मराठा आरक्षण पर रोक लगाई सुप्रीम कोर्ट ने
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग कानून, 2018 के क्रियान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।
![]() सुप्रीम कोर्ट |
इस अधिनियम के तहत महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को पिछड़ा मानकर उन्हें आरक्षण प्रदान किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया है। जस्टिस एल. नागेर राव, हेमंत गुप्ता और एस. रवीन्द्र भट की बेंच ने कहा कि 2020-21 में इस कानून के तहत नियुक्तियां और दाखिले नहीं होंगे लेकिन स्नातकोत्तर कक्षाओं में अभी तक हो चुके दाखिलों में बदलाव नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 50 फीसदी की सीमा लांघने के मुद्दे पर यह मामला चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए, ताकि वह इसे पांच या उससे अधिक सदस्यों वाली संविधान पीठ के सुपुर्द कर सके। इंदिरा साहनी मामले में 9 सदस्यीय बेंच ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 12 जुलाई को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग कानून, 2018 की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का निश्चय किया था। इस कानून के तहत राज्य में शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने का फैसला किया गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ बदलावों के साथ इस कानून को सही ठहराने के बंबई हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि यह आरक्षण 2014 से लागू करने का हाईकोर्ट का आदेश प्रभावी नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस कानून को पिछली तारीख से लागू करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने यह आदेश उस वक्त दिया जब एक वकील ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने 2014 से करीब 70 हजार रिक्तियों में आरक्षण लागू करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मराठा समुदाय के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और रोजगार के मामले में यह 12 फीसदी तथा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के मामले में 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। हाईकोर्ट ने 27 जून, 2019 के आदेश में कहा था कि विशेष परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट की 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा लांघी जा सकती है।
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