जानिए, कैसे शरीर के हिसाब से रूप बदलता है कोरोना वायरस

Last Updated 28 Jul 2020 10:06:59 AM IST

कोरोना वायरस के आरएनए में लगातार बदलाव हो रहा है। शरीर में प्रवेश कर जाने पर यह वायरस किस तरह रूप बदलता है‚ इस बाबत हुई रिसर्च में कुछ नई बातें पता चली हैं।


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक ड़ॉ. रणदीप गुलेरिया के अनुसार कोरोना वायरस के जरिए फैलने वाला ताजा संक्रमण जिसे हम सभी सार्स कोविड–19 के रूप में जानते हैं‚ लगातार अपने प्रारूप में बदलाव कर रहा है। किसी भी वायरस में लगातार इस तरह के बदलाव होना वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों के लिए नई चुनौती है।

कोरोना के बन चुके हैं 8 स्ट्रेन्सः भौगोलिक क्षेत्र‚ जलवायु आदि में परिवर्तन के साथ ही कोरोना वायरस में भी लगातार म्यूटेशन (बदलाव) होते रहे। अभी तक इसकी 8 स्ट्रेन्स के बारे में ही पुख्ता जानकारी है। किसी भी ऑर्गेनिज्म में म्यूटेशन होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसे कोई भी ऑर्गेनिज्म खुद ना तो शुरू कर सकता है और ना ही रोक सकता है। यदि वायरस में होने वाले यह बदलाव उसकी लाइफ के लिए सकारात्मक होते हैं तो उस वायरस की वह स्ट्रेन जीवित रहती है और आगे बढ़ती रहती है। यानी अधिक से अधिक संक्रमण फैलाती है।

कोरोना के बारे में नई जानकारीः हाल ही एक स्टडी में कोरोना के बारे में एक नई जानकारी सामने आई है। सार्स कोविड–19 वायरस को कमजोर करने का काम इंसान के शरीर की जो सेल्स करती हैं‚ वह एक तरह के प्रोटीन से निर्मित होती हैं। यह बात सामने आई है कि कोरोना वायरस इंसान के शरीर में प्रवेश करने के बाद काफी हद तक इस प्रोटीन के अनुसार रिऐक्शन करता है। मतलब‚ अलग–अलग इंसानों के शरीर में पहुंचकर कोरोना वायरस अलग तरह से रिऐक्ट कर रहा है। इस अलग–अलग रिऐक्शन का संबंध उस प्रोटीन से हो सकता है‚ जो हमारे शरीर में इसे मारने का काम करता है। क्योंकि यह वायरस उस प्रोटीन से ही दिशा–निर्देश भी लेता है। यानी वह प्रोटीन कैसे काम कर रहा है‚ उसी के अनुसार इस वायरस का रिऐक्शन निर्धारित होता है।

‘इंडि़यन मॉलिक्यूलर बायॉलजी एंड़ इवॉल्यूशन ‘नामक जर्नल में प्रकाशित स्टड़ी में यह खुलासा किया गया है। शोध से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना के साथ ही उन्होंने ऐसे छह हजार से अधिक ऑर्गेनिज्म पर स्टडी की है‚ जिनमें म्यूटेशन हुआ है।

घातक नहीं होता वायरसः किसी वायरस में म्यूटेशन होने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि वह और अधिक जानलेवा (लीथल) होता जा रहा है। इसलिए इसके म्यूटेशन से डरने की जरूरत नहीं होती। इस म्यूटेशन के कारण सबसे अधिक दिक्कत इस तरह के वायरस के लिए टीका तैयार करने में होती है। क्योंकि हर जगह की जलवायु अलग होती है‚ उसके हिसाब से दुनियाभर के लिए एक ऐसी वैक्सीन तैयार करना‚ जो हर जगह कारगर हो‚ अपने आपमें एक बड़ी चुनौती है।

सहारा न्यूज़ ब्यूरो
नई दिल्ली


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