सरकार के नए उपायों से होगा आदिवासियों का कल्याण: मुंडा

Last Updated 01 Jul 2020 11:23:30 AM IST

आदिवासियों के कल्याण और उनके जीवन स्तर में सुधार के लिए पिछले सात दशकों से तमाम योजनाएं चल रही हैं लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। इस दिशा में मोदी सरकार अब नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है।


केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के साथ सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय।

इस बारे में सरकार की क्या योजना है और इसको कैसे क्रियान्वित किया जा रहा है‚ इन तमाम मुद्दों पर जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत–

जनजातीय वर्ग में सिकलसेल बीमारी फैली हुई है। हर 86 बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी पाई जाती है। विश्व सिकलसेल दिवस पर आपने इसके लिए एक पोर्टल भी शुरू किया है। इस बीमारी से बचाव के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है और क्या कुछ आप कर रहे हैं?

मंत्रालय ने इसे बहुत ही संवेदनशील विषय के रूप में लिया है। जैसा कि आपने भी बताया कि हमने एक पोर्टल भी शुरू किया है। इसमें कई विशेषज्ञों को जोड़ते हुए इसका स्थाई समाधान क्या होगा‚ इस बारे में कोशिश की जा रही है। देश में जनजातीय क्षेत्रों और गैर जनजातीय क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर रक्त विकार की समस्या है। इसके कारण बहुत सारे लोग इससे प्रभावित होते हैं। मंत्रालय ने एक करोड़ से अधिक के आंकड़े एकत्रित किए हैं। उनके मुताबिक जैसा कि आपने बताया कि 86 बच्चों में से एक सिकलसेल बीमारी से पीड़ित है। यदि हम आकड़ों में देखें तो यह संख्या बहुत बड़ी हो जाती है। इसका एक स्थाई समाधान हो। हम चाहते हैं कि इसके लिए प्री काउंसलिंग या पोस्ट काउंसलिंग या पहले उपचार क्या होगा‚ स्वास्थ्य मंत्रालय और विभिन्न विशेषज्ञों के साथ मिलकर सोचा जा रहा है कि इसका एक स्थाई समाधान निकले। इसका समाधान नहीं होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में समस्याएं भी बढ़ती हैं और भ्रांतियां भी फैलती हैं। जब किसी मरीज में देखा जाता है कि रक्त विकार है तो यह अनुभव किया जाता है कि उसका इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होता है। इस कारण वह अन्य बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जब किसी को रक्त की कमी होती है तो लोग यह समझने लगते हैं कि इसे भूत प्रेत ने जकड़ लिया है और इसके रक्त को चूसा जा रहा है। ऐसे समय मे पीलिया के लक्षण ज्यादा दिखाई देते हैं और लोग पूजा पाठ पर ध्यान देने लगते हैं।

क्या अंधविश्वास की ओर ज्यादा बढ़ने लगते हैं?

हां‚ अधविश्वास की ओर बढ़ने लगते हैं। इसके समाधान के लिए मंत्रालय बहुत गंभीर है और इसका प्री या पोस्ट ट्रीटमेंट क्या होगा‚ इस बारे में पोर्टल से मदद मिलेगी। इस पोर्टल की लांचिंग के समय सीआईआई और फिक्की की प्रेसीडेंट भी साथ में थे। फिक्की की प्रेसीडेंट अपोलो हास्टिल की शीर्ष अधिकारी भी हैं।

आपका मंत्रालय डिजिटल जनजातीय कोष बनाने की योजना पर काम कर रहा है। इससे क्या फायदा होगा?

देखिए पहले क्या होता था कि हम राज्यों को मोटा मोटी रकम देते थे। इससे जनजातीय क्षेत्र के बच्चों को प्रेरित किया जाता था ताकि उन्हें अच्छी तालीम मिले। छात्रवृत्ति के माध्यम से उन्हें प्रोत्साहित करते थे। अब हमने इसे डिजिटल प्लेटफार्म पर लाकर लगभग 3‚000 करोड़ से अधिक की राशि सभी राज्यों के लिए आनलाइन पोर्टल सिस्टम में लागू कर दी है। अब विद्यार्थी चाहें दसवीं से पहले या बाद में‚ तकनीकी शिक्षा हो अथवा पीएचडी या विदेश में कहीं भी उच्च शिक्षा के लिए जाता है तो उसे आर्थिक मदद दी जाएगी। यह राशि उसके खाते में डीबीटी के माध्यम से सीधे कैसे पहुंचे‚ इसके लिए हमारा डिजिटल प्लेटफार्म तैयार हो गया है। हम विश्वास दिला रहे हैं कि अब लोगों को समस्याएं नहीं आएंगी।

पहले जनजातीय मंत्रालय के लिए क्या बजटीय प्रावधान होता था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक कार्यकाल पूरा करके दूसरे कार्यकाल में प्रवेश कर चुके हैं। जनजातीय वर्ग को पहले से ज्यादा सशक्त बनाने के लिए मोदी सरकार क्या खास कर रही है?

मैं आपको बता दूं कि जनजातीय वर्ग और इस क्षेत्र के विकास को लेकर प्रधानमंत्री बहुत ही संवेदनशील हैं। इसलिए उन्होंने प्रेरक जिलों के रूप में ऐसे सभी जिलों को सम्मिलित करते हुए प्रतिस्पर्धा कायम की है। चाहे स्वास्थ्य हो‚ शिक्षा हो‚ ग्रामीण विकास के क्षेत्र हों‚ पेयजल‚ स्वच्छता या सिंचाई हो यानी तमाम क्षेत्रों के समुचित विकास के लिए मूल्यांकन करते हुए वैसे जिलों के अधिकारी और जनप्रतिनिधिमिलकर उन्हें प्रोत्साहित करें‚ इस पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

केंद्रीय योजनाओं का आदिवासियों को पूरा लाभ पहुंचे‚ इसके लिए आप क्या कर रहे हैं?

इस क्षेत्र से जुड़ी योजनाओं की नियमित निगरानी हो रही है। दूसरा यह कि आपको ध्यान में होगा कि लंबे अरसे के बाद हमारा मंत्रालय अलग से बना है। हमारे लोकप्रिय नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इसे अलग मंत्रलाय का दर्जा दिया। पहले यह मंत्रालय गृह मंत्रालय के अधीन होता था। अलग मंत्रालय बनने के बाद इसके बजट में बढ़ोतरी हो रही है। अलग–अलग 43 विभाग के साथ समन्वय स्थापित करके बेहतर तरीके से काम को अंजाम तक पहुंचाया जा सके‚ इस पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। हमारे विभाग का एक बजट है और दूसरे 43 अलग–अलग विभागों के साथ जनजातीय विकास के लिए कैसे खर्च कर रहे हैं‚ उसका भी मूल्यांकन किया जाता है। यह एक बड़ा काम है और इसको और सशक्त बनाने की आवश्यकता है और जिनके लिए बजट बनता है। उन तक कैसे पूरा लाभ पहुंचे उस पर भी काम हो रहा है। कई रिपोर्ट्स ऐसी देखने को मिलती हैं किउनके नाम पर बजट तो बना लेकिन उस पर कुछ नहीं हुआ। यह बड़ी चिंता का विषय है। इससे मुझे व्यक्तिगत रूप से भी कष्ट हुआ। अब हम लोग यह कोशिश कर रहे हैं कि योजनाओं को दो तरह से प्रशासनिक व जनप्रतिनिधि और सोशल ऑडिट के आधार पर क्रियान्वित किया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ मिल सके।

आदिवासियों के कल्याण और उनके जीवन स्तर में सुधार के लिए पिछले सात दशकों से तमाम योजनाएं लागू की गई। फिर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकीं। इसके पीछे आप व्यक्तिगत तौर पर क्या वजह मानते हैं?

इसकी वजह बहुत हैं लेकिन एक वजह जो मैं मानता हूं कि उन क्षेत्रों को समझने का प्रयत्न ही नहीं किया गया। दूसरा विकास का जो मॉडल है उसको सही तरीके से उनके साथ तालमेल बिठाकर काम नहीं हुआ। झारखंड के बारे में बताऊं तो जब मैं मुख्यमंत्री था तो ३० साल बाद पंचायत का चुनाव कराया। तीन दशक तक उनकी भावना के आधार पर कैसे कार्य हो‚ कैसे योजना बने इस पर कोई चर्चा ही नहीं हुई। अधिकारी स्तर पर सचिव स्तर पर योजनाएं बनीं और जिनके लिए बनीं उन लोगों से तो चर्चा ही नहीं हुई। ग्रामीणों को मालूम ही नहीं है और उनके लिए आवंटित राशि येनकेन प्रकारेण खर्च कर दी गई और राशि का व्यय दिखाया गया। जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा के क्षेत्र में‚ स्वास्थ्य के क्षेत्र में शिक्षकों की भारी कमी है। पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी है। सभी राज्यों को ये विश्वास दिलाना चाहिए कि उन दुर्गम इलाकों में चुनौती है पर शिक्षा स्वास्थ्य के क्षेत्र में उचित काम हो और बहाली हो‚ यह विश्वास दिलाना होगा। बीते 40 साल में या आजादी के बाद से ही आप देखेंगे कि उन इलाकों की अनदेखी हुई और सही मायने में शिक्षकों की बहाली नहीं हो पाई या हुई भी तो डेपुटेशन पर होती थी। इसलिए जब मैं मुख्यमंत्री बना तो इस ओर मैंने ध्यान दिया और शिक्षकों को गृह पंचायत में बहाल करने की व्यवस्था की। लेकिन जब गृह पंचायत में बहाली की प्रक्रिया आरंभ हुई तो पता चला कि इसमें कभी टीचर नियुक्त ही नहीं हुए‚ कोई पात्रता निर्धारित ही नहीं की गई। इस तरह की समस्याएं अनदेखी के कारण हुई हैं। संवैधानिक व्यवस्था है लेकिन उसका जनजातीय इलाकों में गवर्नेंस के तौर प्रयोग नहीं किया गया। जरूरत है सरकार के प्रयास सतह पर उतरें जिससे कि आदिवासियों को लाभ मिले।

आपने सारी बातों को बहुत अच्छे से समझाया। आदिवासी बच्चों की शिक्षा भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। इनकी बेहतर शिक्षा के लिए किस तरह की योजना चल रही है और आगे क्या विजन है?

मैं समझता हूं कि देश के प्रधानमंत्री ने पहली बार ऐसी योजना बनाने के लिए मंत्रालय को जिम्मेदारी सौंपी है। अब जनजातीय इलाकों के प्रत्येक प्रखंड में जहां 20‚000 से ज्यादा आबादी है पहले चरण में 461 एकलव्य मॉडल स्कूल तीन वर्षों में खोलने के कार्यक्रम को एक अभियान के रूप में लिया गया है। इस दिशा में काम शुरू हो चुका है। यह आवासीय स्कूल होंगे। जो बाहर नहीं पढ़ा सकते उनके लिए एक अच्छा विकल्प होगा और भी स्कूल हैं शिक्षा विभाग के लेकिन ये एक मॉडल स्कूल होगा जिससे निश्चित रूप से लाभ होगा।

आदिवासी क्षेत्रों में कला संस्कृति समृद्ध है लेकिन जागरूकता का अभाव और सही मंच न मिलने के कारण उनकी कला आगे नहीं बढ़ पाती है। इसके लिए मंत्रालय किस तरह के प्रयास कर रहा है ताकि उनको भी मुख्यधारा में लाया जा सके‚ उनके काम को प्रोत्साहन मिल सके और लोग देख सकें कि जंगल में रहने वाले अंतिम व्यक्ति के पास भी हुनर है?

देखिए‚ कला की बात करें तो आदिवासी समाज में सबसे बड़ी कला है संतोषी जीवन। अभाव में रहने के बावजूद जंगल में रहकर खुश रहने की जो परंपरा है वह बहुत बड़ी निधि है। उन्हें उस तरीके से प्लेटफार्म नहीं मिला है और अभी जो आपाधापी चली है इसके चलते उनकी सांस्कृतिक विरासत पर भी थोड़ा बहुत प्रहार हो रहा है। यह हमारे लिए चिंता का विषय है। कला संस्कृति एक अलग मंत्रालय है ये बात सही है लेकिन आदिवासी कलाओं की जीवंतता को बनाए रखने पर हम विचार कर रहे हैं। देखिए वे तो अपनी जिंदगी में खुश हैं और आदिवासी नृत्य संगीत उनके जीवन का हिस्सा है और आदिवासी उसको दिल से जीते हैं। अब उस धरोहर को स्थानीय स्तर पर कैसे संजो कर रखा जाए और बेहतर तरीके से उसका प्रोजेक्शन हो इस पर भी विचार चल रहा है। कला के बिना तो मानव जीवन ही अधूरा है। अपनी जगह वे आनंदित हैं और वे प्रकृति के स्पंदन में जीते हैं। उसका अपना ही आनंद है।

अर्जुन जी कला संस्कृति की बात हो रही है तो मुझे पता चला है कि आप बांसुरी बहुत अच्छा बजाते हैं। यह आपने कब और कैसे सीखा?

नहीं‚ बहुत अच्छा तो नहीं बजाते हैं पर ठीक है। कभी–कभी फूंक लेते हैं। हमारा गांव जंगलों में था। हालांकि अब तो थोड़ा शहरीकरण हो गया है लेकिन तब बचपन में हम लोग खुद ही बांसुरी बना लेते थे और फूंकते रहते थे। गांव के जो संगीत हैं वह थोड़ा बहुत बजा लेते थे। वैसे हम कोई प्रोफेशनल नहीं हैं और न ही तालीम ली है।

बिल्कुल‚ तालीम लेने वाले अक्सर फेल हो जाते हैं। आप गजल भी अच्छा गाते हैं। हमारे किसी साथी ने बताया‚ इस बारे में क्या कहेंगे?

मुस्कुराते हुए। देखिए जनजातीय जीवन बहुत ही स्पंदन वाला होता है। जनजातीय परिवार में जन्म लेने को मैं विशेष मानता हूं। अब इसे हमारी ताकत कहें या कमजोरी। हम आदिवासी जब गांव में अपने समुदाय में मिलते हैं तो गुनगुनाते हैं। अब उसे गीत कहिए या गजल। गजल समझी जाती है और गीत गाया जाता है।

हालांकि आप मर्यादित जगह पर हैं। यदि स्वेच्छा हो तो गजल गुनगुना सकते हैं।

इस समय नहीं गुनगुनाऊंगा। पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है। फिर कभी गाऊंगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री ने संकल्प के साथ इस महामारी को खत्म करने का बीड़ा उठाया है वह हो जाए फिर जरूर गुनगुनाऊंगा।

बात कोरोना की है तो सीधा सवाल ये कि दुनियाभर की तमाम बीमारियां अर्बन सिटीज में पहुंच जाती हैं लेकिन कोरोना काल में भी जंगल में रहने वाला आदिवासी समाज इससे मुक्त है। हालांकि उनकी वहां की स्थानीय बीमारी से वह ग्रस्त होते हैं। कोरोना का खास असर उन पर नहीं है। आप क्या वजह मानते हैं कि जो आदिवासी क्षेत्र हैं वह खुश हैं और बीमारियों से काफी हद तक मुक्त हैं?


साल में दो–चार ऐसे त्योहार होते हैं जब लोग मिलते हैं‚ गीत संगीत और मिलन का कार्यक्रम होता है लेकिन परंपरागत दृष्टि से आप देखेंगे तो किसी भी मौके पर जब लोग इकट्ठा होते हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं। यानी जिसको जहां बैठने के लिए पत्थर मिला या खटिया तो एक निश्चित दूरी बनाकर लोग बैठते हैं। आदिवासियों में सोशल डिस्टेंसिंग की एक तरह से पुरानी परंपरा है। जो गांव के मुखिया होते हैं‚ वे बुलाते हैं तो जिसको जहां जगह मिलती है वह वहीं स्थान ग्रहण कर लेता है। देखिए‚ आदिवासी एक चरित्र है और चरित्र क्या हम कोई भी बात को तुरंत प्रतिक्रियात्मक होकर नहीं लेते हैं। धीरे से बात करते हैं और पूछने के बाद कहते हैं कि यह ठीक है या ठीक नहीं है। यदि हमने एक बार कह दिया और नजरअंदाज कर दिया गया तो दोबारा कहने की इच्छा भी नहीं होती है। सोशल डिस्टेंसिंग हमारी एक परंपरा है बल्कि मैं तो यही कहूंगा कि हमें अवसर मिला है कि प्रकृति की ओर लौट चलें। देखिए जंगल में औषधि है। लोग जो भाग रहे थे‚ आपाधापी थी‚ शहरों में दूर निकलने की बहुत जल्दबाजी थी। आप देख रहे हैं सब रुक गया। कोई कहीं नहीं जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय विमान सब बंद हैं। यह संकेत है प्रकृति को नमस्कार करने और उसके महत्व को समझने का।

आपका मानना है कि झारखंड सरकार कोरोना महामारी को लेकर संवेदनशील नहीं है और सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहती है। आपकी नजर में इस समय राज्य की क्या स्थिति है?

इस समय कोरोना महामारी से पूरा देश लड़ रहा है। प्रधानमंत्री नेतृत्व कर रहे हैं‚ सबकी कोशिश है कि इससे हम मुक्त हों। हमने जो भी कदम उठाए और जिस तरह से संख्या में गुणात्मक सुधार हो रहा है यह हमारे लिए अच्छा संकेत है। इस समय हम बहुत आलोचना नहीं करेंगे‚ लेकिन हां ये बात सही है कि कुछ चीजों में राज्य सरकार को और संवेदनशील होने की आवश्यकता है। इस तरह की स्थिति में सतर्कता ही हमारी दवा है। खासकर आपदा प्रबंधन की जो व्यवस्था है वो गरीब आदमी तक जरूरतमंद तक पहुंचे। यह महती जिम्मेदारी है‚ इसमें कोई चूक नहीं होनी चाहिए। मैं आलोचना के स्वर में नहीं कहूंगा पर यह जरूर कहूंगा कि भारत सरकार ने एक योजना बनाई है‚ गरीब कल्याण योजना‚ इसके तहत किसी जरूरतमंद को कोई कठिनाई न हो और उसको लाभ मिले इसकी व्यवस्था हो। एफसीआई के गोदाम में चावल‚ चना‚ गेहूं‚ दाल‚ तेल सब उपलब्ध कराया गया है तो वह सही ढंग से लोगों तक पहुंचे ये जरूरी है‚ लेकिन कई जगह से ये सूचना मिली कि राशन वाले मालामाल हो गए हैं। वह लोग गरीबों का राशन बाजार में बेच रहे हैं। ऐसा क्यों है इसकी राज्य सरकार को जांच करानी चाहिए। डिजास्टर मैनेजमेंट के स्तर पर यदि कोई अनियमितता बरती जा रही है तो यह देखने की आवश्यकता है। हमने राज्य सरकार से भी कहा है कि यदि किसी भी तरह के सहयोग की आवश्यकता है तो हमें बताएं‚ लेकिन राज्य सरकार ने किसी भी तरह की कोई बात हमें नहीं बताई है‚ लेकिन हम आलोचना नहीं करना चाहते।

महामारी में बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हुई है जिसमें आदिवासी भी शामिल हैं। इनके रोजगार और पुनर्वास को लेकर क्या कोई योजना तैयार की गई है?

देखिए‚ हमारा मंत्रालय जो निचले स्तर पर सीधे तौर पर जिम्मेदार है वो आईटीडी (इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट) है। देश भर में जिला स्तर पर आईटीडी काम कर रहा है। हमने कहा है कि ट्राइबल माइग्रेंट कितने हैं‚ इसका डेटा बनाए और गांव में 18 साल की आयु से ऊपर के युवा कौशल विकास का प्रशिक्षण लेने के बाद क्या कर रहे हैं। क्या वो आगे की पढ़ाई कर रहे हैं। इन सबकी भी जानकारी इकट्ठा की जाए। हाईस्कूल की पढ़ाई करने के बाद जो भी मैनपावर गांव में उपलब्ध है उसकी मैपिंग हम करा रहे हैं और काम की आवश्यकता के अनुसार किस तरह से उनका समायोजन हो उसके प्रति हम काफी गंभीरता से विचार कर रहे हैं। प्रोजेक्ट किस तरह का हो और प्रोडक्ट को कैसे आगे बढ़ाएं और बाजार से उसे कैसे जोड़े साथ ही अलग–अलग विभागों के बीच कैसे सामंजस्य हो इस पर भी हम खास ध्यान दे रहे हैं। कोरोना वायरस ने हमें बहुत बड़ा अवसर भी दिया है कि कमियों का विश्लेषण करके उन्हें कैसे दूर किया जाए। किसी भी योजना को लागू करना और समुचित लाभ प्राप्त करना ये दोनों अलग–अलग हैं।

स्किल मैपिंग एक बड़ा सवाल है पूरे देशभर में जो इंडेक्सिंग हो रही है डाटा तैयार हो रहा है जाहिर सी बात है आत्मनिर्भर भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण डाटा होगा। कोरोना महामारी को देखते हुए सरकार ने वन तुलसी बीज‚ वन जीरा बीज‚ इमली बीज समेत सभी तरह के माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूज की न्यूनतम एमएसपी तय करने का फैसला लिया है इसके बारे में विस्तार से बताएं।

बहुत सारे वनोपज ऐसे हैं जिनमें औषधीय गुण होते हैं। येन केन तरीके से लोग उन्हें खरीदने–बेचने का काम करते हैं। पहले 12 वस्तुओं पर समर्थन मूल्य तय किए गए थे। अब हमने लगभग 70 ऐसी वस्तुओं को चिह्नित करके तय किया है कि उसको न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए। इसके माध्यम से जो संकलन करता है वो पौधों को उखाड़ कर ही न ले जाए। आदिवासी ऐसा नहीं करते‚ वो चाहते हैं कि उनका जंगल बचा रहे और अगले वर्ष हम उतनी ही मात्रा को उपयोग में लाए जिससे कि वनोपज को संरक्षित कर सके। इन सारी चीजों को मैपिंग करने की आवश्यकता है और इसका बाजार अच्छे ढंग से बनाने की आवश्यकता है। आदिवासी इलाके में परंपरागत औषधि है या जिसे हम आयुर्वेद कहते हैं‚ वन औषधि कहते हैं‚ उसका सही ढंग से संरक्षण‚ संवर्धन‚ उत्पादन और बाजार भी हो और ट्राइबल को उसका भरपूर लाभ भी मिले।

अर्जुन जी झारखंड जैसे राज्य के आप तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। करीब से आपने देखा है जो नक्सली घटनाएं होती हैं या जो नक्सली बनते हैं‚ आश्रय लेते हैं‚ खास कर उन इलाकों में जहां आदिवासी रहते हैं‚ वहां वो बहुत जल्दी अपना आधार बना लेते हैं। जाहिर सी बात है कि आदिवासियों को मुख्यधारा में जोड़ने में वह मुश्किलें पैदा करते हैं और ये आरोप लगाते हैं कि उनके संसाधन का दोहन किया जाता है और वामपंथी विचारधारा वाले वहां पर अपना दबदबा बनाते हैं। उनको मुख्यधारा में जोड़ने में बाधक बनते हैं। फिर नक्सली हिंसा में हिस्सा लेने लगते हैं तो इस तरह की जो घटना होती है क्या वजह है कि इस तरह के लोग वहां पर ज्यादा महफूज महसूस करते है जंगल उसका मुख्य आधार है या कुछ और?

गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन से पहले बहुत ही महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की थी। बैठक में इस पर बल दिया गया था कि जो आदिवासियों के अधिकार हैं‚ जो आदिवासी क्षेत्र हैं‚ ऐसे कार्यक्रम को जल्द से जल्द लाकर उनके अधिकारों की रक्षा की जाए। सवाल यह है कि सरकारें इस मामले में पहले चिंता करने में विफल रही हैं। देखिए‚ हवा अपनी जगह बना लेती है‚ हवा किसी की प्रतीक्षा नहीं करती‚ जहां खालीपन रहेगा‚ वहां हवा प्रवेश कर जाएगी। डेमोक्रेटिक सिस्टम जब कमजोर होना शुरू हो जाता है तो दूसरा जो अपने स्वार्थसिद्धी के लिए अपने एजेंडे का प्रचार–प्रसार करता है और उसे इसका मौका मिल जाता है। पिछले 6–7 दशक में यही चीजें हुई हैं। इसको आधार बनाकर के भोले–भाले जनजातीय समाज को उलझाने का काम किया गया है। अब हमारी यह जिम्मेदारी है कि उन भ्रांतियों को दूर करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कोशिश कर रहे हैं कि उनके संवैधानिक आधिकार को संरक्षित किया जाए। अब हम इस मंत्रालय को देख रहे हैं तो मैंने फॉरेस्ट एक्ट को लेकर जितनी भी भ्रांतियां हैं‚ उनको दूर करने का प्रयास किया है और जंगल देश का है और उसमें रहने वाले आदिवासियों के साथ ताल–मेल बैठाकर कैसे विकास भी हो और उनका जीवन भी सुरक्षित हो। हम चाहते हैं कि पर्यावरण संतुलन बना रहे। हमारा जीवन प्रकृति से जुड़ा हुआ है और हम उसमें काट–छांट करके चले तो यह उचित नहीं है। प्रकृति पर हमारा जीवन आधारित है और हमें उसका सम्मान करना चाहिए।

महामारी में डिजिटल तकनीक का सहारा लिया जा रहा है वन उपज को ऑनलाइन बाजार मिल सके उसको लेकर आपका मंत्रालय क्या तैयारी कर रहा है।

ट्राई फेड के माध्यम से हमने एक बड़ी चेन बनाने का प्रयास आरम्भ कर दिया है। कई और लोगों को जोड़ने का काम किया है। हमारे गांवों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रोडे़क्ट मौजूद हैं। ऐसे सभी प्रोडे़क्ट को चिह्नित किया जा रहा है ताकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार मिल सके। इसके मद्देनजर हमने अमेजन के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत हम 170 देशों में अपने उत्पाद को बेच सकेंगे। हमारे जेम पोर्टल में हमने व्यवस्था की है कि उसमें भी हमारे पोर्टल का सही तरीके से डिस्प्ले हो।

आदिवासी क्षेत्रों में जिस तरीके से जड़ी बूटियों का खजाना है जाहिर सी बात है आपने पहले भी कहा कि पूरी दुनिया आयुर्वेद की ओर जा रही है और यह जानना चाह रही है कि भारत में लोग हजारों साल तक जीते थे। वनों के संपर्क में रहते थे। प्रकृति के संपर्क में रहते थे‚ जो वन संसाधन है उनके उपयोग और विकास को लेकर उसके लिए अलग से आपका मंत्रालय क्या कर रहा है?

मैंने आपको बताया कि ट्राई फेड हमारा फेडरेशन है। स्टेट लेवल पर बहुत सारी योजनाएं माननीय प्रधानमंत्री ने लॉन्च की हैं। वन धन योजना इसके माध्यम से हमारी कोशिश है कि जगह–जगह बल्क प्रोडक्शन जड़ी–बूटियां आयुर्वेद जो इकट्ठा हो‚ सुरक्षित हो‚ संरक्षित भी हो और उसका प्रोडक्शन भी सही ढंग से हो और बाजार भी मिले‚ उसके लिए हमारा प्रयास जारी है।

झारखंड और छत्तीसगढ़ समेत तमाम आदिवासी बहुल्य राज्यों में प्रधानमंत्री का सबका साथ सबका विकास का जो नारा है कितना फायदेमंद रहा है अर्जुन जी।

ये नारा नहीं है यह हृदय के भाव हैं। यह माननीय प्रधानमंत्री का एक संवेदनशील नेतृत्व का बहुत बड़ा उदाहरण है कि एक समूह के तौर पर एक साथ भारत कैसे आगे बढ़े‚ इसका एक संकल्प है इसलिए उन्होंने कहा है कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास।

लंबे समय बाद भारतीय जनता पार्टी में बाबूलाल मरांडी की वापसी हुई है आपसे उम्र में तजुर्बे में बड़े हैं‚ लेकिन आप तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं क्या आपको लगता है कि एक बार फिर मजबूती से भारतीय जनता पार्टी उभरेगी?

भाजपा अभी भी ताकतवर है मत प्रतिशत को देखें तो आपको अंदाजा लग जाएगा‚ लेकिन बाबूलाल मरांडी के आने से मैं समझता हूं कि ग्राउंड पर और मजबूती मिलेगी। आने वाले समय में अच्छा परिणाम देकर के राज्य की बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

मौजूदा सरकार जो झारखंड में है‚ जो तीन पहिए पर खड़ी है झारखंड के लिए चुनौती यह रही है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सके। क्या आपको लगता है कि यह सरकार कार्यकाल पूरा कर पाएगी या फिर महाराष्ट्र की तरह जो देवेंद्र फडणवीस कहते हैं कि इस सरकार को गिराने की जरूरत नहीं है यह अपनी अंतर्कलह से ही गिर जाएगी?

मैं इस तरह की बातों पर टिप्पणी नहीं करता हूं लेकिन जिस तरह की बातों को मैं देख रहा हूं स्वतः जनता अंदाजा लगा सकती है कि जो कार्यक्रम झारखंड में अभी होना चाहिए वो सही ढंग से नहीं चल पा रहे है। मुझे लगता है कि आपस में उलझन है और इसीलिए जनता के काम में कोई गति नहीं है एक वैक्यूम दिख रहा है। मैं यही सुझाव दूंगा आपको जनता ने चुना है आप बेहतर काम कीजिए। आप देखिए प्रधानमंत्री ने कोल के ऑक्शन को लेकर एक फैसला लिया है जिससे राज्य को अधिक से अधिक लाभ मिले। रॉयल्टी के अलावा भी रिवेन्यु मिले उन योजनाओं के बारे में राज्य सरकार का जो रिएक्शन है मैं तो यही सुझाव दूंगा कि आप राज्य को लांग टर्म के रूप में देखे‚ शॉर्ट टर्म के साथ–साथ भविष्य का भी ध्यान रखें और यह सुनिश्चित कीजिए कि राज्य का निर्माण कार्य सिर्फ आपके शासन काल में नहीं हो रहा है बल्कि पहले से भी हो रहा है।

आपने अपने कार्यकाल को अच्छे से चलाया कोई खास घोटाला नहीं हुआ दूसरे दलों के हाथ में जब–जब सत्ता आई है ईडी और सीबीआई की जांच और यह घोटाला वो घोटाला ठेका पट्टा जैसे विवाद गहराते रहे इसके पीछे आप क्या वजह मानते हैं?

क्षेत्रीय पार्टी के रूप में हमारे बहुत से प्रदेश अच्छा काम कर रहे हैं‚ लेकिन यहां क्या हो रहा है कि जो पारदर्शिता के आधार पर काम करने की जो जीवटता चाहिए जो संकल्प चाहिए उसमें कमी दिखती है। जब प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी तो सवाल तो खड़े होंगे ही। यह सारी कठिनाई कई बार झारखंड में हुई है। कांग्रेंस ने कभी एक निर्दलीय को मुख्यमंत्री चुन लिया अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिसकी कोई जबावदेही ही नहीं है न दलीय न नैतिक उसको एक राज्य का नेतृत्व करने के लिए छोड़ दिया उसकी आलोचना करते हुए भी बहुत कुछ नहीं मिलने वाला है। ये सुनिश्चित करने की आवश्यक्ता है कि आने वाले समय में ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो।

आखिरी कुछ सवाल हैं। झारखंड जैसे समृद्ध राज्य में अथाह गरीबी है जितनी होनी चाहिए दूर–दूर तक देखने को नहीं मिलता है ऐसे में उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए क्या होना चाहिए। मान लीजिए आप फिर मुख्यमंत्री बने तो क्या करना चाहेंगे?

सारे सिस्टम को स्ट्रीमलाइन करना चाहिए जैसे डीएमएफ फंड की जिम्मेदारी स्टेट गवर्नमेंट की होती है मॉनीटिरंग अच्छे तरीके से हो जो कार्ययोजना है वो पूरे विजन के साथ बनानी चाहिए‚ पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए। रेवेन्यू का अच्छे ढंग से हो और सही निगरानी हो‚ नहीं तो रिसोर्स को बेच दिया जाएगा और लोग देखते रह जाऐंगे। पहले जो रॉयल्टी सिस्टम था उससे बहुत लाभ नहीं मिलता था कई सुधार किए गए हैं‚ आगे भी किए जाएंगे‚ लेकिन हां राज्यों की जिम्मेदारी इसमें ज्यादा बनती है। इस समय जो केंद्र सरकार ने फैसला लिया है उसमें ऑक्शन की राशि राज्य सरकार को मिलेगी और ऐसी राशियों का लांग टर्म विजन के साथ टीम वर्क के साथ काम करना चाहिए जिससे राज्य को लाभ मिले।

आखिरी सवाल मुंडा जी आपने वाजपेयी जी का भी कार्यकाल देखा यूपीए का भी 10 साल कार्यकाल देखा अब 6 साल से मोदी सरकार के कार्यकाल को देख रहे हैं प्रधानमंत्री दुनिया के सबसे शीर्षस्थ नेता घोषित हुए हैं। दुनिया की 6 बड़ी एजेंसियों ने उनके बारे में अपनी–अपनी रेटिंग दी है। आप प्रधानमंत्री के अंदर क्या विशेष पाते हैं। भारत का नेतृत्व सफलता पूर्वक करते हुए विश्व में भी अपनी ख्याति फैला रहे हैं।

वैसे तो सारे प्रधानमंत्रियों ने अपने–अपने समय में काम किया है‚ लेकिन इनमें जो गुणात्मक रूप मैं देखता हूं कि न् हम मानव प्रबंधन पर ज्यादा जोर दे रहे हैं स्किल पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। ये कोशिश जारी है कि हमारी वास्तविक ताकत उभर कर सामने आए। हमारी आबादी हमारी ताकत है‚ कमजोरी नहीं। देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि 130 करोड़ जनता हमारा परिवार है‚ इसको साथ लेकर चलना है और ये जो ताकत है इसको दुनिया को बताना भी है। इस कमिट्मेंट के साथ एक राष्ट्रभक्ति के साथ जो विचार कुंद हो रहा था उस राष्ट्रीय विचार को मजबूती से वो सामने लाए हैं। प्रधानमंत्री ने छिपाने का नहीं‚ बल्कि सार्वजनिक करके रास्ता निकालने का काम किया है यानी रिस्क मैनेजमेंट की जो क्षमता है वो अभूतपूर्व है।

आत्मनिर्भर भारत एक विचार के साथ एक दर्शन के साथ घोषित किया है। आत्मनिर्भर भारत अभियान आपदा को अवसर में बदलने में कामयाब होगा?

दुनिया में बहुत सारे अविष्कार जो हुए हैं वो आवश्यकता के अनुसार हुए हैं। मैं समझता हूं कि ये आपदा हमारे इनोवेशन का मार्ग प्रशस्त करेंगी। इसलिए ये एक अवसर है और हम आत्मनिर्भर भारत को आगे बढ़ा सकते हैं। हम अपनी क्षमता का विकास कर सकते हैं। सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया है जो हमें आत्मनिर्भर बनाने में मददगार होगा। इसमें देश के सभी नागरिकों को भावनात्मक रूप से अपनी भूमिका निभानी होगी और हम सफल होंगे।



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