बिहार के CM नीतीश कुमार के फार्मूले को मानते तो कर्नाटक में बम्पर जीत होती कांग्रेस की!
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्ष को एक करने की कोशिश में लगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक फार्मूला दिया था। उनके फार्मूले के मुताबिक़ एक सीट एक उम्मीदवार वाला नियम बना लिया जाय तो संभव है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त दी जा सके।
![]() bihar chief minister nitish kumar (File photo) |
नीतीश कुमार के उस फार्मूले को आजमाने या उसका परीक्षण करने का एक सुनहरा मौक़ा था, कर्नाटक का विधान सभा चुनाव, लेकिन सपा मुखिया अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती ने कर्नाटक जाकर नीतीश कुमार के फार्मूले को ठेंगा दिखा दिया। हालांकि वहां हुए सर्वे में अभी तक कांग्रेस की सरकार बनने का अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन उनके साथ बसपा और सपा अगर मिल जाती तो शायद जीतने की संभावना ज्यादा बढ़ जातीं।
देश की सभी विपक्षी पार्टियां इस समय भाजपा की खिलाफत कर रही हैं। सबने भाजपा को सबक सीखाने की बात कर दी है, लेकिन नीतीश कुमार को छोड़कर किसी पार्टी ने अब तक धरातल पर कोई काम नहीं किया है, ऐसा कोई फार्मूला नहीं बनाया है जिसके जरिए केंद्र की एनडीए सरकार को हटाया जा सके। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले लगभग आठ महीनों से विपक्षी पार्टियों को एक करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। नीतीश कुमार बहुत पहले ही सोनिया गाँधी ,राहुल गांधी ,अरविन्द केजरीवाल ,मल्लिकार्जुन खड़गे ,ममता बनर्जी ,अखिलेश यादव ,शरद पवार ,सीताराम येचुरी समेत विपक्ष के कई नेताओं से मुलाक़ात कर चुके हैं।
उन्होंने सबको एक फार्मूला दिया था कि सब मिलकर एक सीट एक उम्मीदवार वाले फार्मूला पर काम करने का प्रयास करें। हालांकि उनकी मुलाकतें बहुत अच्छी रहीं। सबने नीतीश कुमार से बड़ी ही गर्मजोशी के साथ मुलाक़ात की थीं, लेकिन उस पर अभी तक कोई ख़ास पहल नहीं हो पाई है। नीतीश कुमार के फार्मूले को आजमाने का सबसे बढ़िया मौक़ा था कर्नाटक का विधान सभा चुनाव, लेकिन विपक्ष ने इस मौके को गवां दिया। अगर केंद्र की भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार को हटाना है तो सभी पार्टियों को अपने-अपने अहम् को छोड़ना पड़ेगा।
अपने अहम् को छोड़ने की शुरुवात सबसे पहले कांग्रेस को करनी होगी, क्यों भाजपा के बाद कांग्रेस ही देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। कर्नाटक के चुनाव में इस समय सपा मुखिया अखिलेश यादव जोर शोर से प्रचार कर रहे हैं। उनकी पार्टी के बीस प्रत्यासी चुनाव मैदान में हैं। पिछले विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी के 17 प्रत्यासी चुनाव मैदान में थे, लेकिन उनका एक भी प्रत्यासी चुनाव नहीं जीत पाया था। इसी तरह बसपा सुप्रीमों मायावती भी कर्नाटक विधान सभा चुनाव में अपने प्रत्याशियों की जीत के लिए जोर अजमाइस कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के इन दोनों प्रभावशाली नेताओं को पता है कि इन्हे वहां कोई खास फायदा नहीं होने वाला है, बावजूद इसके वहां दोनों नेता अपना वक्त जाया कर रहे हैं।
मायावती ने विपक्षी गठबंधन को लेकर अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन अखिलेश यादव और नीतीश कुमार की मुलाक़ात हो चुकी है। मायावती भले ना समझे ,लेकिन अखिलेश यादव को यह बात समझ लेनी चाहिए कि उनका वहां प्रचार करने का मतलब है कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना। वैसे कांग्रेस भी अगर नीतीश कुमार की बातों को गंभीरता से समझती तो शायद चुनाव से पूर्व वो अखिलेश यादव से जरूर बात करती, लेकिन उसने भी ऐसा नहीं किया। अगर नीतीश कुमार की बात मानकर कम से कम अखिलेश यादव की पार्टी सपा और कांग्रेस भी एक साथ मिल जाते तो ना सिर्फ कांग्रेस को फायदा पहुंचता बल्कि संभव है कि सपा को भी कुछ सीटें मिल जातीं।
लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की पहल सिर्फ बातो से होती रहेंगी तो विपक्ष भाजपा का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। कर्नाटक विधान सभा चुनाव के रूप में नीतीश के फार्मूले को टेस्ट करने का जो मौक़ा मिला था, उसे विपक्ष ने गंवा दिया। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले देश के कई राज्यों में चुनाव होने हैं। अगर सही मायनों में विपक्ष को एकजुट होना है तो उन्हें नीतीश के फार्मूले को लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले विधानसभा चुनावों में टेस्ट करना होगा। वरना 2024 लोकसभा चुनाव के बाद विपक्ष की पहल से प्रभावित होने वाले लोग यही कहेंगे कि जब चिड़िया चुग गई खेत तो पछता क्या करोगे?
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