हमें चीन को अपने बटुए से सपोर्ट करना छोड़ना होगा : वांगचुक

Last Updated 28 Jun 2020 01:21:14 AM IST

रेमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत।


सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं रेमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक

पूर्वी लद्दाख में सीमा पर तनाव पैदा करने के पीछे चीन की असल रणनीति, मौजूदा समय में चीन के आंतरिक हालात और उसे कड़ा सबक सिखाने में भारतीय जनमानस की कितनी बड़ी भूमिका हो सकती है, जैसे तमाम मुद्दों पर रेमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं  एडिटर इन चीफ  उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत-

आपने चीन को सबक सिखाने के लिए ‘बुलेट नहीं वॉलेट’ का मंत्र दिया है। इसके पीछे आखिर क्या सोच रही है आपकी?
सीमा पर चीन ने जो कुछ भी किया है, वह सिर्फ  सैन्य घुसपैठ नहीं है। यह चीन के आंतरिक मामलों को भी दिखाता है। चीन की जनता अपनी ही सरकार से नाराज है। वहां उद्योग, व्यापार, निर्यात सब कुछ ठप हो चुका है। चीन में इस वक्त विद्रोह की स्थिति बनी हुई है। चीन इस तरह की रणनीति अपनी जनता का ध्यान हटाने के लिए पहले भी आजमाता रहा है। यदि विवाद सिर्फ  भारत के साथ होता तो और बात थी। ताइवान, वियतनाम, हांगकांग और यहां तक कि अमेरिकी सेनाओं के साथ भी चीन लगातार बौखलाहट दिखा रहा है। एक ऐसे समय पर जब कोरोना वायरस सबसे ज्यादा चीन में है, उस वक्त वह सैनिकों के जरिए अपनी जनता का ध्यान भटका रहा है। हमें भी चीन के इस डर का ही इस्तेमाल करना चाहिए। चीन को सबसे ज्यादा डर अपने व्यवसाय और आर्थिक स्थिति के गिरने का है। सैनिकों के साथ-साथ हमारे नागरिकों को भी चीन के इस डर को बढ़ाना चाहिए। आर्थिक हमला करना चाहिए। हमारे बटुए से ही चीन आज इतना बड़ा बना है। 30 साल पहले चीन कुछ भी नहीं था। एक वक्त में कई देशों के साथ एक साथ टक्कर लेना साफ दिखाता है कि चीन की आंतरिक स्थिति बहुत बुरी है। बेरोजगारी 20 फ़ीसदी तक पहुंच गई है। चीन में तानाशाही है और यह कोई पहला मौका नहीं है, जब चीन ने इस तरह की चाल चली हो। 1962 की जंग के बारे में हमें लगता है कि चीन ने भारत के साथ युद्ध किया। हकीकत यह है कि 1958 से 1962 यानी 4 साल तक चीन में भयंकर भुखमरी का दौर था। जनता विद्रोह कर रही थी। तब भी चीन ने हमारे साथ झगड़ा मोल लिया ताकि अंदर का मामला संभाल लिया जाए। जब बाहर बड़ा युद्ध होता है तो जनता का समर्थन मिलना शुरू हो जाता है और यही चीन की चाल है।

आपने वीडियो संदेश जारी कर देशवासियों से चीनी उत्पादों के बहिष्कार के साथ चीन के मोबाइल एप अनइंस्टॉल करने की अपील भी की है। आपका ये संदेश काफी असर डाल रहा है.क्या कहेंगे आप?
फौरन रिस्पांस के लिहाज से देखा जाए तो अच्छा है लेकिन इस तरह की मुहिम का आकलन 2 या 3 दिन में या कुछ सामानों को तोड़फोड़ कर या जलाकर नहीं किया जा सकता। आने वाले दिनों में फिर 2 रु पए सस्ते सामान के चक्कर में हम चीन के सामान को खरीदने लगें। यह बात 3 दिन की नहीं कम से कम 3 साल की है। 3 साल तक हमें चीन को अपने बटुए से सपोर्ट नहीं करना है। चीन बीमारी फैलाने वाला, तबाही फैलाने वाला एक देश है। उसे आर्थिक रूप से तोड़कर ही सबक सिखाया जा सकता है। धीरे-धीरे करके चीनी सामानों पर निर्भरता कम करनी होगी। इससे हमारे यहां नए उद्योगों को विकल्प भी मिलेगा। 2 से 3 साल में सारी कंपनियों को भी अपने चीनी स्रोत बदलकर कहीं और ले जाने का मौका मिलेगा। भारत में भी हमें हालात सुधारने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब हमें काम करना होगा। व्यापार के लिए सहूलियत देनी होगी। लालफीताशाही को कम करना होगा ताकि व्यवसाई हमारे यहां पर आएं। यदि हम यह काम नहीं करेंगे तो चीन से हटकर व्यवसाई कहीं और जाने लगेंगे।

चीन निर्मिंत सामान का बहिष्कार किस-किस स्तर पर होना चाहिए.. सीमा पर तनाव के बाद सरकार ने चीन की कुछ कंपनियों के कान्ट्रैक्ट या तो रद्द कर दिए हैं या फिर रोक दिए हैं..लेकिन इससे चीन पर कितना दबाव बन पाएगा?
दबाव जनता के स्तर पर बने तो ज्यादा अच्छा। इसके दो महत्वपूर्ण कारण हैं। पहला यदि जनता नहीं जागरूक होगी तो सरकार कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि अंतत: जनता को ही सामान खरीदना है या नहीं इसका फैसला करना है। दूसरा यदि हम सरकार पर छोड़ देंगे तो दोनों सरकारें अलग स्तर पर बात करेंगी। वह हमारा सामान बैन करेंगे हम उनका सामान बंद करेंगे। दोनों का नुकसान होगा। ग्राहक राजा होता है। यदि ग्राहक ही सामान का बहिष्कार कर दे तो उसके सामने विनती करने के अलावा और कोई चारा नहीं हो सकता। इसीलिए चीन को सबक सिखाने के लिए जनता को मोर्चा संभालना चाहिए।

आप कहते हैं कि हम चीन से मोतियों से लेकर कपड़ों तक 5 लाख करोड़ का सामान खरीदते हैं और यही पैसा सीमा पर हथियार और बंदूक के तौर पर वापस हमारे सैनिकों की मौत का कारण बन जाता है? इस बारे में आपसे जानना चाहेंगे?
जब आप अपने घर में देखेंगे तो आपको बहुत सी चीजें दिखाई देंगी, जो बताती हैं कि चीन पर हमारी निर्भरता कितनी ज्यादा है। जो जरूरी सामान है, उन्हें रहने दें लेकिन हम गैर जरूरी या छोटे-मोटे सामानों के लिए भी चीन पर निर्भर हो गए हैं। आज तो हालात यह है कि यदि चीन कह दे कि हम सामान नहीं देंगे, तो हमारी हालत खराब हो जाए। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए हमें खुद को आत्मनिर्भर बनाना होगा। अपने स्वाभिमान और सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी अपनी है।

पिछले एक दशक में भारत में चीन का निवेश तेजी से बढ़ा है। हाल के कुछ वर्षो में चीन ने भारत में करीब 85 हजार करोड़ के इन्वेस्ट किए हैं। देश में चल रहे 30 बड़े स्टार्टअप में से 18 यानी 60 प्रतिशत स्टार्टअप में चीन का ही पैसा लगा है। इसलिए चीन से टाईअप तोड़ना कितना आसान है? 
समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। शुरु आत में हर चीज कठिन लगती है। निवेश के लिए भी 4 से 5 साल का समय अभी लगेगा। जिन कंपनियों में चीनी निवेश हुआ है, वह खुद अभी सोच रही होंगी कि हालात जल्दी बदल जाएं। जनता को ऐसे निवेश का समर्थन नहीं करना चाहिए। जब जनता इन सामानों को नहीं खरीदेगी, तो खुद ही यह कंपनियां सुधरेंगी। योजनाबद्ध और नीतिबद्ध तरीके से इस में आगे बढ़ना होगा।

भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर में चीन ने कई निवेश हांगकांग और सिंगापुर या किसी तीसरे देश के जरिए भी कर रखा है। ऐसे में आर्थिक मोच्रे पर चीन को चुनौती देने में कितनी बड़ी चुनौती है?
निवेश के लिए बहुत सारे मौके होते हैं। हमें भी अन्य देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने चाहिए। उदाहरण के लिए जापान एक ऐसा देश है, जहां बैंक में पैसे रखने पर उल्टा पैसे देने पड़ते हैं। हमें यहां से निवेशकों को अपने यहां बेहतर अवसर और परिस्थितियां देनी होंगी। हमें अपनी नीतियों को बदलना होगा। चीन से हटकर अन्य देशों की तरफ बढ़ना होगा। कुल मिलाकर मकसद होना चाहिए चीन पर निर्भरता कम से कम होना और यह मुमकिन है। हमारे यहां कहते हैं जहां चाह वहां राह।

चीन सिर्फ  भारत के साथ ही नहीं, वो दक्षिण चीन सागर में वियतनाम, ताइवान और हांगकांग के साथ भी ऐसा ही कर रहा है..क्या वजह मानते हैं आप?
यह चीन का गुस्सा नहीं है अपनी जनता से डर है। वह अपनी जनता से बहुत डरता है। हर तानाशाही में जनता का डर होता है। आप देखिएगा कि आने वाले समय में यहां तख्तापलट की स्थिति भी हो सकती है। भारतीय जनता के बटुए की ताकत बहुत बड़ी है। 30 साल पहले चीन की स्थिति यह नहीं थी, जो आज है। हमारे ही पैसे से चीन इतना ताकतवर बना है और इसी बटुए के कारण वह कमजोर भी हो सकता है। यह हमारे देश की जनता के हाथ में है। जब हम एक बार इस तरह की मुहिम शुरू करेंगे तो जो दूसरे देश चीन से परेशान हैं, वह भी इस नीति को अपनाएंगे। हमें खुद तो चीन का बहिष्कार करना ही चाहिए, साथ ही अन्य देशों को भी प्रेरित करना चाहिए।

आपने ‘बायकॉट मेड इन चाइना’ अभियान की शुरु आत की है। क्या इस अभियान को देशवासियों से मिल रहे समर्थन से आप संतुष्ट हैं?
यह सवाल इस वक्त पूछना बहुत जल्दबाजी है। 1 साल बाद इसका आकलन किया जाना चाहिए। 3 दिन में क्या किया गया, क्या नहीं, इसके आकलन से इस मुहिम का असर पता नहीं लगेगा। कम से कम 1 साल और फिर इसके बाद 3 साल तक हमने क्या किया, वह महत्वपूर्ण होगा। हमें कुछ उसूल बनाने होंगे और उन पर चलना होगा। सामानों को तोड़ना या जलाना इसका समाधान नहीं है। हर सामान कुदरत की एक देन होता है। आगे से नए सामान को खरीदने को लेकर सतर्कता बरतें।

आपने शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण और हिम स्तूप के निर्माण के लिए जो पहल की है, उसकी देश और दुनिया भर में तारीफ हुई है। अपनी सोच के हिसाब से 21वीं सदी में आप भारत को कहां देखते हैं?
प्रगति का मेरा पैमाना बिल्कुल अलग है। मैं 21वीं या 22वीं सदी के विषय में नहीं सोचता हूं। किसी की तरक्की इससे तय नहीं होती कि आपने अपने इर्द-गिर्द कितने सामान को भर लिया है। इंसान की प्रगति या उत्थान भौतिक विकास में नहीं है, बल्कि उसके आंतरिक विकास में है। यही आंतरिक विकास भारत की आत्मा रहा है। ध्यान, योग, विपश्यना जैसी चीजों से हमने इसी विकास की बात की है। जीडीपी से विकास का आकलन पाश्चात्य तरीका है। मैं उस गरीब को भी सबसे अमीर मानता हूं जिसकी ख्वाहिशें खत्म हो गई है। प्रसन्न रहना मेलजोल को बेहतर बनाना यह चीजें ज्यादा महत्व की है।

भारत के विषय में यह बात हमेशा कही जाती है कि जगत मिथ्या, इस एक शब्द ने हमें विज्ञान और भौतिक विकास में पिछड़ने पर मजबूर कर दिया। क्या भौतिक विकास और आध्यात्मिक विकास के बीच में एक संतुलन की आवश्यकता नहीं है?
मैं आपकी बात से सहमत हूं। कुछ हद तक गरीबी किसी को अच्छी नहीं लगेगी। भूख से मरना या पहनने को कपड़े ना होना, किसी को पसंद नहीं आएगा, लेकिन जब बात जरूरी चीजों की होती है, तो तीन समय का भोजन और पर्याप्त कपड़े से आगे हम कितना सोचते हैं, वह भी जरूरी है। भौतिक विकास की अपनी हद को समझना भी जरूरी है। इसके अलावा जो हमें मिलता है, वह औरों के लिए इस्तेमाल होना चाहिए। भारत एक ऐसा देश है, जिसे पहले इस बात को खुद आजमाना चाहिए फिर दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।

3 ईडियट्स फिल्म पर क्या कहना चाहेंगे?
मैं इस विषय पर बात नहीं करता हूं। रील लाइफ और रियल लाइफ में बहुत फर्क होता है। हमारी समस्या यही है कि हम फिल्मी शिकार हो गए हैं। झूठ की जिंदगी के चक्कर में असल जिंदगी को भूलना नहीं चाहिए।



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