बुंदेलखण्ड से अबतक चार महिलाएं बनी विधायक

Last Updated 10 Jan 2012 10:51:45 AM IST

बुंदेलखण्ड में आजादी के बाद यदि सिर्फ चार ही महिलाएं विधानसभा का मुंह देख पाई हों तो इससे बड़ी सूबे की विडम्बना क्या हो सकती है.




इस बुंदेलखण्ड में पुरुषों के सापेक्ष महिला मतदाताओं की संख्या कम भी नहीं है, लेकिन आजादी के बाद से सम्पन्न विधानसभा चुनावों में सिर्फ चार महिलाओं को ही विधायक बनने का मौका मिला.

महिला सशक्तीकरण तो रही दूर की बात इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कि एक तो राजनैतिक दलों ने टिकट वितरण में कंजूसी दिखाई और यदि कोई महिला निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ी भी तो कई कारणों से अपनी जमानत गवां बैठी. इससे भी दुखद आंकड़ा यह है कि क्षेत्र में अब तक पांच दर्जन महिलाएं ही विधानसभा चुनाव लड़ सकीं.

इक्कीस विधानसभा सीट वाले ‘परसीमन में अब 15’ इस बुंदेलखण्ड में महिला मतदाताओं की तादाद तकरीबन 45 फीसदी है.

कांग्रेस की बेनीबाई मऊरानीपुर ‘झांसी’ से सर्वाधिक छह बार और इसी दल की सियादुलारी मऊ-मानिकपुर क्षेत्र से दो बार जीतीं.

वर्ष 1977 में झांसी सदर सीट से सामान्य वर्ग की सूर्यमुखी शर्मा जेएनपी के टिकट पर एवं वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में हमीरपुर जिले की चरखारी सीट से समाजवादी पार्टी ‘सपा’ की अम्ब्रेश कुमारी एक-एक बार चुनाव जीत सकीं.

खास बात यह रही कि अनुसूचित वर्ग की तीनों महिलाएं आरक्षित सीट से ही चुनाव जीतीं. ऐसा भी नहीं है कि इन महिलाओं के अलावा और अन्य महिला चुनाव न लड़ी हो. चुनाव तो बहुतों ने लड़ा, मगर वे अपनी जमानत तक बचाने में नाकाम रहीं.

वर्ष 1951 के पहले विधानसभा चुनाव में बांदा सीट से सावित्री निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में कूदी, उन्हें केवल 734 ‘तीन फीसदी’ मत ही मिल पाए थे. जनसंघ की सरोज कुमारी ‘झांसी’ पांच फीसदी और स्वतंत्र उम्मीदवार विद्या देवी ‘कर्वी’ सिर्फ एक फीसदी वोट हासिल कर जमानत गवां बैठीं.

वर्ष 1967 के विधानसभा चुनाव में सियादुलारी 36 प्रतिशत मत पाने के बाद भी मऊ-मानिकपुर से हार गईं. निर्दलीय उम्मीदवार विद्या देवी अबकी बार 4 फीसदी वोट पा सकीं.

वर्ष 1974 में निर्दलीय उम्मीदवार पर्वतिया ‘हमीरपुर’ को पांच फीसदी और झांसी की सूर्यमुखी शर्मा को एक फीसदी मत मिले.

सन 1977 के विधानसभा चुनाव में कई महिला उम्मीदवारों मनोरमा ‘मानिकपुर’, पर्वतिया ‘हमीरपुर’, सरला देवी ‘राठ-हमीरपुर’ व फूला देवी ‘चरखारी’ की जमानत जब्त हो गई.

वर्ष 1980 के चुनाव में जेएनपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाली खेमकुमारी को झांसी सदर सीट से केवल 153 वोट ही मिले.

सन 1985 में निर्दलीय उम्मीदवार पर्वतिया, शिवकली व कलावती को एक फीसदी भी मत नहीं मिले.

वर्ष 1989 के चुनाव में मऊ-मानिकपुर से निर्दलीय उम्मीदवार रुकमिन व महदसिया ‘नरैनी-बांदा’, सुखरानी ‘चरखारी-हमीरपुर’, मोहनी ‘महोबा’, सलीमन ‘गरौंठा-झांसी’ को एक फीसद से कम मत मिले.

वर्ष 1991 के चुनाव में कोई भी महिला विधायक नहीं बन पाईं.

वर्ष 1993 के चुनाव में भी कोई महिला जीत का सेहरा नहीं बांध पाईं.

वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में भी कोई महिला विधायक नहीं बन पाई.

इस प्रकार अब तक हुए विधानसभा के चुनावों में महज चार महिलाएं 10 बार विधायक बन पाई हैं जबकि पांच दर्जन महिलाएं चुनाव लड़ चुकी हैं.

आगामी विधानसभा चुनाव में बांदा सदर सीट से सपा से अमिता बाजपेई, चित्रकूट की मानिकपुर से कांग्रेस से गुलाबी गैंग की कमांड़र संपत देवी पाल व यहीं से भाजपा की पुष्पा मिश्रा के अलावा आधा दर्जन महिलाएं बुंदेलखण्ड की विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव मैदान में उतरी हैं.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामभजन निगम महिलाओं के चुनाव न जीतने पर कहते हैं, ‘पहले अशिक्षा तो अब जातीय समीकरण इसके जिम्मेदार हैं.’

उत्तर प्रदेश सरकार में कई बार मंत्री रह चुके बुजुर्ग समाजवादी चिंतक जमुना प्रसाद बोस कहते हैं, ‘सभी राजनैतिक दल महिलाओं का वोट लेना पसंद करते हैं लेकिन टिकट वितरण करते समय वे महिलाओं के लिए कंजूसी बरतते हैं. बड़ी मशक्कत पर टिकट भी मिल जाए तो पुरुष मतदाता लिंग भेद कर वोट नहीं देते, जो लोकतंत्र के लिए बेहद घातक है.’


 



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