सरोकार : सेक्स वर्करों को मिले पेशागत गरिमा

Last Updated 29 May 2022 12:09:27 AM IST

आचार्य चतुरसेन शास्त्री की रचना वैशाली की नगरवधू की पूरावधू आम्रपाली उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले के बाद हठात प्रासंगिक हो उठी है।


सरोकार : सेक्स वर्करों को मिले पेशागत गरिमा

उसमें तत्कालीन लिच्छवी संघ की राजधानी वैशाली की नगरवधू को प्रधान चरित्र के रूप में अवतरित करते हुए उस युग के हास विलासपूर्ण सांस्कृतिक वातावरण को अंकित करते हुए नगरवधू की सम्मानजनक स्थिति का वर्णन किया गया है। माना जाता है कि उस दौर में नगरवधू का देवियों की तरह सम्मान किया जाता था। सुरक्षा, सम्मान और सामथ्र्य से परिपूर्ण इन नगर वधुओं का स्त्रीत्व पूरी तरह सुरक्षित था। उक्त काल में राज नर्तकी, नगरवधू, गणिका, रूपजीवा, देवदासी हुआ करती थीं। सभी के कार्य अलग-अलग हुआ करते थे। हालांकि इन नगरवधुओं के महल नगर क्षेत्र से बाहर होते थे और नगर में किसी भी प्रकार के अवैधानिक कार्य नहीं होने दिए जाते थे। उक्त काल में इस तरह की व्यवस्था को आज के कालानुसार वेश्यावृत्ति का वैधानिक और व्यवस्थित तरीका माना जा सकता था।
हाल में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को लेकर कहा है कि वे भी गरिमा की हकदार हैं। अपने आदेश में कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकार सेक्स वर्कर्स को तत्काल चिकित्सा और कानूनी देखभाल जैसी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।  ने मीडिया और पुलिस को अपना रवैया बदलने को भी कहा। सेक्स वर्करों के लिए यह राहत भरी खबर है। जीहर है इससे उनकी पेशेगत आजादी को विस्तार मिला है। देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस छापामारी कर सेक्स वर्कर्स को गिरफ्तार या परेशान न करे क्योंकि इच्छा से सेक्स वर्क में शामिल होना वैध है। सिर्फ  वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। ऐसे में स्पष्ट हो जाता है कि महिला अपनी मर्जी से काम कर सकती है। इस काम में पुलिस को हस्तक्षेप नहीं करने के आदेश के बाद वेश्यावृत्ति पर चर्चा होने लगी है।

हमारे देश में पेश से जुड़ी कुछ रूढ़ियां अब भी व्याप्त हैं। उन्हें निकृष्ट समझने का भाव भी जन मानस में व्याप्त है। सेक्स वर्कर्स को लेकर लोगों की धारणाएं न केवल नकारत्मक, बल्कि दोहरे मापदंड वाली हैं। लेकिन पश्चिम के देशों में ठीक इसके उलट परिपाटी है। उनके यहां सामाजिक सुरक्षा, कानूनी और आर्थिक सुरक्षा का घेरा हमसे कहीं ज्यादा मजबूत है। वहां सेक्स वर्करों को बुनियादी सुविधाएं और पेशेगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। सरकार और कानून भी सहयोग करता है। हमारे देश में भी आज भी कई ऐसे समुदाय हैं, जिन्होंने स्वेच्छा से इस पेशे को अपनाया है। लेकिन उनके पेशे को अनितैक और गैर-कानूनी बताकर उनके काम में हस्तक्षेप किया जाता रहा है जो कोर्ट के फैसले के बाद अब संभव न हो  सकेगा। हमारे यहां तो बाछड़ा समुदाय के लोग तो सदियों से इसी पेशे में लिप्त रहे हैं। मंदसौर, नीमच, रतलाम जिले के लगभग 75 गावों की करीब 23 हजार आबादी कई पीढ़ियों से इसी धंधे में लगी है। उन्हें अब पुलिस की बेवजह दबिश से मुक्ति मिलेगी।  
प्राचीन काल में वेश्या को उतना बुरा नहीं माना जाता था जितना कि आज। दुनिया की महान संस्कृतियों में शुमार हिंदू, बौद्ध, रोमन और ग्रीक सभ्यता में सेक्स को ले कर भिन्न-भिन्न मान्यताएं थीं लेकिन यह विषय उतना वर्जित नहीं था जितना कि  मध्यकाल में माना जाने लगा।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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