देवबंद के फतवे पर बाल आयोग सख्त
गोद लिए बच्चों को अधिकारों से वंचित करने वाले फतवों को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दारुल उलूम देवबंद के खिलाफ कार्रवाई के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को लिखा है।
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आयोग मामला चुनाव आयोग, राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस प्रमुख के भी संज्ञान में लाया है।
आयोग ने सहारनपुर के कलेक्टर से बच्चों के बारे में दिए गए फतवों और उन्हें वेबसाइट पर डालने को गैरकानूनी बताते हुए दारुल उलूम देवबंद के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है।
आयोग ने इस बारे में भी गहरी नाराजगी जाहिर की है कि गोद लिए गए बच्चों को अधिकारों से वंचित करने वाले ये फतवे देवबंद की वेबसाइट पर डाले गए हैं। बाल आयोग ने स्पष्ट किया है कि गोद लिए बच्चों को जैविक बच्चों के समान ही समस्त कानूनी अधिकार हासिल होते हैं।
आयोग ने इस बात पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है कि बच्चा, गोद लेने वाले व्यक्ति का वारिस नहीं कहलाएगा और न ही उसका सम्पत्ति पर कोई अधिकार होगा। देवबंद के फतवे में बच्चे के वयस्क होने पर उस पर शरिया कानून लागू होने की भी बात कही गई है। इसे भी बाल आयोग ने खारिज कर दिया है।
आयोग का कहना है कि इस तरह के फतवे देश के कानूनों के खिलाफ हैं क्योंकि भारत का संविधान बच्चों को शिक्षा और समानता का अधिकार प्रदान करने के साथ-साथ मौलिक अधिकार भी प्रदान करता है। इस सिलसिले में उसने अंतरराष्ट्रीय हेग कन्वेंशन का भी हवाला दिया, जिसमें गोद लिए बच्चों को जैविक बच्चों के समान ही अधिकार प्रदान करने पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं।
आयोग ने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 2(2) में दत्तक बच्चे के अधिकार परिभाषित करते हुए बताया गया है कि उसे जैविक बच्चे के समान ही सभी अधिकार और विशेषाधिकार हासिल है। इसमें उत्तराधिकार का अधिकार भी शामिल है। फतवों में शिक्षकों का बच्चों को पीटना जायज बताया। जिस पर आयोग ने यह कहकर आपत्ति जताई है कि आरटीई कानून के तहत यह प्रतिबंधित किया जा चुका है।
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