कौन होते हैं शंकराचार्य, मठों का क्या है महत्तव?

Last Updated 13 Jan 2024 01:58:36 PM IST

सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं, जो बौद्ध धर्म में दलाई लामा और ईसाई धर्म के पोप के बराबर माने जाते हैं। पूरे भारत में इन चार मठों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत के संत समाजों में सबसे ऊपर शंकराचार्य आते हैं।


सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सबसे ऊंचा माना जाता है. भारत में इस पद की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। उन्होंने भारत में चार मठों की स्थापना की थी. इन चारों मठों में उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ शामिल है।

इन चार मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है। संस्कृत में इन मठों को पीठ कहा जाता हैं। इन मठों की स्थापना करने के बाद आदि शंकराचार्य ने अपने चार प्रमुख शिष्यों को उसकी ज़िम्मेदारी सौंप दी थी। तभी से भारत में शंकराचार्य परंपरा की स्थापना हुई है। आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक थे.. धार्मिक मान्यता में उन्हें भगवान शंकर का अवतार भी माना गयाय़ उन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा कीय़ इस महान शख्सियत के जीवन का अधिकांश भाग देश के उत्तरी हिस्से में गुज़रा था।

आदि शंकराचार्य हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरू थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक समझा जाता है। सनातन धर्म को मज़बूत करने के लिए आदि शंकराचार्य ने भारत में चारों मठों की स्थापना की।

सनातन धर्म के मुताबिक, मठ वो स्थान है जहां गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा और ज्ञान देते हैं। इन गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा आध्यात्मिक होती है। इसके अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य आदि से संबंधित काम होते हैं।

शंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना जरूरी है। संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना बेहद जरूरी होता है वरना ये ऊंचा पद हासिल नहीं किया जा सकता। साथ ही शंकराचार्य बनने के लिए ब्राह्मण होना अनिवार्य है और तन मन से पवित्र यानि जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो, चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता हो इसके बाद शंकराचार्यों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की मुहर के बाद शंकराचार्य की पदवी मिलती है।

ओडिशा के पुरी में गोवर्धन मठ, के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती हैं। वहां संन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम लगाया जाता है।  गुजरात में द्वारकाधाम में शारदा मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती हैं। शारदा मठ के संन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ या आश्रम लगाया जाता है। वहीं उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ, के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं। वहां के संन्यासियों के नाम के बाद सागर का प्रयोग किया जाता है। दक्षिण भारत के रामेश्वरम् में श्रृंगेरी मठ, जहां के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं। इन मठों की स्थापना ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में स्थापित बताए जाते हैं।

सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं, जो बौद्ध धर्म में दलाई लामा और ईसाई धर्म के पोप के बराबर माने जाते हैं। पूरे भारत में इन चार मठों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत के संत समाजों में सबसे ऊपर शंकराचार्य आते हैं।   

आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक थे.. धार्मिक मान्यता में उन्हें भगवान शंकर का अवतार भी माना गयाय़ उन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा कीय़ इस महान शख्सियत के जीवन का अधिकांश भाग देश के उत्तरी हिस्से में गुज़रा था।

कश्फी शमाएल
नई दिल्ली


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