जल-जमीन बचाने के लिए गरीब देशों को मिलेगा धन
संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (कॉप 15) में जैव विविधता की रक्षा के लिए ऐतिहासिक समझौते पर मुहर लग गई।
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कनाडा के मांट्रियल शहर में सोमवार तड़के सदस्य देशों के बीच जैव विविधता की रक्षा के लिए विकासशील और गरीब देशों को हर साल 30 अरब डॉलर की वित्तीय मदद पर सहमति बनी।
चार साल तक चली जटिल वार्ता के बाद भारत सहित लगभग 200 देशों ने सोमवार को कनाडा के मॉन्ट्रियल में जैव विविधता के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र सीओपी15 शिखर सम्मेलन में पेरिस शैली के एक ऐतिहासिक समझौते को मंजूरी दे दी।
समझौते को सम्मेलन के अंतिम सत्र में गहन चर्चा के बाद स्वीकृति दी गई। समझौता दुनिया में भूमि व जल के संरक्षण और विकासशील देशों को जैव विविधता को बचाने के लिए धन मुहैया कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। एकत्रित प्रतिनिधियों की जोरदार तालियों के बीच, सीओपी15 जैव विविधता शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष एवं चीनी पर्यावरण मंत्री हुआंग रुनकिउ ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल समझौते को अपनाने की घोषणा की। यह सम्मेलन सात दिसम्बर को शुरू हुआ था।
अध्यक्ष ने कांगो के अंतिम मिनट के कदम को नज़रअंदाज़ करने के लिए तरकीब से काम किया, जिसने मसौदा पाठ का समर्थन करने से इनकार कर दिया था और समझौते के हिस्से के रूप में विकासशील देशों के लिए अधिक धन की मांग की थी। इस समझौते का उद्देश्य भूमि, महासागरों और प्रजातियों को प्रदूषण, क्षरण तथा जलवायु परिवर्तन से बचाना है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (एलपीआर) 2022 के अनुसार, निगरानी वाली वन्यजीव आबादी (स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों, सरीसृप और मछलियों) की संख्या में 1970 के बाद से औसतन 69 प्रतिशत की विनाशकारी गिरावट देखी गई है।
वार्ताओं में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक विस्तर पर और विशेष रूप से विकासशील देशों में संरक्षण प्रयासों का समर्थन करने के लिए वित्त पैकेज था। समझौते में 2030 तक सभी स्रेतों से वित्तीय संसाधनों के स्तर को उत्तरोत्तर बढ़ाने और प्रतिवर्ष 200 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता जताई गई है। इसकी बड़ी उपलब्धि 2025 तक अंतरराष्ट्रीय वित्त प्रवाह में 20 अरब अमेरिकी डॉलर और 2030 तक 30 अरब अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता भी है।
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