निर्भया कांड : प्रदूषण से वैसे ही मर जाऊंगा, फांसी क्यों!

Last Updated 11 Dec 2019 02:19:28 AM IST

निर्भया कांड के मुजरिम अक्षय कुमार सिंह ने फांसी की सजा से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका में अजीबोगरीब और दिलचस्प दलीलें दी हैं।


सुप्रीम कोर्ट

अक्षय ने कहा है कि दिल्ली के भयंकर प्रदूषण से वह वैसे ही समय से पहले मर जाएगा, फिर फांसी की क्या जरूरत है। कलयुग में व्यक्ति की आयु बहुत कम हो गई है। त्रेता और द्वापर युग में व्यक्ति की उम्र सैकड़ों साल होती थी, कलयुग में 50-60 साल की उम्र बमुश्किल लोगों को ही नसीब हो पाती है।
31 साल के अक्षय कुमार सिंह ने महात्मा गांधी को भी उद्धत किया है। राष्ट्रपिता ने कहा था कि अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं। मृत्युदंड जटिल मानवीय समस्याओं का हल नहीं है, बल्कि यह दिनदहाड़े गरीब आदमी को मौत के घाट उतारने का कारनामा है। इससे अपराध कम नहीं हो सकते। दुनिया के कई सभ्य देशों में फांसी की सजा खत्म कर दी गई है। भारत में मौत की सजा अभी भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने नौ जुलाई, 2018 को इस सनसनीखेज अपराध में शामिल चार में से तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थीं।

अभी तक पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करने वाले दोषी अक्षय के वकील एपी सिंह ने बताया कि उसने मंगलवार को इस संबंध में याचिका दायर की है। दक्षिण दिल्ली में चलती बस में 16-17 दिसम्बर, 2012 की रात में 23 वर्षीय निर्भया से छह व्यक्तियों ने बर्बरता पूर्वक सामूहिक बलात्कार किया था और उसे बुरी तरह जख्मी हालत में सड़क पर फेंक दिया था। निर्भया की 29 दिसम्बर, 2012 को सिंगापुर में माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में मृत्यु हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले मुकेश, पवन गुप्ता और विनय शर्मा की पुनर्विचार याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि फैसले पर विचार करने का कोई आधार नहीं है।
अदालत ने 2017 में निर्भया कांड के दोषियों को मौत की सजा देने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। हाई कोर्ट ने इन मुजरिमों को मौत की सजा सुनाने के निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की थी। वारदात में शामिल छह आरोपियों में से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य आरोपी नाबालिग था और उसे तीन साल की सजा पूरी करने के बाद सुधार गृह से रिहा कर दिया गया था।
याचिका में वेद, पुराण अर उपनिषद का हवाला देकर अदालत से नरमी बरतने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि सतयुग में लोग हजारों साल जीवित रहते थे। द्वापर काल में सैकड़ों साल की उम्र होती थी। कलयुग में बमुश्किल 50-60 साल की उम्र तक आदमी जिंदा रहता है। मुझे फांसी से बख्शा जाए।

विवेक वार्ष्णेय/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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