क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद है: भारत ने एससीओ की बैठक में कहा

Last Updated 01 Dec 2020 12:16:38 AM IST

भारत ने सोमवार को कहा कि क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद है और इसका इस्तेमाल ‘‘राज्य नीति’ के साधन के रूप में करने के लिए पाकिस्तान की निंदा की।


उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू

भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) से इस खतरे का सामना एक साथ मिलकर करने और आतंकवाद को समर्थन देने वाले सुरक्षित ठिकानों, बुनियादी ढांचे और उनके वित्तीय नेटवर्क को व्यापक रूप से खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कानूनी व्यवस्थाओं को लागू करने का आह्वान किया।

आठ सदस्यीय एससीओ के शासनाध्यक्षों की परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद है और उन्होंने विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद के बारे में उल्लेख किया। भारत की मेजबानी में हुई ऑनलाइन बैठक को संबोधित करते हुए नायडू ने पाकिस्तान का नाम लिये बगैर कहा, ‘‘आतंकवाद सही मायने में मानवता का दुश्मन है। यह एक संकट है जिसका हमें सामूहिक रूप से मुकाबला करने की आवश्यकता है। हम अनजाने स्थानों से उत्पन्न खतरों के बारे में चिंतित हैं और विशेष रूप से उन देशों के बारे में चिंतित हैं जो राज्य नीति के साधन के रूप में आतंकवाद का फायदा उठाते हैं। ऐसा दृष्टिकोण पूरी तरह से एससीओ की भावना और चार्टर के खिलाफ है।’’     उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खतरे का ‘‘खात्मा’’ करने से अपनी वास्तविक क्षमताओं को साकार करने में क्षेत्र को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर स्थिति का माहौल बनेगा और आर्थिक विकास और सतत विकास होगा।

नायडू के कार्यालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार उन्होंने आतंकवाद को समर्थन देने वाले सुरक्षित ठिकानों, बुनियादी ढांचे और वित्तीय नेटवर्क को खत्म करने का आह्वान किया। एससीओ शासनाध्यक्षों की परिषद की 19वीं बैठक के समापन पर जारी एक संयुक्त विज्ञप्ति में कहा गया है कि कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ (ओबीओआर) पहल के लिए अपने समर्थन की पुष्टि की। भारत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के रूप में इस परियोजना का विरोध कर रहा है जो ओबीओआर का हिस्सा है और यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरती है।    

 विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) विकास स्वरूप ने बताया कि बैठक में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने हिस्सा लिया जबकि पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व विदेश मामलों के संसदीय सचिव ने किया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बैठक में शामिल नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर स्वरूप ने मीडिया  में कहा कि इसका उत्तर केवल पाकिस्तान द्वारा ही दिया जा सकता है क्योंकि भागीदारी के स्तर पर फैसला एक देश ही ले सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक हमारा संबंध है, हम आज के शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने इसमें हिस्सा लिया। पाकिस्तान अपनी भागीदारी के स्तर के बारे में कारण बता सकता है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या भारत के साथ चीन और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों का समूह पर कोई प्रभाव पड़ेगा तो स्वरूप ने कहा, ‘‘यदि सदस्य देशों में इच्छाशक्ति हो तो मुझे विश्वास है कि हम एक ही मंच पर आ सकते है।’’ स्वरूप ने कहा कि एससीओ सदस्य देशों के अलावा एससीओ के चार पर्यवेक्षक देशों अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया ने भी हिस्सा लिया। तुर्कमेनिस्तान को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।    

अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति नायडू ने पाकिस्तान के एक अन्य अप्रत्यक्ष संदर्भ में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एससीओ में जानबूझकर द्विपक्षीय मुद्दों को लाने के प्रयास किये गए और उन्होंने इसे सिद्धांतों और मानदंड़ों का उल्लंघन बताया। सितंबर के मध्य में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल एससीओ के सदस्य देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों की डिजिटल बैठक से उस वक्त बाहर निकल गए थे, जब पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने एक मानचित्र पेश किया, जिसमें कश्मीर को गलत तरीके से चित्रित किया गया था।    

बैठक के मानदंडों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करने के लिए भारत ने पाकिस्तान की आलोचना की थी। भारत 2017 में इस प्रभावशाली समूह का पूर्ण सदस्य बना था और उसके बाद पहली बार बैठक की मेजबानी कर रहा है। एससीओ के शासनाध्यक्षों की परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व प्राय: कैबिनेट स्तर के मंत्री करते है। पिछले वर्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उज्बेकिस्तान में इस बैठक में शामिल हुए थे।
कोरोना वायरस संकट और उसके प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों के महत्व के बारे में बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए व्यापार और निवेश में तेजी आयेगी।      
साथ ही उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास और व्यापार केवल शांति और सुरक्षा के वातावरण में चल सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘शांति प्रगति के लिए आवश्यक शर्त है।’’      
नायडू ने कहा, ‘‘हालांकि कोविड-19 महामारी ने सभी सदस्य देशों की आर्थिक रफ्तार को धीमा कर दिया है। भारत ने वैश्विक महामारी का बहादुरी से मुकाबला किया है और वायरस से लड़ने के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है।’’      
उपराष्ट्रपति ने 2021-2025 के लिए बहुपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग के कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना को मंजूरी देने के लिए एससीओ व्यापार मंत्रियों को भी बधाई दी।
नायडू ने कहा कि भारत एससीओ में अपने सहयोग को एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभाकर एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है।
उपराष्ट्रपति ने सरकार के ‘सबका साथ सबका विकास’ दृष्टिकोण के बारे में बात की। उन्होंने यह भी कहा कि भारत गुरु नानक की 551वीं जयंती मना रहा है, जिन्होंने दुनिया को शांति, परोपकार, सहयोग और परस्पर सम्मान का एक संदेश दिया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ये वे भारतीय मूल्य हैं जो शांति और प्रगति के एससीओ के दृष्टिकोण को भी रेखांकित करते हैं।’’

भाषा
नई दिल्ली


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