एलओसी से सटे जंगलों में सेना ने झोंकी पूरी ताकत
लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) से सटे जिले राजोरी तथा पुछ के घने जंगल सुरक्षाबलों के लिए हमेशा चुनौती भरे रहे हैं।
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पुंछ के मेंढर के घने जंगलों में 10 दिन से ज्यादा समय से आतंकियों के साथ मुठभेड़ तथा उनकी तलाश अभियान में अब तक कोई कामयाबी नहीं मिली है।
इस बीच सेना के दो जेसीओ समेत नौ जवान शहीद हो चुके हैं। पुंछ के चमरेड तथा भाटाधुलिया के घने जंगलों में छिपे आतंकियों को मार गिराने के लिए सेना तथा सुरक्षाबलों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। यहां पैरा कमांडो को उतारने के साथ हेलीकॉप्टर से भी निगरानी की जा रही है। जंगल की भौगोलिक स्थिति इस कदर दुश्कर है कि आतंकियों के खिलाफ अभियान को अभी तक कोई सफलता नहीं मिल पाई है। यहां का घना जंगल, बरसाती नाले, विशाल चट्टाने तथा छोटी-छोटी गुफाएं आतंकियों के छिपने का जरिया बनी हुई है। यही भौगोलिक स्थितियां आतंकियों को मार गिराने में अड़चनें बनी हुई हैं। यहां कितने आतंकी छिपे हैं इस बाबत पुख्ता तौर पर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है।
इन आतंकियों के पास घातक हथियार हैं, जिससे वह भौगोलिक स्थितियों की आड़ लेकर सेना के जवानों को निशाना बनाने में लगे हैं। सेना के जवान बेहद एहतियात के साथ यहां की स्थितियों के मद्देनजर छिपे आतंकियों की घेराबंदी करने में लगे हैं।
दो-तीन दिन पहले सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे यहां एलओसी पर हालात का जायजा लेने तथा जवानों व सैन्य कमांडरो का हौसला बढ़ाने आए थे। कयास लगाए जा रहे हैं कि यहां घुसपैठ करके पिछले करीब डेढ़ 2 माह में बड़ी संख्या में आतंकी छिपे बैठे हैं। इन्हें खाने-पीने आदि की मदद कुछ स्थानीय लोग कर रहे हैं जिन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया। इसी मेंढर के एक घने जंगल में सन 2008 को सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ के बाद करीब 15 दिन तक ऑपरेशन चला जिसमें कुछ जवान शहीद हुए थे। तब भी कोई आतंकी मारा नहीं जा सका था। आतंकी घने जंगल की भौगोलिक स्थिति का फायदा उठा कर वहां से भाग निकले थे।
इसी प्रकार जिला राजौरी के एक स्थानीय जंगल में करीब दो वर्ष पहले लगभग लगभग 20 दिन तक सर्च ऑपरेशन चला। उसमें भी कोई आतंकी मारा नहीं गया था। परंतु रक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि इसी जिला पुंछ के सूरनकोट इलाके की बेहद दुर्गम एवं उच्च पहाड़ी इलाके में सन् 2003 के अप्रैल तथा मई माह के बीच काफी लंबा चला सेना का ‘ऑपरेशन सर्प विनाश’ सबसे उल्लेखनीय रहा है। यहां की भौगोलिक स्थिति भी सेना के ऑपरेशन के लिए बेहद कठिनाई पूर्ण रही। यहां लश्कर-ए-तय्यबा के काफी बड़ी तादाद में आतंकी महीनों से अपने पक्के बंकर, खेल का मैदान, लांचिंग पैड, आधार शिविर बनाए हुए थे।
हैरत की बात यह है कि महीनों से लश्कर-ए-तय्यबा के आतंकी यहां पर अपना पक्का अड्डा जमाए हुए थे लेकिन खुफिया एजेंसियों को कानो कान खबर नहीं रही। सेना के इस लंबे चले ऑपरेशन में काफी बड़ी संख्या में लश्कर-ए-तय्यबा के दुर्दांत आतंकी व कमांडर मारे गए। यहां आतंकियों के सफाये के बाद सेना को काफी बड़ी संख्या तमाम तरह की राइफल्स, रेडियो सेट तथा संचार उपकरण मिले। वहीं कई महीनों का राशन भी मिला था। सेना को इस दुर्गम इलाके में अपने ऑपरेशन के लिए हेलीकॉप्टर्स का भी इस्तेमाल करना पड़ा था।
यह ऑपरेशन सर्प विनाश इस कदर अहम रहा कि तत्कालीन केंद्र सरकार की कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी के समक्ष तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एनसी विज को इस ऑपरेशन की बाबत जानकारी देनी पड़ी थी। इस ऑपरेशन में काफी बड़ी तादाद में लश्कर के आतंकी तो मारे ही गए थे लेकिन हमारे जवानों की भी शहादतें हुई थी। मेंढर के घने जंगल में मौजूदा वक्त में सेना द्वारा चलाया जा रहा ऑपरेशन अभी कुछ और समय ले सकता है लेकिन आतंकियों का सफाया लाजमी होगा।
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