विवाहिता को मिल सकते हैं चार गुजारा भत्ते
वैवाहिक विवादों में गुजारे भत्ते को लेकर दिए अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विवाहिता चार कानूनों के तहत अलग-अलग गुजारा भत्ता पा सकती है।
![]() सुप्रीम कोर्ट |
पति की आमदनी और परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति शहर की जिम्मेदारी के मद्देनजर कुटुम्ब अदालतें गुजारे भत्ते की राशि तय करे।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा और आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने पति-पत्नी के बीच विवाद होने पर मेंटनेंस को लेकर विभिन्न हाईकोटरे और सुप्रीम कोर्ट के विरोधाभासी निर्णयों को दूर किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अलगाव का जीवन जी रही विवाहिता हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू एडोप्शन एंड मेंटनेंस एक्ट 1956, सीआरपीसी की धारा 125 तथा घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत गुजारा भत्ता पा सकती है, लेकिन उसे अलग-अलग कानूनों के तहत गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए यह बताना होगा कि उसे किस कानून में अदालत पूर्व में मेंटनेंस की धनराशि तय कर चुकी है। इससे अदालतें पत्नी की जरूरत और पति की आमदनी को देखकर भरण-पोषण की उचित धनराशि तय कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह चारों कानून अपने आप में स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं और महिला इन सभी कानूनों का इस्तेमाल कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने रजनीश बनाम नेहा के मामले में 66 पेज के जजमेंट में गुजारा भत्ते को लेकर गाइडलाइंस जारी की। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से फैमिली कोर्ट की राह आसान हो गई है। विभिन्न हाईकोटरे और सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट इस मुद्दे पर विरोधाभासी थे। कुछ निर्णयों में कहा गया था कि सभी कानूनों के तहत गुजारा भत्ता दिया जाए, जबकि कुछ सिर्फ अधिकतम मेंटनेंस के आदेश को अमल में ला रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ सीआरपीसी की धारा 125 में गुजारा भत्ता कब से दिया जाए, यह निर्धारित है, लेकिन बाकी कानूनों में यह नहीं बताया गया है कि परित्यक्ता को भरण पोषण की राशि कब से दी जाए। इस जजमेंट के बाद से सभी कानूनों के तहत गुजारे-भत्ते की रकम अर्जी दायर करने की तिथि से लागू होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ते की याचिका दायर करने के साथ आय और सम्पत्ति का विवरण एक हलफनामे में पेश किया जाएगा। उसमें यह भी बताना होगा कि शादी के बाद कितनी चल-अचल सम्पत्ति अर्जित की गई। बच्चों और ससुराल मे रहने सास-ससुर और अन्य बुजुगरे के लिए विवाहिता के योगदान को भी हलफनामे में रेखांकित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की प्रति सभी हाई कोटरे को भेज दी हैं, ताकि देश की सभी पारिवारिक अदालतें निर्धारित प्रारूप पर ही हलफनामा स्वीकार करे।
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