हथिनी की हत्या मामले में तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा गया : आरिफ
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत
![]() सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान |
केरल के पलक्कड़ जिले में हथिनी की नृशंस हत्या से उपजे हालात, पेश किए गए तथ्यों की सच्चाई, जिले के गरीब किसानों की दिक्कतों और जानवरों की सुरक्षा समेत कोरोना से निपटने में राज्य के लोगों और सरकार की जीवटता पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने खुलकर विचार रखे। सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने उनसे इन्हीं मुद्दों पर खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत :-
केरल के पलक्कड़ जिले में दुखद घटना में एक गर्भवती हाथी की नृशंस हत्या से पूरा देश स्तब्ध है। इस जघन्य और क्रूर कृत्य की जितनी भी निंदा की जाए, कम है। इस घृणित कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों को सख्त सजा देने की जरूरत है। इस घटना पर आपकी प्रतिक्रिया चाहेंगे हम।
सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि लोगों के विरोध को बहुत ही विनम्रता से स्वीकार किया जाना चाहिए। हालांकि इस पूरे मामले में तथ्यों को काफी तोड़ मरोड़ कर रखा गया है। जो सरकारी रिपोर्ट मेरे पास आई है, उसके मुताबिक पहले ही हथिनी को जंगल में देखा गया था। यहां पर फॉरेस्ट के लोग कोशिश करते हैं कि जंगली जानवर वापस जंगलों में ही रहें। यह हथिनी खुद-ब-खुद जंगल में वापस चली गई थी, लेकिन कुछ दिन बाद नदी में दिखाई दी। उसके मुंह पर चोट थी। तब वेटनरी डॉक्टर को बुलाया गया। आमतौर पर जंगली हाथियों को काबू करने के लिए ट्रांक्युलाइजर का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इस हथिनी की हालत बहुत अच्छी नहीं होने की वजह से डॉक्टर ने इसके लिए मना किया। इसके बाद ट्रेंड हाथियों को बुलाया गया, जिन्हें हाथियों को ट्रैप से निकालने के लिए ट्रेंड किया जाता है लेकिन तब तक हथिनी का दुखद अंत हो चुका था।
इस मामले में दो तरह की रिपोर्ट्स आ रही हैं। ये भी कहा जा रहा है कि स्थानीय किसान जंगली सुअरों के आतंक की वजह से फसल बचाने के लिए इस तरह के विस्फोटक का इस्तेमाल करते हैं। इस पर आपको क्या रिपोर्ट मिली है?
राजभवन में भी ऐसे कई लोग हैं, जो इसी इलाके से आते हैं। उनसे भी मैंने बातचीत की और अन्य लोगों से भी रिपोर्ट मंगाई, जिससे मुझे यह जानकारी मिली कि कुछ छोटे किसान जंगली सूअरों के आतंक से बचने के लिए एक्सप्लोसिव को गुड़ में लपेट कर रखते हैं। यह ऐसा पदार्थ होता है, जो छूते ही फट जाता है। लेकिन हथिनी के मामले में ऐसा नहीं हुआ और बहुत मुमकिन है कि यह हादसा ऐसे ही किसी विस्फोटक को खाने की वजह से हुआ है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी यह तथ्य साफ हो गया है। यहां पर हमें ज्यादा बड़ी समस्या पर विचार करना चाहिए और वह है यहां के गरीब किसानों की दिक्कत।
कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने में केरल ने काफी हद तक सफलता हासिल की है। लॉकडाउन के बाद लाइफ भी पटरी पर लौट रही है। कोरोना संकट से निपटने के लिए आपने राज्य सरकार को अपनी ओर क्या दिशा-निर्देश दिए हैं?
यह समस्या सिर्फ केरल की नहीं, बल्कि देश की है और पूरी इंसानियत की है। केरल सरकार और केंद्र के बीच सामंजस्य की शुरु आती दौर में चिंता थी। सबसे महत्वपूर्ण बात थी राष्ट्रीय स्तर पर दिए गए दिशा-निर्देश का सख्ती से यहां पालन करवाना। केरल ने इन दिशा निर्देशों का पालन बहुत ही अच्छे से किया है। 2 साल पहले निपाह के संक्रमण का फैलाव भी केरल ने देखा है। उससे निपटने का अनुभव भी केरल को रहा है। सरकार की बहुत प्रशंसा करता हूं। अस्पतालों का इंतजाम हो या क्वॉरंटाइन का इंतजाम हो, सभी मोर्चों पर राज्य सरकार की तरफ से अच्छी प्लानिंग की गई। आप पूरे देश में देखेंगे कि केरल के संवेदनाओं से भरे संस्कारों की वजह से ही सबसे ज्यादा नर्से और टीचर यहीं से आते हैं। केरल और नॉर्थ ईस्ट के कुछ इलाकों की यह खासियत है कि यहां पर सिर्फ पुरु ष प्रधान समाज नहीं होता है। यहां महिलाओं को भी पूरा सम्मान दिया जाता है। यहां की कुटुंब श्री योजना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इसे 43 लाख महिलाएं चलाती हैं। करीब चार लाख ग्रुप हैं, जो सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़े हुए हैं। 10-10 रुपए महीने के जमा करते हैं। जो पैसा इनके पास होता है, उसका 4 गुना बैंक से यह लेने की अर्हता रखते हैं। इसका जो इंटरेस्ट आता है, वह केंद्र और राज्य सरकार 4-4 फ़ीसद देते हैं। मेरा मानना है इस तरह की योजनाएं पूरे देश में होनी चाहिए।
कोरोना संक्रमण के फैलने के लिए तब्लीगी जमात के लोगों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सरकार ने जमात से जुड़े विदेशी नागरिकों को प्रतिबंधित भी किया है? इस बारे में आपकी क्या राय है?
तबलीगी जमात के लोगों का वहां पर इकट्ठा होना और संक्रमण फैलना तो एक दुर्घटना हो सकती है, लेकिन उससे ज्यादा खतरनाक परिस्थिति वह है, जब यह लोग यहां जमात में इकट्ठा होने के नाम पर आते हैं और यहीं दूसरे कामों को करने के लिए रु क जाते हैं। यह टूरिस्ट वीजा पर आते हैं और गांव गांव में जाकर लोगों को भड़का आते हैं। यह ज्यादा खतरनाक है दरअसल, यह देश की गंगा जमुनी तहजीब के खिलाफ काम करते हैं। हमारे देश के अपने संस्कार हैं और यह गांव में जाकर लोगों को कहते हैं कि इस तरह के संस्कारों को मानना आपके दीन के खिलाफ है। हाल में एक शादी में मौलवी साहब सेहरे को लेकर बहस कर रहे थे। मैं भी उस जगह पर मौजूद था। मौलवी साहब का कहना था कि यह सेहरा हिंदुओं का है। तभी एक पुलिस के अधिकारी भी वहां पहुंचे। उन्हें देखकर किसी ने मौलवी साहब से कहा कि ये घटना की शिकायत के बाद आए हैं। आनन-फानन में मौलवी साहब ने शादी करवा दी। तो इस तरह की जहालत से बचना बहुत जरूरी है।
सीएए कानून के खिलाफ केरल विधानसभा में प्रस्ताव पास कराना कितना सही था? इस प्रस्ताव की कानूनी या संवैधानिक वैधता क्या है?
इस विषय पर मंत्रियों से मेरा पत्राचार हुआ है। मेरा मानना है कि हर एक को आलोचना करने का, विरोध करने का अधिकार है। लोकतंत्र में इस बात की सब को आजादी है, लेकिन यदि यह काम कुछ संस्थाएं अपने कानूनी क्षेत्र के दायरे के बाहर जाकर करती हैं तो वह गलत है। उदाहरण के लिए राजनीतिक पार्टयिों या आम आदमी को विरोध का अधिकार है। राज्य सरकार या विधानसभा अपना विरोध नहीं जता सकती। कानून की जितनी मेरी समझ है, उसके मुताबिक नागरिकता का मामला केंद्र के अधीन है। केरल सरकार ने इस पूरे मामले पर एक रेजोल्यूशन पास कर दिया, जिसकी मुझे जानकारी तक नहीं दी गई। अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में गया है, नतीजा आ भी जाएगा। राज्य का कोई भी काम राज्यपाल के नाम पर ही होता है, क्योंकि वह संवैधानिक मुखिया होता है। मुझे ही एक ऐसे काम की जानकारी नहीं दी गई। राज्यपाल को अंधेरे में रखकर इस तरह का काम करना गलत है। मैंने राज्य सरकार से इस पर पत्राचार किया। मुख्यमंत्री ने मेरे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया, उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि यहां शांति व्यवस्था पर खतरा आ जाएगा। 1986 में शाहबानो मामले पर भी इसी तरह की बात कही गई थी। वहां मेरिट के आधार पर फैसले को नहीं पलटा गया था, यह कहा गया था कि पर्सनल लॉ बोर्ड के लोग इकट्ठा हो रहे हैं। शांति व्यवस्था को खतरा हो सकता है। तो कुल मिलाकर इन नाराज लोगों की वजह से संवैधानिक फैसलों के खिलाफ जाने का काम किया जाता है, जो राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र नहीं है। शाहबानो मामले में किस तरह के बुरे परिणाम आए, हम सब जानते हैं।
शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटे जाने के बाद आपने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा दे दिया था। अब जब तीन तलाक को रोकने के लिए देशभर में सख्त कानून लागू हो गया है, तो आपको कैसी अनुभूति हुई?
इस ऐतिहासिक फैसले को 1 साल होने को आया, लेकिन अभी भी लोग इसका महत्व नहीं समझ रहे हैं। 700 साल पहले यानी 13वीं सदी में यह कानून बनाया गया था। यह एक कुप्रथा थी, जिसकी खिलाफत हुई। मजहब के नाम पर बहुत बड़ा जुल्म किया जा रहा था। तमाम मुस्लिम मुल्कों में पहले ही इसे खत्म किया जा चुका था। आने वाली नस्लों के इतिहास में इस दौर को नरेंद्र मोदी जी के नाम से लिखा जाएगा। इस फैसले के दूरगामी परिणाम आएंगे। लोग कहते थे कि इस फैसले से मुसलमानों को परेशान किया जाएगा। बताइए कोई मामला आया हो, जिसमें किसी को परेशान किया गया हो। अलबत्ता तीन तलाक की खबरें जो आए दिन पढ़ने को मिलती थीं, वह बंद हो गई है।
आपके एक बयान का हवाला देकर पीएम मोदी ने संसद में कहा था कि कांग्रेस के नेता मुसलमानों को विकास की मुख्यधारा से वंचित रखना चाहते हैं और वो मुस्लिम समाज में कोई सकारात्मक बदलाव भी नहीं होने देना चाहते। क्या आप अपनी इस राय पर आज भी कायम हैं?
यह बात तो मैं बहुत सालों से कहता आया हूं। मेरी राय की बात नहीं है, बात तथ्यों की है। सारे चैनलों के पास मेरा यह बयान मौजूद है। प्रधानमंत्री जी ने शायद हाल में देखा तो उन्होंने इस बात को कोट किया था। यह 20 साल पहले की बात है, जब मैंने इस्तीफा दिया था और मुझे प्रधानमंत्री ऑफिस में ही बैठा दिया गया था। मुझसे इस्तीफा वापस लेने के लिए कई लोग कह रहे थे। शाहबानो पर भी बहुत दबाव था और उन्होंने भी उस वक्त खुद को मिलने वाले पैसे को नहीं लेने की बात कही थी और कहा था कि यह दीन के खिलाफ है। मुझसे उस पर कहा गया कि हम समाज सुधारक नहीं हैं। हम राजनीति के व्यवसाय में हैं। यह लोग गड्ढे में पड़े रहने पर आमादा हैं तो तुम्हें इस्तीफा देने की क्या जरूरत है। यह वह लोग हैं, जो ऐसी चीजों का समर्थन करते हैं और सरकार उनके साथ खड़ी हो जाती है।
लोकतंत्र और संसदीय परंपरा में गवर्नर की भूमिका केंद्र के प्रतिनिधि और राज्य के गार्जियन की होती है लेकिन पिछले कुछ सालों में विधानसभाओं में दलबदल कानून के दुरु पयोग को लेकर राज्यपाल के अधिकारों और कर्तव्यों पर सवाल उठते रहे हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है?
इसी तरह के राजनीतिक घटनाक्रम को सही करना राज्यपाल का काम नहीं है। राष्ट्रपति के बाद राज्यपाल ही सबसे बड़ा संवैधानिक पद होता है। संविधान की रक्षा करने की राज्यपाल शपथ लेते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। संविधान की यही अपेक्षा है कि पक्ष और विपक्ष दोनों के साथ निष्पक्ष होकर बिना भेदभाव के काम किया जाए। संविधान और कानून का अक्षरश: पालन करना ही राज्यपाल का परम कर्तव्य है। हमारा संस्कार और आदशरे का देश है। हमारे आदर्श पुरु ष भी मर्यादा पुरु षोत्तम है। यानी मर्यादा की रक्षा ही हमारे लिए सर्वोपरि है।
जिहाद को गलत तरीके से समझाया, पढ़ाया जाता है और युवाओं को भटकाया जाता है। आप इस विषय पर बोलते रहे हैं। मैं चाहता हूं जिहाद के सही मायने बताएं?
कुरान की आयतों को कानून में तब्दील कर दिया गया और जिहाद को बहुत ही गलत तरीके से पेश किया गया। जिहाद का मतलब होता है अपनी बुराइयों के खिलाफ लड़ाई। हमारी परंपरा में भी दैविक और आसुरी दो तरह के तत्व इंसानों में पाए जाते हैं। स्वामी विवेकानंद भी इस विषय पर बोलते रहे हैं। भारत में धर्म का मतलब अध्यात्म होता है। आत्मज्ञान से होता है। बुद्ध ने आखिरी नसीहत दी थी- अप्प दीपो भव यानी अपना रास्ता खुद ढूंढो। यहां से आगे आपको मेरी भी जरूरत नहीं है। यह भी अथर्ववेद का सूत्र है। क्योंकि बुद्ध भी इसी परंपरा का हिस्सा थे। हमें अपनी जड़ों और परंपराओं को समझते हुए अपने अध्यात्म को समझना होगा।
संसद और विधानसभाओं में जनसंख्या नियंत्रण के लिए आवाजें उठती रही हैं, क्या आपको नहीं लगता कि इसे लेकर कोई ठोस कानून बनाने की जरूरत है?
सबसे पहले शिक्षा पर काम करना होगा। आज भी देश में ऐसे गांव हैं, जहां पर मनोरंजन के साधन तो छोड़िए बिजली तक नहीं आती। यहां जनता नहीं पढ़ेगी तो क्या होगा। आप यह भी पाएंगे कि जहां शिक्षा आई है, वहां लोगों के जीवन का तौर तरीका बदल गया। हमें सरकार को बहुत ज्यादा शामिल करने के बजाय लोगों में जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा और जागरूकता बढ़ेगी तो इन चीजों पर भी लगाम लगेगी।
आपने कई प्रधानमंत्रियों को बड़े नजदीक से देखा है, प्रधानमंत्री मोदी को किस तरह का नेता पाते हैं?
वे असाधारण व्यक्तित्व के धनी हैं। मेरा अपना तजुर्बा है कि साल 2002 में गुजरात के हालात को जिस तरह उन्होंने काबू किया, कोई भी नहीं कर पाता। मैं खुद भी नहीं। वह हमेशा लोगों के निशाने पर रहे। कई बार मैंने भी उनकी आलोचना की लेकिन वह लोगों को योग्यता के आधार पर आंकते हैं। यदि आपने उनकी आलोचना भी की है और यदि आप किसी काम के हैं तो वह आपको जरूर बुलाते हैं। मैं कभी सेंट्रल हॉल नहीं गया और ना ही राजनीति में सक्रिय था। फिर भी उन्हें जहां जरूरत रही, उन्होंने वहां मेरी मदद ली।
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