विदेशी अदालत भारतीय के तलाक पर फैसला नहीं दे सकती : उच्च न्यायालय

Last Updated 20 Aug 2017 03:30:15 PM IST

बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि विदेशी अदालत को उस दंपत्ति के वैवाहिक मामलों पर फैसला देने का अधिकार नहीं है जो भारत का निवासी हो और जिसकी शादी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हुई हो चाहे वे शादी के समय विदेश में ही क्यों ना रह रहे हों.


(फाइल फोटो

न्यायमूर्तिए एस ओका और न्यायमूर्तिअनुजा प्रभुदेसाई की खंडपीठ ने गत सप्ताह दुबई की एक अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें वहां रह रहे एक भारतीय व्यक्ति की तलाक याचिका को मंजूरी दी गई थी.
     
उच्च न्यायालय व्यक्ति की पत्नी द्वारा दायर अपील (यचिका) पर सुनवाई कर रहा था जिसमें मुंबई की एक परिवार अदालत द्वारा दिए आदेश को चुनौती दी गई. परिवार अदालत ने उसकी अपने और अपने दो बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने वाली याचिका खारिज कर दी थी.
     
परिवार अदालत ने उसकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि दुबई की अदालत ने पहले ही इस मामले पर फैसला सुना दिया है और पति-पत्नी को तलाक की मंजूरी दे दी है.
     
बहरहाल, उच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद कहा कि दोनों पक्ष (पति और पत्नी) भारतीय नागरिक हैं और पति के इस दावे को पुख्ता करने वाला कोई दस्तावेज नहीं है कि वे दुबई के निवासी हैं.


     
पीठ ने कहा, इन परिस्थितियों के तहत, दुबई की अदालत याचिकाकर्ता (पत्नी) और प्रतिवादी (पति) के बीच वैवाहिक विवाद पर फैसला करने के लिए सक्षम न्यायालय नहीं है. 
     
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में दोनों पक्ष भारतीय नागरिक हैं और जन्म से हिंदू हैं. उन्होंने हिंदू वैदिक अधिकारों के अनुसार शादी की और उनकी शादी तथा तलाक का मामला हिंदू विवाद अधिनियम 1955 के तहत आता है.
     
पीठ ने कहा, इस बात में कोई विवाद नहीं है कि दुबई में अदालत को हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार याचिका पर सुनवाई करने का अधिकार नहीं है. 
     
उच्च न्यायालय ने महिला द्वारा दायर की गई इस याचिका को परिवार अदालत में भेज दिया और दोनों पक्षों को 18 सितंबर तक परिवार अदालत के समक्ष पेश होने के निर्देश दिए.

भाषा


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