अब सर्कस में नहीं दिखेंगे हाथी

Last Updated 28 Oct 2017 02:19:57 PM IST

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से देश भर के सभी 23 सर्कसों में हाथियों के रखने की मान्यता रद्द कर दिये जाने के बाद अब इनके द्वारा दिखाये जाने वाले करतब बीते जमाने की बात हो गयी है.




अब सर्कस में नहीं दिखेगें हाथी

केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने वन्यजीव  संरक्षण  अधिनियम 1972 के तहत नियमों का उल्लंघन और अत्यधिक क्रूरता करने के मद्देनजर सभी सर्कसों में हाथी रखने की मान्यता हाल रद्द कर दी है. प्राधिकरण की टीम ने पशु अधिकार समूहों, पशु चिकित्सकों की सहायता से अपने नवीनतम मूल्यांकन में हाथियों के खिलाफ क्रूरता और दुरुपयोग का पर्याप्त प्रमाण पाया है. भारतीय हाथी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची एक के तहत सूचीबद्ध है.

प्राधिकरण के सदस्य सचिव डी एन सिंह ने यूनीवार्ता को बताया कि हाथियों को रखने के लिए जो नियम-कायदे बनाये गये थे उस पर कोई भी सर्कस खरा नहीं उतरा. प्राधिकरण की ओर से सर्कस के मालिकों द्वारा हाथियों के रख-रखाव में की जारी मनमानी और लापरवाही के बारे में समय-समय पर सचेत किया गया. प्राधिकरण के अधिकारियों ने सर्कसों का निरीक्षण भी किया और मालिकों को इसमें सुधार को लेकर तमाम हिदायतें भी दीं लेकिन उनकी कार्य पण्राली में कोई सुधार नहीं आया.

सिंह ने बताया कि लंबी जांच के बाद हाथियों के रखने की मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी. सर्कस में हाथियों के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जा रहा था. उन्हें ठीक से नहीं रखा जा रहा था. निरीक्षण के दौरान सर्कस नियमों की अवहेलना करते पाए गए. हाथियों को न तो भर पेट भोजन मिलता था और न ही उन्हें सुबह नियमित रुप से टहलाया जाता था.  कई जगह हाथियों के पैर लोहे की चैन से आपस में बंधे हुए मिले. साथ ही उनकी नियमित जांच व बीमार होने पर इलाज का रिकॉर्ड भी नहीं मिला. इसलिए हाथी रखने की मान्यता रद्द कर दी गयी.

इससे पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मांलय ने 1998 में सभी सर्कसों से अन्य जानवरों भालू, बंदर, शेर, तेंदुआ और बाघों को हटाने के लिए अधिसूचना जारी किया था. इस अधिसूचना के बाद प्राधिकरण  ने 1999-2001 के दौरान अलग-अलग राज्यों के सर्कसों से 375 बाघों, 96 शेरों, 21 तेंदुओं, 37 भालूओं तथा 20 बंदरों को निकाला.

इन जानवरों के लिए सात केंद्र की स्थापना की गयी जिसमें इनके जीवन भर देखभाल करने की व्यवस्था की गयी. ये केंद्र जयपुर, भोपाल, चेन्नई, विशाखापट्टनम, तिरुपति, बेंगलुरु और साउथ खैराबाड़ी बनाये गये. वर्तमान में इन राहत केंद्रों में 51 शेर और 12 बाघ बचे हैं.  सिंह ने कहा कि इन जानवरों को किसी चिड़ियाघर में नहीं रखने की सबसे बड़ी वजह ये संकरित (हाइब्रिड) थे तथा इनके प्राकृतिक स्वभाव भी काफी अलग थे.

सिंह ने कहा कि इस संबंध में अलग-अलग सर्कस मालिकों का पक्ष भी सुना गया लेकिन उनकी तरफ से जो दस्तावेज मुहैया कराये गये उसमें गंभीर कमियां पायी गयी. कई सर्कस मालिकों ने इस फैसले को चुनौती दी थी लेकिन दो को छोड़कर सभी मामलों में अदालत ने प्राधिकरण के निर्णय को सही माना है. फिलहाल अपोलो सर्कस और ग्रेट गोल्डन सकर्स का मामला अदालत में विचाराधीन है लेकिन इस दौरान वे हाथियों को अपने सर्कस में नहीं रख सकते हैं.

सदस्य सचिव ने कहा कि जिन हाथियों को सर्कस से निकाला गया है उनका पुनर्वास राज्यों के मुख्य वन्यजीन वार्डनों के जिम्मे है. प्राधिकरण ने ग्रेट रॉयल, राइनो, मूनलाइट, राजकमल, फेमस, ओलंपिक, ग्रेट जेमिनी, जंबो, जेमिनी, अपोलो, ग्रेट गोल्डन, अजंता, नटराज, कोहिनूर, एंपायर, ग्रेट रामायण, ग्रेट बांबे, ग्रेट अपोलो, राजमहल, जमुना, अमर, रैंबो तथा एसियाड सर्कस की मान्यता रद्द की है.

सर्कस मालिकों का दावा है कि वह हाथियों को प्रदर्शन के लिए उपयोग नहीं करते हैं बल्कि उन्हें शैक्षिक मकसद के लिए रखा है. प्राधिकरण का कहना है कि सर्कस संचालकों को हाथियों की स्थिति में सुधार के लिए कई साल दिये गये लेकिन उसमें कोई सुधार नहीं हुआ.


 

वार्ता


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