मुफ्त की रेवड़ियों से लोगों की काम में दिलचस्पी हुई कम : सुप्रीम कोर्ट
चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की रेवड़ियों का लगातार बढ़ते चलन पर सुप्रीम कोर्ट के बेहद सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्पादकता बढ़ाने और देश के विकास के लिए लोगों को मुख्यधारा में लाने के बजाए हम परजीवियों का एक वर्ग तैयार कर रहे हैं।
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शहरी बेघरों के लिए आश्रय गृह बनाने की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही।
जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा, बेहतर होगा कि लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाकर राष्ट्रीय विकास में योगदान दिया जाए।
अदालत ने सवाल किया-राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने के बजाए, क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं?
जस्टिस गवई ने कहा, दुर्भाग्यवश, चुनाव से ठीक पहले घोषित की जाने वाली इन मुफ्त की योजनाओं, जैसे लाडली बहिन और अन्य योजनाओं के कारण लोग काम करने के लिए तैयार नहीं हैं।
अदालत शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था।
अदालत ने कहा, लोगों को बिना काम किए मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है। कोर्ट ने पूछा, हम उनके प्रति आपकी चिंता की सराहना करते हैं, लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए और राष्ट्र के विकास में योगदान करने का मौका दिया जाए?
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो काम न करना चाहे, यदि उसके पास काम हो।
कोर्ट ने कहा कि आपको केवल एकतरफा जानकारी है। मैं एक कृषक परिवार से आता हूं। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले घोषित मुफ्त सुविधाओं के कारण, किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे। हालांकि, अदालत ने कहा कि वह बहस नहीं करना चाहती।
अदालत ने कहा, अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी समेत सभी लोग इस बात पर एकमत हैं कि बेघर लोगों को आश्रय प्रदान करने पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए।
बेंच ने पूछा-लेकिन साथ ही, क्या इसे संतुलित नहीं किया जाना चाहिए? वेंकटरमणी ने अदालत को बताया, केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में बेघरों के लिए आश्रय की व्यवस्था समेत विभिन्न मुद्दों का समाधान किया जाएगा।
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