महाराष्ट्र सरकार बचाने को भाजपा का प्लान-बी तैयार
महाराष्ट्र में सरकार बचाने के लिए भाजपा ने तीन बड़े नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। यह तीनों नेता शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं।
![]() देवेन्द्र फण्डवीस (फाइल फोटो) |
पूरे ऑपरेशन की निगरानी पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव कर रहे हैं।
दिल्ली में रविवार को पूरे दिन ऊपरी तौर पर सन्नाटा था, लेकिन आतंरिक तौर पर गहमा-गहमी रही। नेता आपस में बातचीत और रणनीति बनाने में व्यस्त रहे। सोमवार सुबह साढ़े दस बजे सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई होगी।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र में सरकार को बचाने के लिए प्लान-बी तैयार किया गया है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार की तीखी प्रतिक्रिया और अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटाना और अजित पवार के साथी विधायकों का वापस शरद पवार कैंप में जाने से भाजपा की पेशानी पर बल पड़े हैं। इसलिए भाजपा प्लान-बी की तैयारी में जुटी है।
प्लान-बी ऑपरेशन में शिवसेना से भाजपा में आए नारायण राणे, एनसीपी से भाजपा में आए गिरीश नाईक और कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए राधाकृष्ण पाटिल को लगाया गया है। इन तीनों नेताओं की अपनी पुरानी पार्टी के नेताओं के बीच अच्छी पैठ है। यह नेता सरकार बचाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इन तीनों नेताओं के ऊपर पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव पूरे ऑपरेशन की निगरानी कर रहे हैं। भूपेंद्र यादव को शुक्रवार दोपहर में संसद भवन से ही सीधे मुंबई जाने को कहा गया था। मुंबई में रातभर जो भी क्रियाकलाप हुआ उसमें देवेंद्र फडणवीस, प्रदेश अधय्क्ष चंद्रकांत पाटिल के साथ भूपेंद्र यादव की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भाजपा से एनसीपी में गए धनंजय मुंडे की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। धनंजय मुंडे ने अपने चाचा गोपीनाथ मुंडे की बेटी और चचेरी बहन पंकजा मुंडे को बीड़ से चुनाव हराया है। अजीत पवार को भाजपा खेमे में लाने की उनकी भूमिका रही है और अब फिर से शरद पवार कैंप में चले गए हैं। वह उस कैंप में रहकर गुल खिला सकते हैं।
एनसीपी में टूट पर शरद पवार के कड़े रुख के बावजूद कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी शरद पवार को नहीं रही होगी। शरद पवार की राजनीतिक चाल को लेकर एक संशय बना रहता है। वह किस करवट बैठेंगे इसकी जानकारी किसी को नहीं होती। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे शरद पवार, अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल के सामने आगे कुंआ-पीछे खाई जैसी परिस्थितियां हैं। इसलिए अजीत पवार के कदम को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
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