दिल्ली विश्व पुस्तक मेला: नई पीढ़ी खरीद रही फ़ैज अहमद फ़ैज की किताबें

Last Updated 06 Jan 2020 10:32:25 AM IST

चार जनवरी से शुरू हुए 28 वें पुस्तक मेले में नई पीढ़ी फ़ैज की किताबें खरीदने की होड़ लगी हुई है।


नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में पिछले 20 दिनों से चल रहे देशव्यापी आंदोलन के दौरान कानपुर आईआईटी में पाकिस्तान के इंकलाबी शायर फ़ैज अहमद फ़ैज की ना्म ‘हम भी देखेंगे’  को लेकर उठे विवाद के कारण यह ना्म सोशल मीडिया में इतना वायरल हुआ कि नई पीढ़ी विश्व पुस्तक मेले में फ़ैज की किताबें खरीदने लगी है।
चार जनवरी से शुरू हुए 28 वें पुस्तक मेले में सभी बड़े एवं महत्व पूर्ण हिंदी प्रकाशकों ने फ़ैज की किताबें अपने स्टाल पर रखीं है लेकिन अभी भी हिंदी में फ़ैज की कोई जीवनी नही है और फ़ैज की रचनावली नहीं छपी है।      

दिल्ली के सबसे पुराने हिंदी प्रकाशकों में से एक राजपाल एंड संस ने 1960 के करीब पहली बार फ़ैज की किताब हिंदी में प्रकाशित की थी तब तक फ़ैज की रचनाएं हिंदी में नही आई थी। साठ सालों में फ़ैज गालिब के बाद भारत मे सबसे लोकप्रिय शायर हो गए।     
     
राजपाल एंड संस की मालिक मीरा जौहरी ने कहा कि 1960 के आसपास मेरे पिता विनाथ मल्हो ने सबसे पहले फ़ैज को हिंदी में छापा। दरअसल उर्दू के लोकप्रिय शायरों की एक श्रृंखला शुरू की उन्होंने और उसके संपादक प्रकाश पंडित थे जिनका उर्दू के तमाम बड़े शायरों से निजी रिश्ते थे। यह श्रृंखला बहुत लोकप्रिय हुई और तब हर साल इसके  नए संस्करण निकले। फ़ैा की किताब के अनगिनत संस्करण निकले।

उन्होंने बताया कि उनके चाचा दीना नाथ मल्हो ने हिन्द पैकेट बुक्स की शुरुवात की और तब एक रुपए में पेपर बैक में किताबें बेचनी शुरू कर दीं।

हिन्द पॉकेट बुक्स के गिरिश गोयल ने बताया कि वे 73 में यहाँ नौकरी पर आए थे। उस समय एक रुपये में फ़ैज की शायरी की किताब मिलती थी। जाहिर है 1970 से पहले दीनानाथ मल्हो जी ने यह किताब छपी थी। राजपाल ने हार्ड बाउंड में छापी तो हिन्द पॉकेट बुक्स ने पेपर बैक में। इस तरह फ़ैज के भारत मे लोकप्रिय होने का किस्सा शुरू हुआ और देखते देखते फ़ैा पाकिस्तान में ही नही भारत मे भी  मशहूर हो गए। अब तो फ़ैा दुनिया भर में मशहूर हैं। उनकी जन्म शती लंदन में बड़े पैमाने पर मनाई गई।                                         
राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन एवं नई किताब ने भी हिंदी में फ़ैज की किताबें छापी लेकिन कापी  राइट के कारण उनकी रचनावली नही छप सकी।                   

राजकमल प्रकाशन के अशोक माहेरी ने बताया कि राजकमल प्रकाशन से उनकी चार किताबों पहले से छपी हुई हैं। फ़ैज, सारे सुखन हमारे, प्रतिनिधि कवितायेँ, और  मेरे दिल मेरे मुसाफिर पहले से छपी हैं। अब तीन और किताबें इस मेले में कल परसों तक आ रही हैं जिसमें से दस्ते-सबा और नक़्शे फरयादी भी शामिल है और उनकी नज्मों और गजलों का संकलन भी। पहली दोनो किताबें अपने मूल रूप में पाठकों के लिए उपलब्ध होंगी। इनका संपादन चर्चित लेखक अब्दुल बिश्मिल्लाह और पत्रकार धर्मेंद्र सुशांत ने किया है।        

             

वाणी प्रकाशन के अरुण माहेरी ने बताया कि जाने माने शायर शहरयार के संपादन में हमने फ़ैज पर किताब कुछ साल पहले छपी थी। उसके चार संस्करण हो गए। फ़ैज की रचनावली हम छापना चाहते है लेकिन उनकी बेटी हमें कॉपी राइट दे तब।

उर्दू के एम आर पब्लिशर के अब्दुस समद देहलवी ने बताया कि हमने फ़ैज की उर्दू में रचनावली 632 पेज की छापी है। फ़ैज साहब के जीवन काल मे ही पाकिस्तान में छप चुकी  थी। हमने नुक्शा ए हाय वफ़ा के नाम से छापी है।

मेले में कई पाठकों ने बताया कि कानपुर आईआईटी की घटना और सोशल मीडिया पर फ़ैज साहब की ना्म को हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी बताए जाने से फ़ैज की शायरी को उन्होंने पढ़ना शुरू किया। सोशल मीडिया पर फ़ैज की ना्म हम देखेंगे इतनी वायरल हुई कि गार्गी प्रकाशन के दिगम्बर ने उसका भोजपुरी अनुवाद किया तो मुम्बई के कवि बोधिसत्व ने हिंदी अनुवाद किया। यही नहीं कहानीकार विवेक मिश्र ने उस ना्म की तर्ज पर एक ना्म लिखी तो पत्रकार मयंक सक्सेना ने उसकी पैरोडी बनाकर हम फेकेंगे लिखा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उस ना्म को रेडियो जॉकी साइमा ने भी गया जिसका वीडियो बहुत वायरल हुआ।

 

वार्ता
नई दिल्ली


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