विधायिका कानून के प्रभाव का आकलन नहीं करती

Last Updated 28 Nov 2021 01:09:08 AM IST

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने शनिवार को कहा कि विधायिका कानूनों के प्रभाव का आकलन या अध्ययन नहीं करती है, जो कभी-कभी ‘बड़े मुद्दों’ की ओर ले जाते हैं और परिणामस्वरूप न्यायपालिका पर मामलों का अधिक बोझ पड़ता है।


प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण

प्रधान न्यायाधीश ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि विशेष बुनियादी ढांचे के निर्माण के बिना मौजूदा अदालतों को वाणिज्यिक अदालतों के रूप में पेश करने से लंबित मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

संविधान दिवस समारोह के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका में मामलों के लंबित होने का मुद्दा बहुआयामी प्रकृति का है और उम्मीद है कि सरकार इस दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान प्राप्त सुझावों पर विचार करेगी तथा मौजूदा मुद्दों का समाधान करेगी।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘एक और मुद्दा यह है कि विधायिका अपने द्वारा पारित कानूनों के प्रभाव का अध्ययन या आकलन नहीं करती है। यह कभी-कभी बड़े मुद्दों की ओर ले जाता है।

परक्राम्य लिखत कानून की धारा 138 की शुरुआत इसका एक उदाहरण है। पहले से मुकदमों का बोझ झेल रहे मजिस्ट्रेट इन हजारों मामलों के बोझ से दब गए हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने केंद्रीय कानून मंत्री की घोषणा की सराहना की कि सरकार ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘जैसा कि मैंने कल बताया था, धन की समस्या नहीं है।

समस्या कुछ राज्यों के अनुदान की बराबरी करने के लिए आगे नहीं आने के कारण है। नतीजतन, केंद्रीय धन का काफी हद तक इस्तेमाल नहीं होता है।’

आईएएनएस
नई दिल्ली


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