चुनाव में अतार्किक वादे कितने वाजिब, SC ने पूछा

Last Updated 26 Jan 2022 03:55:35 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने चुनाव से पहले सार्वजनिक कोष से ‘अतार्किक मुफ्त सेवाएं एवं उपहार’ वितरित करने या इसका वादा करने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिह्न जब्त करने या उनका पंजीकरण रद्द करने का दिशा-निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से मंगलवार को जवाब मांगा।


उच्चतम न्यायालय

न्यायालय ने साथ ही कहा कि यह एक ‘गंभीर मामला’ है क्योंकि कभी-कभी ‘नि:शुल्क सेवाएं नियमित बजट से भी अधिक दी जाती हैं।’ प्रधान न्यायाधीश वीएन रमण, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता और अधिवक्ता अिनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किए। इन्हें चार सप्ताह में नोटिस का जवाब देना है।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले दायर की गई याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस प्रकार के लोकलुभावन कदम उठाने पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए, क्योंकि यह संविधान का उल्लंघन है और निर्वाचन आयोग को इसके खिलाफ उचित कार्रवाई करनी चाहिए।

पीठ ने उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह के इस कथन पर गौर किया कि इसके लिए एक कानून बनाने और चुनाव चिह्न जब्त करने या राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने या दोनों पर ही विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि अंतत: इसके लिए भुगतान नागरिकों को करना है। पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद कहा, ‘देखते हैं। फिलहाल, हम नोटिस जारी करेंगे। सरकार और निर्वाचन आयोग को जवाब देने दीजिए।’

पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों को याचिका के पक्षकारों के रूप में बाद में शामिल किया जा सकता है। पीठ ने कहा, ‘कानूनी रूप से, मैं बहस में कुछ कानूनी प्रश्न पूछ रहा हूं। हम जानना चाहते हैं कि इसे नियंत्रित कैसे करना है। निस्संदेह, यह गंभीर मामला है।

नि:शुल्क सेवाएं देने का बजट नियमित बजट से अधिक हो रहा है। पीठ ने कहा, अधिक वादे करने वाले दलों की स्थिति लाभकारी होती है और उनके चुनाव जीतने की संभावना भी अधिक होती है, क्योंकि ये वादे कानून के तहत भ्रष्ट नीतियों के दायरे में नहीं आते।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment