असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के जीवन में सुधार लाने की जरूरत : दत्तात्रेय

Last Updated 17 Jun 2020 04:50:28 AM IST

हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत


सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय

मोदी सरकार ने श्रमिकों के जीवन स्तर में सुधार के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। कोरोना के संकटकाल में श्रमिकों की उजागर हुई दुर्दशा को देखकर इसका साफ अहसास हो गया है। इन तमाम मुद्दों पर  हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने विशेष बातचीत की।  प्रस्तुत है विश्वस्तृत बातचीत :-

कुछ ही दिन पहले ही आपने अपना जन्मदिन मनाया है। कोरोना काल में सामाजिक दूरियों के बीच यह जन्मदिन पहले के जन्मदिन से कैसे अलग रहा?
पहली बार राज भवन में मैंने अपने जन्मदिन को मनाया। बड़ी तादाद में कार्यकर्ताओं ने मुझे इसके लिए बधाई दी। राजभवन के तमाम अधिकारी, राज्य के मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी भी मुझे बधाई देने के लिए आए। इसके अलावा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने भी अपने शुभकामना संदेश मुझ तक पहुंचाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी शुभकामनाएं मुझे दीं। इसके अलावा मेरे साथ में मंत्री रहे और राजनीतिक जीवन के दौरान मेरे मित्र रहे कई लोगों ने मुझे फोन करके बधाइयां दीं।

आप लंबे समय तक आरएसएस से जुड़े रहे। संगठन के लिए भी काफी संघर्ष किया। आपको कठोर मेहनत का फल भी मिला। आप वाजपेयी जी की सरकार में दो बार मंत्री रहे हैं। सियासत के इस सफर के अनुभवों को बताएं।
पहली बार अटल जी के नेतृत्व में मुझे शहरी विकास मंत्री बनने का सौभाग्य मिला था। उनका बहुत स्नेह मुझे प्राप्त हुआ। बाद में उन्होंने मुझे रेल मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी भी दी। उनके साथ रहकर काफी कुछ सीखने को मिला। खासतौर पर गरीबों के लिए काम करना मैंने उनसे सीखा। झुग्गी-झोपड़ियों के बजाय पक्के मकान बनाना, इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना जैसे कई काम उनके साथ किए। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण योजना थी वाल्मीकि अंबेडकर आवास योजना। आज भी इस तरह की योजनाओं की बहुत ज्यादा जरूरत है। कोरोना वायरस के इस संक्रमण काल में हम स्वच्छता के महत्व को समझ रहे हैं। ऐसे में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के लिए अपने मकान, स्कूल, अस्पताल जैसी तमाम मौलिक जरूरतों को पुख्ता करने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ भी आपने श्रम शक्ति भवन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को संभाला। यह अनुभव कैसा रहा ?
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलीं। इनमें श्रम मंत्री के तौर पर मुझे मोदी जी के दिशा-निर्देशों पर काम करने का मौका मिला। सबसे महत्वपूर्ण कदम था श्रम कानूनों में सुधार। श्रमिक दो तरह के होते हैं- असंगठित क्षेत्र और संगठित क्षेत्र। इनमें असंगठित क्षेत्र में 93 फीसद मजदूर आते हैं और इनमें से भी ज्यादातर कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं। सरकार इनसे सेस लेती है लेकिन इस धन का उनकी देखभाल में ठीक तरह से खर्चा नहीं होता है। मोदी जी ने इस फंड को सही तरीके से इस्तेमाल करने पर जोर दिया। 34 हजार करोड़ रुपए का फंड राज्य सरकारों के पास होता है जिसका सही तरीके से खर्चा नहीं हो पाता है। आज भी यह रकम बहुत बड़ी है और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जीवन में सुधार लाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमने इनफॉरमल से फॉर्मल सेक्टर में मजदूरों को लाने पर काम किया है। उनकी मिनिमम वेज को भी 15 साल से बढ़ाया नहीं गया था। जिस पर हमने काम किया। मजदूर संगठनों से बात की और 32 फीसद इसे बढ़ाया गया। साथ ही साथ मजदूरों के बोनस को बढ़ाना या महिला मजदूरों को प्रेग्नेंसी के समय सुविधाएं देना, जैसे कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

दक्षिण भारत में बीजेपी की सियासी उन्नति में आपका योगदान काफी अहम रहा है। इस बारे में क्या कहेंगे आप ?
मैं 1980 में बीजेपी में आया था और संगठन के दायित्व में मैंने गांव में जाकर गरीबों के बीच काम किया। संगठन का काम करते हुए मैं गांव-गांव और गली-गली में घूमा फिरा। आरएसएस के प्रचारक के तौर पर भी मैंने पूरे देश का दौरा किया। कोई भी संगठन कार्यकर्ताओं से मजबूत बनता है और कार्यकर्ताओं को साथ जोड़ने के लिए प्रेम और आत्मीयता की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। बीजेपी एक सैद्धांतिक पार्टी है और इसीलिए लोग इससे जुड़ते चले गए। मैंने कभी नहीं सोचा था कि बीजेपी को इतनी जल्दी कामयाबी मिलेगी और मैं सांसद और मंत्री बनूंगा। हमारे सांसद और मंत्री बनने के बाद कार्यकर्ताओं में एक जबरदस्त उत्साह देखने को मिला और संगठन और मजबूत हुआ। उस दौर में वी राव, बंगारू लक्ष्मण, चेलपति राव, वेंकैया नायडू जैसे तमाम बड़े नेता भी यहां पर काम कर रहे थे जिन्होंने त्याग के साथ काम किया और मैंने भी इन लोगों से बहुत कुछ सीखा।

दक्षिण भारत में जिस दौर में वामपंथियों और कांग्रेस का दबदबा रहा उस वक्त आप आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा से कैसे प्रभावित हुए?
मेरी परवरिश बहुत ही गरीब परिवार में हुई है। पिता का बहुत छोटी उम्र में ही निधन हो गया था और मां ने सब्जी बेचकर हमें जीवन दिया और पढ़ाया-लिखाया। इसके बाद संघ के मनोहर शिंदे जी से मेरी मुलाकात हुई थी। उन्होंने मुझसे शाखा और संघ में जाने को कहा। मैं जहां रहता था वहां का माहौल ठीक नहीं था। संघ में मैंने नेपोलियन की कहानी सुनी और जाना कि उसकी डिक्शनरी में असंभव शब्द नहीं था। मुझे इस कहानी से बहुत प्रेरणा मिली। मैंने भी तय किया कि मैं भी जो काम सामने आएंगे उन्हें करता जाऊंगा। छोटे-छोटे कायारे को करते हुए पहले मैं प्रचारक बना। उसके बाद इमरजेंसी के दौरान मीसा में मुझे जेल भी हुई। जेल से बाहर आने के बाद संघ ने मुझे सेवा कार्य में लगाया। वर्ष 1977 में भयंकर बाढ़ के दौरान हमने सेवा कार्य किया। लाशों को निकालना, गरीबों की मदद करना जैसे कई काम किए। उन लोगों के लिए मकान भी बनाए। इसी सेवा भावना से काम करते-करते संगठन के काम में आगे बढ़ा। यहां पर एक तरह की तपस्या थी, पद का लालच नहीं था। आगे बढ़ने के लिए संकल्प और संस्कार दो महत्वपूर्ण चीजें हैं।

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से आपके करीबी संबंध रहे हैं। क्या इस दोस्ती का असर आपके राजनीतिक जीवन पर भी रहा है?
हमने साथ में काफी काम किया है। कई आंदोलनों में साथ रहे हैं। वेंकैया नायडू जी एबीवीपी के समय से काफी प्रभावी नेता रहे हैं। वर्ष 1980 में मैंने उन्हें देखा वह असेंबली में भी एक प्रभावी वक्ता के तौर पर सत्ताधारी दलों को कठघरे में खड़ा कर देते थे। किसानों के लिए उन्होंने बहुत काम किया। इसके बाद मैं भी संगठन में लगातार काम करता रहा। बाद में मुझे दिल्ली में लाया गया। आडवाणी जी ने संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देते हुए महासचिव बनाया। बंगारू लक्ष्मण जी और वेंकैया नायडू जी पूरा समय दिल्ली में ही देते थे। वेकैंया जी आज उपराष्ट्रपति हैं और मैं राज्यपाल।

हिमाचल में कोरोना के कम मामले सुकून की बात है। इसकी वजह क्या मानते हैं आप?
हिमाचल देव भूमि है। यहां का वातावरण जितना सुंदर है लोग भी उतने ही सुंदर है। यहां ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा है और शहरी क्षेत्र बहुत ही कम। कोविड-19 ने जहां पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है वहीं यहां की सरकार इसके खिलाफ लड़ाई में शुरु आत से ही सतर्कता बरत रही है। गत 22 मार्च से ही सरकार ने सतर्कता बरतते हुए इसके लिए रणनीति बनाई थी। 25 मार्च को लॉकडाउन हुआ तो उसके बाद पूर्ण कामबंदी से लोगों में एक जागरूकता देखने को मिली। हमारे प्रदेश में आशा वर्कर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलकर घर-घर जाकर टेस्टिंग कराई गई। यहां अभी तक 54,484 टेस्ट कराए गए हैं जिनमें 53,925 नेगेटिव आए हैं जबकि 556 पॉजिटिव केस आए हैं। इनमें से ठीक होने वालों की संख्या 342 है। 145 केस आज भी एक्टिव हैं और छह लोगों की मौतों की पुष्टि हुई है। अब यदि राष्ट्रीय स्तर के आंकड़ों से इन आंकड़ों का आकलन किया जाए तो यह काफी कम है। इसका कारण है जनता का जागरूक होना और राज्य और केंद्र सरकार का समन्वय बनाकर सुचारु रूप से काम करना। स्वयंसेवी संगठनों ने भी इस लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है।

मजदूरों के पलायन और घर वापसी के बाद  राज्य की अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर कितना असर पड़ा है ?
मुझे पूरा विश्वास है कि मजदूर दोबारा आएंगे लेकिन अब थोड़ा परिवर्तित रूप में आएंगे। हमें यह भी देखना होगा कि दो लाख से ज्यादा मजदूर हिमाचल वापस पहुंचे हैं। इनको भी रोजगार देने की कोशिशें की जा रही हैं। सबसे ज्यादा जरूरत है इन मजदूरों के कौशल विकास की जिसमें जितनी ज्यादा स्किल होगी उतना अच्छा वेतन मिलेगा। आपदा काल में पढ़े-लिखे नौजवान भी बदले हालात में अपने घरों में वापस आ रहे हैं। वह यहां खेती करना चाहते हैं। इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। साथ ही कुछ युवा खुद के धंधे के बारे में विचार कर रहे हैं। इनोवेटिव आइडियाज और मेहनत को साथ मिला लिया जाए तो एक अच्छा भविष्य सामने दिखाई देता है।

हिमाचल में सेब का मौसम शुरू हो रहा है। यहां चार हजार करोड़ का सेब का व्यापार है, कोरोना संकट में सेब किसानों के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं?
आर्थिक स्थिति को सुधारने पर काम करना है क्योंकि व्यापारी, उद्योगपतियों को कितना नुकसान हुआ है इसका अंदाजा हम नहीं लगा सकते हैं। इन लोगों को अलग-अलग तरीके से सहायता दी जा रही है। बात सिर्फ  व्यापारियों को लोन देने से नहीं बनेगी क्योंकि लोगों की खरीदने की क्षमता भी बढ़ानी होगी। मनरेगा इसमें एक महत्वपूर्ण कदम है। लोगों को काम देने की जरूरत है। किसी को बैठाकर नहीं खिलाया जा सकता चाहे अस्पताल हो या हमारा पर्यटन उद्योग। हिमाचल प्रदेश में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं।

कोरोना की वजह से टूरिज्म पूरी तरह ठप हो चुका है। राज्य की अर्थव्यवस्था पर इसका कितना असर हो रहा है? साथ ही कर्जों का बोझ भी बढ़ रहा है। इस संकट से उबरने के लिए क्या तैयारियां हैं?
जैसा मैंने बताया हमारे यहां 93 फीसद ग्रामीण इलाका है और सेब उत्पादन सबसे बड़ा उद्योग है। सरकार ने 800 करोड़ रु पए इससे कमाए थे। नेपाल से मजदूरों को लाने पर विचार किया जा रहा है। वहीं मनरेगा में सूचीबद्ध करके मजदूरों के लिए नई प्रणाली अपनाई जा रही है। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी इन कामों से जोड़ा जा रहा है। इनके अलावा कई बड़े-बड़े प्रोजेक्ट हैं जिनमें लोगों को काम दिया जा रहा है। जहां पर उद्योगों के लिए लोन के जरिए फाइनेंस की व्यवस्था करनी है वहां भी उपयुक्त कदम उठाए जा रहे हैं।

सड़क और वायु मार्ग से हिमाचल की कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती है। इस पर हमने प्रदेश के मुख्यमंत्री से भी बातचीत की थी। आप इस विषय पर क्या कहना चाहेंगे?
मैंने मुख्यमंत्री के साथ इस मुद्दे पर कई बैठकें की हैं। हमारे पास एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट है जिसको बेहतर बनाने पर काम किया जा रहा है। वहीं छोटे-छोटे स्ट्रिप्स को भी बेहतर बनाया जा रहा है ताकि हेलीकॉप्टर्स द्वारा ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को यहां पर आकर्षित किया जा सके। मैंने इसके लिए सिंचाई मंत्रालय, आदिवासी मामलों के मंत्रालय और अन्य कैबिनेट मंत्रियों से अलग-अलग बातचीत की है। वहीं सेब का निर्यात हमारे लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। साथ ही किसानों को इसका सही मूल्य मिले इस पर भी हम काम कर रहे हैं। हिमाचल की बड़ी ताकत विद्युत उत्पादन भी है। इसे बेहतर बनाने पर भी हम काम कर रहे हैं।

आत्मनिर्भर भारत एक महत्वकांक्षी योजना है। इससे आपको प्रदेश में कितनी उम्मीदें हैं?
आत्मनिर्भर होना चाहिए। इस पैकेज से कई प्रोजेक्ट बनेंगे। खासतौर पर एमएसएमई इकाइयों को खड़ा करने में यह पैकेज बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगा। किसानों और मजदूरों के लिए भी इससे कई संभावनाएं सामने निकलकर आएंगी। बैंकों को भी सहायता करने में यह पैकेज महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। धीरे-धीरे आगे बढ़ा जाएगा। एक तरफ हमें कोरोना वायरस से निपटना है और दूसरी तरफ अपनी आर्थिक परिस्थिति को भी सुधारना है।

दवा उद्योग भी हिमाचल प्रदेश की बड़ी ताकत है। वोकल से लोकल के नारे को मजबूती देने के लिए क्या काम किया जा रहा है?
फार्मा इंडस्ट्री सचमुच हिमाचल प्रदेश की बड़ी ताकत है। आंध्र प्रदेश में भी दवा उद्योग बड़ा है। मैंने बद्दी में भी बैठकें की हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए हम काम कर रहे हैं। लॉकडाउन के बाद हिमाचल में 70 फीसद फार्मा इंडस्ट्री काम करने लगी हैं। यह एक ऐसा समय है जब नए प्रोडक्ट और नए लोगों को मौका मिलेगा। ऐसे लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी और इन्फ्रास्ट्रक्चर को डेवलप किया जाएगा। सड़क परिवहन मंत्रालय ने फोर लेन की सड़क बनाई है। इसी तरह रोप-वेज पर भी काम किया जा रहा है। गांव-गांव में पाइप से पानी पहुंचाने की भी रणनीति बनाई गई है। सबसे महत्वपूर्ण है राजनीति से ऊपर उठ कर सभी राजनीतिक दलों का मिलजुल कर काम करना।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में आप क्या विशेषताएं पाते हैं?
उन्हें गरीबी का अनुभव है और जो गरीबी का अनुभव करता है उसे ही पता है कि गरीब की क्या जरूरत है। जिसको गरीबी मालूम नहीं वह कभी उनके दर्द को नहीं समझ पाएगा। प्रधानमंत्री मोदी और मैं दोनों ही गरीब परिवारों से रहे हैं। गरीबों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार। धीरे-धीरे इन पर काम हो रहा है। ऑनलाइन एजुकेशन आने वाले समय में शिक्षा की स्थिति को बदल देगी। इसी तरह हेल्थ सेक्टर में भी काफी काम हो रहा है। स्वच्छता को लेकर एक बड़ा अभियान चलाया गया है और इसमें भी गरीबों को ही केंद्र में रखा गया है। यदि देश को मजबूत करना है तो गरीबों की जीवन शैली और जीवन स्तर को ऊपर उठाना होगा। इसी तरह आयुष्मान भारत योजना भी इनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए लाई गई।

झुग्गी-झोपड़ी के युवक आपराधिक घटनाओं में संलिप्त पाए जाते हैं। इन लोगों को नई रोशनी कैसे दी जाए?
कोरोना के इस काल ने परिवार के महत्व को बताया है। प्रवासी मजदूर चावल और रहने की जगह मिलने के बावजूद रु कना नहीं चाहते थे। अपने परिवारों को देखना चाहते थे। आने वाले समय में परिवार एक बड़ा केंद्र बनेगा। सेवा और त्याग की भावना अब लोगों में बढ़ रही है। यह भावना जितनी बढ़ेगी उतना ही लोगों में एक दूसरे के प्रति प्रेम बढ़ेगा। उदाहरण के लिए मनरेगा में काम करने वाली एक महिला ने अपनी 10,000 रुपए की बचत को कलेक्टर को सौंपा ताकि यह कोरोना वायरस से लड़ाई के काम आ सके। आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि गरीब तबके में भी अब समाज और देश के लिए चिंता है। मानवता इसी को कहते हैं।



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