सॉल्ट रूम थेरेपी: सांस से जुड़ी समस्याओं के लिए कारगार
सॉल्ट रूम थेरेपी एक पुरानी थेरपी है, जिसका विदेशों में काफी चलन है। इस थेरेपी से पुराने अस्थमा मरीजों के लिए रामबाण इलाज किया जा रहा है।
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जब 1843 में पॉलिश हेल्थ अधिकारियों ने देखा कि पॉलैंड में नमक की खदानों में काम करने वाले मजदूर सांस से जुड़ी उन बीमारियां से ग्रस्त नहीं हुए जिनसे आम लोग ग्रस्त थे। इसके बाद पूर्वी यूरोप में जल्द ही हेलो थेरेपी यानि सॉल्ट रूम थेरेपी फेमस हो गई। इस थेरेपी से पुराने अस्थमा मरीजों के लिए रामबाण इलाज किया जा रहा है। क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, साइनोसाइटिस, खांसी, सोराइसिस व एग्जिमा आदि का इलाज संभव हैं। नमक बैक्टेरिया नाशक, होता है इसलिए सांस से अंदर पहुंचे नमक के कणों से हर तरह के इंफेक्शन से राहत मिलनी शुरू हो जाती है। यह थेरेपी ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी हानिकारक नहीं है।
कैसे काम करती है ’सॉल्टम रूम थेरेपी‘
‘सॉल्ट रूम थेरेपी’ के रूम को लगभग सात हजार किलो नमक की मदद से एक गुफा का रूप दिया गया है। यहां हेलो जेनरेटर की मदद से मरीज की बीमारी के आधार पर रूम के तमाम सॉल्ट पार्टकिल्स को नियंत्रित किया जाता है। रूम में खास तरह के नमक को उचित मात्रा में हवा में घोला जाता है और ब्रीज टॉनिक प्रो से नमक को पिघलने से रोका जाता है। एक घंटे के सेशन में मरीज की सांस से नमक कण फेफड़े तक पहुंचते हैं। वेंटिलेटर सिस्टम मरीजों को इन्फेक्शन से बचाती है और मरीज के बाहर आते ही रूम को दोबारा बैक्टेरिया फ्री करता है। पहले सेशन से सांस की समस्या में बदलाव महसूस किया जा सकता है।
एक सेशन, एक घंटे का होता है। डॉक्टरों का दावा है कि 15 से 20 सेशन में बीमारी पूरी तरह खत्म हो जाती है। इस थेरेपी के पीछे बहुत ही सिंपल साइंस है। श्वांस नली में ऐंठन की वजह से आई सूजन को नमक कम करता है। इस थेरेपी का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक सौ में से 98 लोगों को इससे जबरदस्त फायदा मिला है।
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