नफरती भाषण के मामले में कड़ी कार्रवाई जरूरी
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों, राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के धर्म व जाति के आधार पर भड़काऊ भाषण संवैधानिक लोकाचार को ठेस पहुंचाने के साथ ही संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं, इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।
![]() दिल्ली हाईकोर्ट |
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने इस बात का भी उल्लेख किया कि नफरत भरे भाषणों के ऐसे भी उदाहरण हैं, जिसके कारण देश में पलायन के हालत भी बने हैं।
अदालत ने कहा कि बड़े नेताओं और उच्च पदों पर आसीन लोगों को पूरी ईमानदारी और जिम्मेदारी भरा आचरण करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि यह उचित नहीं है कि नेता ऐसे कृत्य करें या भाषण दें, जो समुदायों के बीच दरार और तनाव पैदा करते हैं और समाज में सामाजिक ताने-बाने के लिए हानिकारक है।
न्यायाधीश ने कहा, निर्वाचित नेता पूरे समाज, राष्ट्र और संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं।
अदालत ने यह टिप्पणी मार्क्सवादी नेताओं की उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के खिलाफ उनके कथित नफरती भाषणों के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश देने से निचली अदालत के इनकार को चुनौती दी गई थी।
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