जाटों की नाराजगी भाजपा को पड़ी भारी
हरियाणा में जाटों ने भाजपा से अपमान का बदला ले लिया। जाटों ने भाजपा के खिलाफ मतदान किया। अनुच्छेद 370, तीन तलाक, पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक जैसे राष्ट्रवाद के मुद्दे भी इस चुनाव में नहीं चले।
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महाराष्ट्र में बीजेपी को 19 और हरियाणा में 7 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है जबकि 51 सीटों पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा को भारी नुकसान हुआ है। गुजरात, बिहार और कर्नाटक में पार्टी की उम्मीदों के अनुसार चुनाव परिणाम नहीं आए। लोकसभा चुनाव में भारी जीत हासिल कर दोबारा सरकार बनाने और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के बाद यह पहला चुनाव था।
विस चुनावों में नहीं चलते राष्ट्रीय मुद्दे : आज के चुनाव परिणाम से साबित हो गया कि पूरे देश में विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे बहुत अधिक प्रभाव नहीं छोड़ते। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने अपनी सभाओं में अनुच्छेद 370 हटाने का मुद्दा उठाया, लेकिन लोगों ने स्थानीय मुद्दों को ही तवज्जो दी।
जाटों की नाराजगी भारी पड़ी : हरियाणा के चुनाव परिणाम अप्रत्याशित हैं। भाजपा को 75 प्लस सीटें जीतने की उम्मीद थी, लेकिन पार्टी पूर्ण बहुमत भी नहीं ला सकी तो इसकी सबसे बड़ी वजह जाटों की नाराजगी और पार्टी के अंदर आपसी कलह प्रमुख है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का जरूरत से ज्यादा आत्मविास से लबरेज होना भी पार्टी को नुकसान कर गया। जिस वक्त 2014 में खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब भी जाटों ने एतराज जताया था।
कांग्रेस का जाट और दलित समीकरण : दूसरी तरफ कांग्रेस में जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनाव प्रचार समिति की कमान सौंपी गई और दलित नेता कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। लिहाजा, जाट और दलित कांबिनेशन ने मरती हुई कांग्रेस में जान फूंक दी।
कैडर नाराज : भाजपा सूत्र कहते हैं कि राज्य में खट्टर सरकार ने भाजपा के कैडर को तवज्जो नहीं दी। इसके कारण करीब 10% मतदान में कमी आई।
आर्थिक मंदी भी थी एक वजह : नाराजगी का एक और कारण यह है कि आर्थिक मंदी का असर सीधे-सीधे हरियाणा के लोगों को झेलना पड़ा।
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