‘एक धक्का और दो’ का वीडियो कैसेट गड़बड़ पाया ट्रायल कोर्ट ने

Last Updated 01 Oct 2020 04:41:06 AM IST

बाबरी विध्वंस में ट्रायल कोर्ट का 2300 पेज का जजमेंट सीबीआई की नाकामियों से भरा हुआ है। अदालत में सबूत पेश करते समय कानून के बुनियादी सिद्धांतों को ताक पर रख दिया गया।


‘एक धक्का और दो’ का वीडियो कैसेट गड़बड़ पाया ट्रायल कोर्ट ने

राममंदिर आंदोलन के दौरान ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ का नारा बुलंद हुआ था। सीबीआई इस नारे का वैध वीडियो कैसेट पेश करने में नाकाम रही।
विशेष अदालत के निर्णय से सीबीआई की साख पर सवाल उठे हैं। अदालत ने कहा कि छह दिसंबर, 1992 को कार सेवा के दौरान नारे लगाए गए। जैसे-राम लाल हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। तेल लगाओ डाबर का, नाम मिटाओ बाबर का। राम नाम सत्य है, बाबरी मस्जिद ध्वस्त है। एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो। लाखों कार सेवक इस तरह के नारे लगा रहे थे। लेकिन भाजपा, विश्व हिंदू परिषद तथा अन्य हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोग, जिन्हें अभियुक्त बनाया गया है, वह इस तरह के नारे लगा रहे थे। यह सबूत के तौर पर पेश नहीं किया गया है।
विशेष न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा है कि अभियुक्तों की आवाज का नमूना लेकर उसे वीडियो कैसेट के साथ विधि विज्ञान प्रयोगशाला जांच के लिए नहीं भेजा गया। आवाज का नमूना लेकर जब तक मिलान नहीं किया जाए, यह अदालत कैसे मान ले कि उत्तेजित नारे अभियुक्तों ने ही लगाए और उसके फलस्वरूप कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। अदालत ने कहा कि जो भी वीडियो कैसेट पेश किए गए हैं, वह छेड़छाड़ युक्त हैं। संपादित वीडियो कैसेट पेश किए गए, जिन्हें सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। सीबीआई को चाहिए था कि समूची कानूनी प्रक्रिया के साथ मूल वीडियो कैसेट अदालत में पेश करती। ऐसे वीडियो कैसेट पेश किए गए हैं, जिनमें विज्ञापन भरे हुए हैं। यह कानूनी रूप से स्वीकार नहीं किए जा सकते।

इसी तरह सीबीआई ने अखबारों में प्रकाशित फोटो और खबरों को सबूत के रूप में अदालत में पेश किया है। लेकिन फोटो के साथ नेगेटिव संलग्न नहीं किए गए हैं। अखबारों में छपे अभियुक्त नेताओं के बयानों को भी आधार बनाया गया है। लेकिन संबंधित रिपोर्टर की मूल नोटबुक अदालत में प्रस्तुत नहीं की गई है। संवाददाता ने किस नोट-बुक पर यह सब लिखा और उसके बाद खबर के रूप में प्रकाशित किया, यह स्पष्ट नहीं है। अखबारों की छाया प्रति पेश की गई है, जिन्हें साक्ष्य के रूप में मंजूर नहीं किया जा सकता।
ट्रायल कोर्ट ने कहा कि एक अभियुक्त को अपनी जीप में मीर बाकी का शिलालेख दिखाते हुए दर्शाया गया है। लेकिन इस शिलालेख को बरामद नहीं किया गया। इसे तोड़ते हुए भी नहीं देखा गया। अराजक तत्वों ने बाबरी मस्जिद को निशाना बनाया। विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल कार सेवकों से कह रहे थे कि सरयू नदी के किनारे से दोनों मुट्ठियों में बालू भर कर लाओ और सांकेतिक कार सेवा करो। इसके पीछे उनका मकसद था कि कार सेवक अपने हाथ में फावड़े और कुदाल न लें। लेकिन सिंघल का यह भाषण सुनकर कार सेवक उत्तेजित हो गए और उन्होंने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। इसका मतलब है कि बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिए अभियुक्तों ने किसी भी तरह की साजिश नहीं रची थी।

सहारा न्यूज ब्यूरो/विवेक वार्ष्णेय
नई दिल्ली


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