भारत कोई कमजोर देश नहीं, दुनिया की कोई ताकत उसकी एक इंच भी जमीन नहीं ले सकती : राजनाथ

Last Updated 17 Jul 2020 03:42:40 PM IST

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को कहा कि भारत कोई कमजोर देश नहीं है और दुनिया की कोई भी ताकत उसकी एक इंच जमीन नहीं ले सकती।


दुनिया की कोई ताकत एक इंच जमीन नहीं ले सकती : राजनाथ

उन्होंने चीन के साथ सीमा पर चल रहे गतिरोध के मद्देनजर सुरक्षा हालात का जायजा लेने के लिए लद्दाख का दौरा करते हुए यह बात कही।

लुकुंग में सेना और आईटीबीपी के जवानों को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को हल करने के लिए बातचीत चल रही है ‘‘लेकिन मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता कि इससे किस हद तक समाधान निकलेगा।’’



सिंह ने पेंगोंग झील के तट पर स्थित लद्दाख में एक अग्रिम सैन्य चौकी पर कहा, ‘‘भारत कोई कमजोर देश नहीं है। दुनिया में कोई भी ताकत भारत की एक इंच जमीन को भी नहीं छू सकती।’’

उन्होंने 15 जून को गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ झड़पों के दौरान भारत के 20 सैन्यकर्मियों की शहादत का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हम अपने जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंगे।’’

राजनाथ ने लद्दाख में सैन्य अभ्यास देखा

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को यहां ऊंचाई वाले एक अग्रिम अड्डे पर सैन्य अभ्यास देखा जिसमें हमलावर हेलीकॉप्टरों, टैंकों के साथ कमांडो भी शामिल हुए।

सैन्य अभ्यास में थल सेना और वायु सेना ने क्षेत्र में तैयारियों का प्रदर्शन किया। क्षेत्र में भारत और चीन तीखे सीमा गतिरोध में उलझे हुए हैं।

सैन्य अभ्यास में बड़ी संख्या में कमांडो, टैंक, बीएमपी युद्धक वाहनों, अपाचे, रुद्र और एमआई -17 वी5 हेलीकॉप्टरों ने भाग लिया।

जवानों ने रक्षा मंत्री सिंह की मौजूदगी में पैरा ड्रॉपिंग और अन्य करतबों का प्रदर्शन किया।

सिंह एक दिवसीय दौरे पर लेह पहुंचे। इस दौरान प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत और थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे भी मौजूद थे।

रक्षा मंत्री सिंह एक दिवसीय दौरे पर सुबह लद्दाख पहुंचे। रक्षा मंत्री के साथ जनरल रावत और जनरल नरवणे भी आए हैं।

पूर्वी लद्दाख में पांच मई से भारत और चीन के सैनिकों के बीच गतिरोध चल रहा है। गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प में भारत के 20 सैन्यकर्मियों के शहीद हो जाने के बाद यह तनाव बहुत अधिक बढ़ गया।

हालांकि कई दौर की राजनयिक एवं सैन्य बातचीत के बाद छह जुलाई से दोनों ओर के सैनिक पीछे हटने लगे।
 

भाषा
लुकुंग (लद्दाख)


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