शायर के साथ दार्शनिक व राजनीतिज्ञ भी थे इकब&#

Last Updated 21 Apr 2009 03:30:46 PM IST


पुण्यतिथि 21 अप्रैल पर विशेष भारत की आजादी के आंदोलन के दौरान सारे जहां से अच्छा जैसी लोकप्रिय नज्म लिख कर बाद में पाकिस्तान के गठन के शुरूआती पैरोकार रहे डॉ सर मोहम्मद अल्लामा इकबाल सिर्फ शायर हीं नहीं बल्कि एक प्रखर दार्शनिक और राजनीतिज्ञ भी थे। इकबाल उर्दू शायरी में एक दार्शनिक शायर थे जिन्होंने न केवल आधुनिक मुद्दों बल्कि धार्मिक विषयों पर भी विस्तृत चिंतन किया। इस मामले में जब उन्होंने शिकवा नामक लंबी रचना लिखी तो कट्टरपंथी मुल्ला मौलवियों में खलबली मच गयी। इसके बाद उनकी जवाबी शिकवा आयी जिससे उन्होंने अपने शिकवों के जवाब तलाशे। पंजाब के सियालकोट में नौ नवंबर 1876 में जन्मे इकबाल अपने कालेज के दिनों से ही लेखन की ओर प्रवृत्त हो गये थे। इकबाल ने अपने कालेज के दिनों में आधुनिक दर्शनशास्त्र जमकर पढ़ा जिससे उन्हें पूर्व एवं पश्चिम के दर्शन को समझने में मदद मिली। उर्दू में लिखी उनकी पहली पुस्तक 1903 में आयी और दो साल बाद उन्होंने लोकप्रिय गीत तराना-ए-हिन्द लिखा। इसके बाद इकबाल ने यूरोप जाकर पढ़ाई की। यूरोप प्रवास के दौरान इकबाल ने फारसी शायरी में हाथ आजमाये। इसी समय इकबाल का राजनीति से भी जुड़ाव शुरू हो गया। उन्हें आल इंडिया मुस्लिम लीग की ब्रिटिश इकाई की कार्यकारी परिषद में चुना गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोणीमल कालेज में उर्दू के प्राध्यापक सैयद मोहम्मद याहया सबा ने कहा कि इकबाल उर्दू के ऐसे शायर थे जिन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता का हमेशा समर्थन किया था। उनकी शायरी को मुल्ला और मौलवियों ने कभी पसंद नहीं किया क्योंकि वह कट्टरपंथ के विरोधी थे। इकबाल के बारे में तुर्की में कल से हो रहे दो दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने जा रहे सबा ने बताया कि इकबाल सही मायनों में प्रेम के शायर हैं। उन्होंने लिखा भी है शक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में है धरती के वासियों की मुक्ति भी प्रीत में है। सबा ने कहा कि इकबाल ने कभी देश के विभाजन का समर्थन नहीं किया था। उन्होंने हमेशा स्वायत्तता की बात की थी। उर्दू और फारसी के बेहद लोकप्रिय शायर इकबाल ने 1926 में लाहौर से पंजाब लेजिस्लेटिव असेम्बली का चुनाव जीता था। वह दो बार मुस्लिम लीग के अध्यक्ष भी चुने गये थे। उन्होंने मुस्लिम लीग के लिए धन एकत्र करने के मकसद से यूरोप और पश्चिम एशिया के कई दौरे किये थे। इकबाल के पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना से भी काफी घनिष्ठ संबंध थे। वह मानते थे कि जिन्ना ही ऐसे व्यक्ति हैं जो पाकिस्तान के गठन के स्वप्न को साकार कर सकते हैं। अंतत: इकबाल की यह उम्मीद पूरी हुई। उर्दू के इस महान शायर का निधन 21 अपैल 1938 को लाहौर में हुआ। उनको लाहौर की बादशाही मस्जिद और लाहौर किले के बीच दफनाया गया। उनकी कब्र पर पाक सरकार का एक संतरी पहरेदारी करता है। लाहौर के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम भी इकबाल पर ही रखा गया है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment