नीलामी के बाद लीज की शर्तें नहीं बदल सकती सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार प्लॉट की नीलामी होने के बाद सरकार लीज की शर्तों में बदलाव नहीं कर सकती.
सुप्रीम कोर्ट |
नीलामी की प्रक्रिया के समय बताई गई शर्तें लागू करना सरकार तथा उसकी एजेंसियों का दायित्व है. सुप्रीम कोर्ट ने जब्त की गई बयाने की रकम नौ प्रतिशत ब्याज सहित निवेशक को वापस करने का आदेश दिया.
जस्टिस राजेश कुमार अग्रवाल और अभय मनोहर सप्रे की बेंच ने कहा कि बोली लगाने के लिए दिए गए विज्ञापन में बताई गई शतोर्ं का निवेशक ने पालन किया. उसने बयाने की रकम के अलावा नीलामी में सफल होने पर उसी दिन एक चौथाई रकम जमा कर दी. नीलामी समाप्त होने के कुछ दिन बाद उसे लीज रेंट जमा करने का आदेश दिया जो विज्ञापन में नहीं थी. भोपाल विकास प्राधिकरण ने नीलामी के बाद नई शतेर्ं जोड़ दीं और निवेशक सुरेश कुमार वाधवा से कहा गया कि वह इन शतोर्ं के अनुसार रकम जमा करें. वाधवा को नई शतेर्ं मंजूर नहीं थीं. लिहाजा उसने अपनी रकम वापस मांगी जो जायज थी. अदालत ने कहा कि सरकारी एजेंसी से ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है जो इस केस में दिखाई नहीं देती. सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार पर दस हजार रुपए जुर्माना भी लगाया.
वाधवा ने भोपाल के महावीर नगर की अरेरा कलोनी में 2880 वर्ग फुट का एक प्लॉट जनवरी 1996 में खरीदा था. वाधवा ने सबसे अधिक बोली लगाई और उसे 53 लाख 80 हजार रुपए में प्लॉट आवंटित कर दिया गया. बोली में भाग लेने के लिए तीन लाख रुपए का ड्राफ्ट जमा किया जा चुका था. नीलामी में सफल होने पर एक चौथाई राशि जमा करना जरूरी था. लिहाजा वाधवा ने दस लाख 45 हजार रुपए का चेक भी जमा कर दिया.
वाधवा को 25 जनवरी, 1996 को प्राधिकरण का एक पत्र मिला. जिसमें कहा गया था कि साढ़े सात प्रतिशत की दर से लीज रेंट जमा करना होगा और यदि दस साल का लीज रेंट एकसाथ जमा कर दिया जाता है तो 20 साल के किराए में छूट दी जाएगी. कुछ और नई शतेंर्ं भी जोड़ दी गई थीं. प्राधिकरण ने यह कहकर बयाने की रकम जब्त कर ली कि निवेशक ने शतोर्ं का पालन नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नीलामी की शतोर्ं का उल्लंघन वाधवा ने नहीं बल्कि सरकार ने किया. विज्ञापन में सारी शतोर्ं का उल्लेख होना चाहिए था ताकि उसी के आधार पर लोग बोली लगाने आएं.
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