गांवों तक में दौना पत्तल पर अस्तित्व का संकट
बदलती जीवनशैली के साथ बहुत कुछ बदल गया है. शादी-ब्याह में दशकों से चली आ रही पारंपरिक दौना और पत्तल आदि भी इससे अछूते नहीं रहे हैं.
पत्तल |
शादी ब्याह समेत अन्य आयोजनों पर दावत के दौरान परोसे जाने वाले दोना और पत्तल पहले जहां धीरे-धीरे शहरों से गायब हुए और अब ग्रामीण इलाकों में भी चलन से बाहर होते जा रहे हैं. पारंपरिक दौना का स्थान अब प्लास्टिक और थर्मोकोल से बनी कटोरी-प्लेटों ने ले लिया है.
प्लास्टिक और थर्मोकोल से बनी प्लेटें, कटोरियां और गिलास न केवल प्रदूषण बढ़ा रहे हैं बल्कि इनके कारण दोना बनाने के धंधे से जुड़े लोगों के समक्ष बेरोजगारी का संकट उत्पन्न हो गया है. हालांकि दौना व पत्तल को उपयोग करने के बाद फेंके जाने पर स्वत: नष्ट हो जाते थे.
पत्तों से बने दोना पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. दोना बनाने वाले पटना सिटी के निवासी राजू सिंह ने बताया कि पहले उनका पूरा परिवार दोना बनाने में व्यस्त रहता था.
इससे इतनी कमाई हो जाती थी कि साल भर गुजारा आसानी से चल जाता था लेकिन दौना के घटते चलन के कारण अब खुद का भी खर्च निकाल पाना काफी मुश्किल हो गया है.
दोना बनाने के कारोबार से दो दशक तक जुड़े रहे कमलेश का कहना है कि दोना-पत्तल की लगातार घटती मांग ने उन्होंने दूसरा व्यवसाय करने को मजबूर कर दिया है.
Tweet |