असहमति लोकतंत्र की आत्मा : सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता

Last Updated 25 Feb 2020 05:42:39 AM IST

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में मौजूदा हालात पर चिंता जताते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।


सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता (file photo)

जस्टिस गुप्ता ने कहा है कि लोकतंत्र में विरोध करने की आजादी होनी चाहिए। विरोध और बातचीत से देश बेहतर चल सकता है। हाल के दिनों में विरोध करने वाले लोगों को देशद्रोही बता दिया गया।
बहुसंख्यकवाद लोकतंत्र के खिलाफ है। अगर किसी पार्टी को 51 प्रतिशत वोट मिलता है, इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी 49 फीसद लोग पांच साल तक कुछ नहीं कहेंगे। लोकतंत्र सौ फीसद लोगों के लिए होता है। जब तक ये लोग हिंसा नहीं करते हैं, तब तक उनको हर अधिकार प्राप्त है। अगर हम विरोध नहीं करने देंगे तो इसका बोलने की आजादी पर गलत असर पड़ेगा। लोगों को एक जगह जमा होकर विरोध करने का अधिकार है, लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से। सरकार हमेशा सही नहीं होती। विरोध महात्मा गांधी के नागरिक नाफरमानी आंदोलन का मूल था। यह एक आजाद देश वह है जहां बोलने की आजादी है। आज देश में विरोध को देशद्रोह समझा जा रहा है। सरकार और देश दो अलग-अलग चीज हैं। हम देखते हैं कि कई बार वकील किसी का केस लेने से मना कर देते हैं कि वह देशद्रोही है। बार एसोसिएशन इस पर अपना प्रस्ताव पास करते हैं, यह गलत है। आप किसी को भी कानूनी मदद से मना नहीं कर सकते। संविधान में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार विरोध करने का अधिकार है। यह एक मानव अधिकार है। डेमोक्रेसी और डिसेंट को लेकर आयोजित इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि अगर आपका विचार किसी के मत से नहीं मिलता है तो इसका मतलब नहीं है आप विद्रोही हैं। अगर आप सवाल नहीं पूछेंगे तो समाज में विकास नहीं होगा। पुराने विचारों पर सवाल नहीं उठाया जाएगा तो विकास कैसे होगा। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए असहमति का होना जरूरी है।

लोकतंत्र में सभी को अपने विचार रखने चाहिए। भले ही सरकार के समर्थन या उसके विरोध में हो, लेकिन वह शांतिपूर्ण होनी चाहिए। असहमति न्यायपालिका के लिए बहुत अच्छी है। इसके जरिए उसको मजबूती मिलती है। कुछ फैसले हैं, जहां मुझे लगता है कि कुछ तो ठीक नहीं था, लेकिन यह राय दीपक गुप्ता के रूप में मेरी है। यह मेरा विचार है। वहीं जब मैं दो जजों की बेंच में बैठता हूं तो मुझे जस्टिफाई करना होता है और ऐसा ही होना भी चाहिए। डिसेंटिंग सिर्फ  इसलिए नहीं होना चाहिए कि डिसेंट होना है।
आज देश में असंतोष को राष्ट्र विरोधी के रूप में देखा जाता है। सरकार और देश दो अलग-अलग चीजें हैं, इसको समझना होगा। यदि हम असहमति दिखाते हैं तो लोकतंत्र पर इसका प्रभाव पड़ता है। सरकार हमेशा सही नहीं होती है। हम सब गलतियां करते हैं। जब आप अपने विचारों को लेकर हिंसा का रास्ता चुनते हैं, तब आपको सरकार को विरोध दर्ज कराने का अधिकार नहीं है। जब तक कोई नियमों पर सवाल नहीं उठाएगा, तब तक समाज विकसित नहीं होगा। यदि सभी ठीक ढंग से तो विस्तार नहीं होगा।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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