वर्ल्ड गौरैया दिवस: ताकि फिर से गूंजे गौरैया की चहचहाहट

Last Updated 20 Mar 2019 11:34:37 AM IST

एक दौर में बच्चों के जुबान पर छाए रहने वाले मशहूर गीत ‘एक चिड़िया अनेक चिड़िया’ की मुख्य किरदार की चहचहाहट अब मुश्किल से ही सुनने को मिलती है।


ताकि फिर से गूंजे गौरैया की चहचहाहट (फाइल फोटो)

घर-आंगन में दिनभर दाना चुगने वाली नन्हीं गौरैया अब भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में तेजी से गायब होती जा रही है। विज्ञान और विकास ने जहां एक तरफ हमें कई सुविधाएं दी हैं वही कई वन्य और पक्षी प्रजातियों के लिए संकट भी खड़ा किया है।

हरे-भरे जंगलों को काटकर कंकरीट के जंगल अब हर जगह तेजी से फैलते जा रहे हैं। इससे गौरैया के प्राकृतिक आवास तेजी से खत्म हो रहे हैं और पिछले कुछ सालों में गौरैया की संख्या रहस्यमय तरीके से 90 फीसद तक कम हो गई है। दस-बीस साल पहले तक गौरैया के झुंड सार्वजनिक स्थलों पर भी देखे जा सकते थे। लेकिन अब गौरैया देखने को कम ही मिलती है। अगर अब भी मिलकर गौरैया को बचाने के प्रयास न किए गए तो गौरैया केवल चित्रों में ही देखने को मिलेगी।

अलग-अलग नामों से जानी जाती है गौरैया-: गौरैया को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। गुजरात में चकली, मराठी में चिमनी, पंजाब में चिड़ी, जम्मू तथा कश्मीर में चेर, तमिलनाडु तथा केरल में कूरूवी, पश्चिम बंगाल में चराई पाखी, तथा सिंधी भाषा में झिरकी कहा जाता है।

गौरैया के गायब होने का रहस्य : विकास के  दौर में पक्के मकान, लुप्त होते बाग-बगीचे, खेतों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग तथा भोज्य-पदार्थ स्रेतों की उपलब्धता में कमी गौरैया के लुप्त होने के  मुख्य कारण हैं। मोबाइल और मोबाईल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन को भी गौरैया के लिए खतरनाक बताया जाता है। गौरेया के बच्चों का भोजन शुरुआती 10-15 दिनों में सिर्फ  कीड़े-मकोड़े ही होते हैं, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं। जिससे कीटों की संख्या भी घटती जा रही है। वहीं अनाज भी जहरीले हो गए हैं। इन्हें खा कर गौरैया मौत के मुंह में समा जाती हैं।

90 फीसद तक कम हो गई है संख्या : गौरैया संरक्षक निर्मल कुमार शर्मा ने बताया कि भारत में गौरैया की संख्या में करीब 85 से 90 फीसद तक की कमी आ गई है। सबसे हैरानी की बात यह है कि यह कमी ग्रामीण और शहरी, दोनों ही क्षेत्रों में हुई है।

गौरैया की प्रजातियां : विश्व भर में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 5 भारत में देखने को मिलती हैं। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो।

राज्य पक्षी बनने के बाद भी नहीं सुधरे हालात : गौरैया के जीवन संकट को देखते हुए वर्ष 2012 में उसे दिल्ली के राज्य पक्षी का दर्जा भी दिया गया था, पर हालात अभी भी जस के तस ही हैं। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सहयोग से बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी सिटीजन स्पैरो के सर्वेक्षण में पता चला कि दिल्ली और एनसीआर में वर्ष 2005 से गौरैया की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है।

ऐसे करें प्रयास: गौरैया को बचाने के लिए गौरैया संरक्षक निर्मल कुमार शर्मा ने कुछ उपाय सुक्षाए हैं। उन्होंने कहा कि मैंने अपने घर की छत पर करीब 500 घोसलें लगाएं हैं जिसमें करीब 700 गौरैया का बसेरा है। उनके बैठने के लिए मैने सूखे पेड़ की टहनियों से पेड़नुमा आकृति भी बनाई है। साथ ही खाने-पीने का इंतजाम किया है। इसी तरह लोगों को भी अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए, जहां गौरैया आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से भी सुरक्षित रह सकें। सभी को चाहिए कि वो अपने घर में घोसला बनाएं और खाने के लिए चावल के दाने और पीने के लिए साफ पानी रखें। बरामदे या किसी पेड़ पर किसी पतली छड़ी या तार से आप इनके बैठने का अड्डा भी बना सकते हैं।

विदेशों में भी गायब गौरैया
ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में भी इनकी संख्या तेजी से गिर रही है। नीदरलैंड में तो इन्हें दरुलभ प्रजाति के वर्ग में रखा गया है। भारत में गौरैया को बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने गौरैया को अपना राजपक्षी भी घोषित कर दिया था।
 

 

प्रभा किरन/एसएनबी
नई दिल्ली


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