498A को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट की टिप्पणी, कहा इसके जरिए फैलाया जा रहा है,"कानूनी आतंकवाद"

Last Updated 22 Aug 2023 11:01:46 AM IST

आईपीसी की धारा 498A को लेकर देश की कई उच्च अदालतों ने अलग-अलग निर्देश और अलग-अलग आदेश जारी किए हैं। लगभग हर आदेश में एक बात का ज़िक्र है कि 498A का दुरुपयोग ज्यादा होता है।


Calcutta High Court

अब कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इसके दुरुपयोग को लेकर कहा है कि इसके जरिए"कानूनी आतंकवाद"फैलाया जा रहा है। बार एन्ड बेंच वेबसाइट के मुताबिक सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले की सुनवाई करते हुए मामले को रद्द कर दिया।एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुभेंदु सामंत ने कहा कि धारा 498ए महिलाओं के कल्याण के लिए पेश की गई थी लेकिन अब झूठे मामले दर्ज करके इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।

न्यायाधीश ने कहा, "विधानमंडल ने समाज से दहेज की बुराई को खत्म करने के लिए धारा 498ए का प्रावधान लागू किया है। लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि उक्त प्रावधान का दुरुपयोग करके नया कानूनी आतंकवाद फैलाया जाता है। धारा 498ए के तहत क्रूरता की परिभाषा में उल्लिखित उत्पीड़न और यातना को केवल वास्तविक शिकायतकर्ता (पत्नी) द्वारा साबित नहीं किया जा सकता है।

एक व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ धारा 498 ए के मामले को रद्द करते हुए अदालत ने कहा, "आपराधिक कानून एक शिकायतकर्ता को आपराधिक शिकायत दर्ज करने की अनुमति देता है, लेकिन इसे ठोस सबूत जोड़कर उचित ठहराया जाना चाहिए। अदालत उस व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा अक्टूबर और दिसंबर 2017 में उसकी अलग रह रही पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज कराए गए आपराधिक मामलों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिका के अनुसार, पत्नी ने पहली बार अक्टूबर 2017 में याचिकाकर्ता-पति के खिलाफ मानसिक और शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। इसके बाद, पुलिस ने कुछ गवाहों और जोड़े के पड़ोसियों के बयान भी दर्ज किए। हालाँकि, पुलिस ने कहा कि पति के खिलाफ केवल सामान्य और सर्वव्यापी आरोप लगाए गए थे। इसके अलावा, पत्नी ने दिसंबर 2017 में एक और शिकायत दर्ज की, इस बार पति के परिवार के सदस्यों का नाम लेते हुए उन पर क्रूरता करने और उसे मानसिक और शारीरिक यातना देने का आरोप लगाया।

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध साबित करने वाला कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। इसमें आगे कहा गया कि शादी के बाद से, दंपति पति के रिश्तेदारों से अलग एक अपार्टमेंट में रह रहे थे, जो दूसरे अपार्टमेंट में रह रहे थे। कोर्ट ने कहा, "मेरा विचार है कि वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ शुरू की गई तत्काल आपराधिक कार्यवाही उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध का खुलासा नहीं करती है जैसा कि आरोप लगाया गया है।

कार्यवाही केवल व्यक्तिगत द्वेष की पूर्ति के लिए शुरू की गई है। परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है कि कार्यवाही को रद्द करने के लिए इस अदालत की अंतर्निहित शक्ति का उपयोग करना आवश्यक है अन्यथा आपराधिक कार्यवाही जारी रखना अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग के समान होगा। यहां बता दें कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2021 में 498A के एक लाख छतीस हजार मामले दर्ज होने की जानकारी दी थी। ऐसा माना गया है कि 100 में 17 मामले सही पाए जाते हैं। जबकि बाकी मामलों में या तो समझौता हो जाता है या फिर फर्जी पाए जाते हैं। उड़ीसा हाईकोर्ट ने भी कुछ वर्ष पूर्व 498A को लेकर दुरुपयोग वाली बात कही थी।

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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