा  कर रहे हैं कि दिनेश लाल यादव निरहुआ एक बार फिर चुनाव जीत कर दिल्ली आएंगे। जबकि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव के समर्थक कह रहे हैं कि उपचुनाव में एक भूल के कारण उनका प्रत्याशी हार गया था। इस चुनाव में वह भूल नहीं होगी और उनका प्रत्याशी बंपर वोटों से चुनाव जीतेगा।

लगभग 19 लाख वोटर वाले  लोकसभा क्षेत्र में इस बार कैसा माहौल है, और समीकरणों के हिसाब से किसका पलड़ा भारी रहने वाला है,आज हम यही बताने की कोशिश करेंगे और साथ ही साथ यह भी बताएंगे कि इस बार दिनेश लाल यादव दोबारा सांसद बनने जा रहे हैं या नहीं। जैसा कि हमने पहले बताया कि लगभग यहां 19 लाख वोटर हैं। जिसमें से साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटर यादव बिरादरी के हैं जबकि मुस्लिम वोटरों की संख्या भी 3 लाख के आसपास है। दलित वोटर भी तीन लाख से ज्यादा हैं।  यानी इस लोकसभा क्षेत्र का मिजाज देखें तो बहुत हद तक यादव और मुसलमान वोटर ही तय करते हैं कि कौन सा प्रत्याशी या किसी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीतेगा। यहां एक बात और बता दें कि जब से आजमगढ़  लोकसभा क्षेत्र बना है तब से अब तक 18 सांसद में से 14 सांसद सिर्फ यादव बिरादरी के बने है, जबकि चार सांसद मुस्लिम बिरादरी के बने हैं।

 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने यहां से चुनाव जीता था। इसके बाद उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था। 2022 में यहां उपचुनाव हुए थे, जिसमें उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को भाजपा के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ ने 8000 वोटो के अन्तर से हराया था। सपा प्रत्याशी की हार में बहुत बड़ी भूमिका बसपा के प्रत्याशी शाह आलम गुड्डू की थी। उस उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी गुड्डू को ढाई लाख से ज्यादा वोटें मिलीं थीं, बीजेपी के दिनेश लाल निरहुआ तीन लाख बारह हजार वोटें हासिल हुईं थीं जबकि धर्मेंद्र यादव को तीन लाख से कुछ ज़्यादा वोटें मिलीं थीं। सपा के लिए अच्छी बात यह है कि गुड्डू इस बार सपा में शामिल हो चुके हैं और वर्तमान में एमएलसी हैं।

इन आंकड़ों पर गौर करें तो एक बात आसानी से समझ में आ जायेगी कि धर्मेंद्र यादव की हार में गुड्डू का कितना बड़ा हाथ था। बसपा ने अभी तक वहां अपना कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है। ऐसे में सपा प्रत्याशी का पलड़ा भारी होता हुआ दिखाई दे रहा है। सपा प्रत्याशी के पक्ष में एक बात और जा रही है। वहां के पांचो विधानसभा सीटों पर सपा के विधायक ही काबिज हैं। मशहूर कवि लेखक और और गीतकार रहे अख्तर हुसैन रिजवी जिन्हें  लोग कैफ़ी आज़मी के नाम से जानते हैं, आज उनके पैतृक जिले में उन्हीं का गीत,कर चले हम फिदा जाने-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों,  खूब सुनने को मिल रहा है। इस चुनाव में दिनेश लाल यादव के बड़े भाई और मशहूर बिरहा गायक विजय लाल यादव भी सपा का झंडा लहरा रहे हैं, बल्कि हर जगह अपने बिरहा की शैली में धर्मेंद्र यादव का प्रचार कर रहे हैं। आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो सपा उम्मीदवार की हार  की संभावना यहां कम ही दिखाई दे रही है।

अगर बसपा किसी मजबूत मुस्लिम व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाती है तभी सपा का समीकरण बिगड़ सकता है। वरना अभी तक के जो आंकड़े हैं उसके मुताबिक दिनेश लाल यादव का चुनाव फंसा हुआ ही माना जा सकता है। हालांकि दोनों प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर है और दोनों ही यादव बिरादरी से बिलॉन्ग करते हैं। ऐसे में यादव वोटरों का विभाजन होना तय माना जा रहा है। दलित वोटर किधर जाएंगे यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। लेकिन चुनाव में जीत का फैक्टर दलित वोटर ही बनने जा रहा है। ऐसे में 4 जून को कैफियत सुपरफास्ट ट्रेन जब आजमगढ़ से दिल्ली आएगी तो यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि उसे ट्रेन में साइकिल वाला झंडा लहरा रहा है या कमल वाला।
 

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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