जारवा के बच्चे हमेशा मोगली नहीं बने रहना चाहते,पढ़ना चाहते हैं
अंडमान द्वीप के सबसे पुराने आदिवासी जारवा कबीले के बच्चे जंगली और आदिम दुनिया से निकल कर लिखना-पढ़ना चाहते हैं.
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आसपास के दूसरे गावों में स्थित स्कूलों में कुछ जारवा बच्चे जाकर यूं ही बड़ी ही ठिठाई से बैठ जाते हैं और हिन्दी गाना गाते हैं, जिससे उनमें शिक्षा के प्रति झुकाव का भाव पता चलता है और यह भी साबित होता है कि वे समाज की मुख्य धारा में आने के लिए कितना बेचैन हैं.
अंडमान-निकोबार के लोकसभा सांसद विष्णुपद राय ने राष्ट्रीय सहारा से खास बातचीत में जारवा बच्चों के इस रुझान के बारे में बताया.
उन्होंने कहा कि उन्होंने कितनी ही बार जारवा लोगों को समाज के मुख्य धारा में लाने की पहल केन्द्र सरकार और राज्य के केन्द्र शासित सरकार से की है. लेकिन उनकी बात की अनसुनी की जाती है.
राय कहते हैं कि अगर जारवा जनजाति को बचाना है तो उसे शिक्षा देनी होगी और समाज की मुख्य धारा में लाना ही होगा. वह कहते हैं कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के अगर दूसरी जनजातियां और आदिवासी कबीले समाज के मुख्य धारा में आकर सभ्य जीवन जी रहे हैं तो जारवा क्यों नहीं !
जारवा आदिवासियों को बहुत ही करीब से देखने-सुनने और उनके बीच जाने वाले भाजपा सांसद विष्णुपद राय की बातों में दम है. ऐसा क्यों है कि सरकार जारवा को जंगली और असभ्य ही रहने देना चाहती है ? इसमें सरकार का क्या फायदा है?
राय कहते हैं कि जारवा के संरक्षण के नाम पर कुछ एनजीओ वर्षो से अंडमान में काम कर रहे हैं और अच्छी खासी धनराशि सरकार से प्राप्त कर रही हैं. एक संस्था तो सीधे केन्द्र सरकार के नियंतण्रमें है.
उन्होंने कहा कि यह संस्थाएं ही नहीं चाहती कि जारवा समाज की मुख्य धारा में आए क्योंकि जारवा अगर मुख्यधारा में आ गया तो इनकी दुकानदारी बन्द हो जाएगी.
राय कहते हैं कि अगर अंडमाननिको बार केन्द्र शासित राज्य नहीं होता और वहां विधानसभा होती तो जाहिर है जारवा की आवाज भी विधानसभा में गूंजती.
लेकिन आज उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. यह साजिश है उनको जंगली और असभ्य बनाए रखने की. उन्होंने कहा कि जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि जारवा अगर दूसरे समाज के सम्पर्क में आया तो उसे इन्फेक्शन हो जाएगा, उनकी बातों में दम नहीं है.
अगर ऐसा होता तो अंडमान-निकोबार के दूसरे जनजातीय और आदिवासी लोग समाज की मुख्य धारा में नहीं होते और वे भी जारवा लोगों की तरह जंगली और असभ्य ही होते.
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