डॉक्टरों के लिए बॉन्ड नीति खत्म करने की तैयारी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) की सिफारिशों के आधार पर डॉक्टरों के वास्ते बॉन्ड नीति को खत्म करने के लिए दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने पर काम कर रहा है।
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आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। बॉन्ड नीति के अनुसार डॉक्टरों को अपनी स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री पूरी करने के बाद राज्य के अस्पतालों में एक विशिष्ट अवधि के लिए सेवा देने की आवश्यकता होती है, और ऐसा न करने पर उन्हें राज्य या मेडिकल कॉलेज को जुर्माना (प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश द्वारा पहले से निर्दिष्ट राशि) का भुगतान करना होता है।
सूत्र ने कहा, ‘एनएमसी ने अपनी टिप्पणियों में कहा कि विभिन्न राज्यों द्वारा बॉन्ड नीति की घोषणा के बाद से देश में चिकित्सा शिक्षा में बहुत कुछ बदल गया है और इसलिए विभिन्न राज्यों द्वारा इस नीति की खूबियों/प्रभावशीलता की समीक्षा करना उचित हो सकता है।’
सूत्र ने कहा, ‘‘एनएमसी ने अपनी विस्तृत टिप्पणियां सौंपीं। उसकी टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए और राज्य सरकारों की बॉन्ड नीतियों से संबंधित वैधताओं को बरकरार रखने वाली उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों के बावजूद आयोग का विचार था कि मेडिकल छात्रों को किसी भी बॉन्ड की शतरे के बोझ से दबाना नहीं चाहिए और ऐसा करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत हो सकता है।’’
इस मामले की मंत्रालय द्वारा पूरी तरह से जांच की गई थी और यह प्रस्तावित किया गया था कि सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य हितधारकों के विचारों के साथ-साथ पूरी बॉन्ड नीति को नए सिरे से जांचने की आवश्यकता है। एनएमसी अधिनियम, 2019 या पूर्ववर्ती भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत बॉन्ड का कोई प्रावधान नहीं है।
सीएचसी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में रिक्त पदों को भरकर विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए राज्य द्वारा बॉन्ड की शर्त लगाई गई है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दी जा रही रियायती शिक्षा की एवज में बॉन्ड की राशि राज्य द्वारा तय की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की बॉन्ड नीति को रखा था बरकरार
अगस्त 2019 में उच्चतम न्यायालय ने राज्यों की बॉन्ड नीति को बरकरार रखा था और इस बात पर गौर किया गया कि कुछ सरकारें कठोर शत्रे लगाती हैं। इसने सुझाव दिया कि केंद्र और एमसीआई को सरकारी संस्थानों में प्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा प्रदान की जाने वाली अनिवार्य सेवा के संबंध में एक समान नीति तैयार करनी चाहिए।
निर्देशों के अनुसरण में स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2019 में मामले को देखने के लिए स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के प्रधान सलाहकार डॉ. बीडी अथानी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
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