चीन, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया

Last Updated 12 Nov 2021 05:50:35 AM IST

दुनिया के शीर्ष कार्बन उत्सर्जक देश चीन और अमेरिका बुधवार को जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाले उत्सर्जन पर लगाम कसने के लिए सहयोग बढ़ाने तथा कार्रवाई तेज करने को सहमत हो गए हैं। उन्होंने अपने अन्य विवादों को लेकर तनाव के बीच वैश्विक तापमान में वृद्धि पर परस्पर प्रयास करने का संकेत दिया है।


ग्लासगो : सीओपी 26 यूएन जलवायु सम्मेलन स्थल पर एकत्र विभिन्न देशों के प्रतिनिधि।

ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में संवाददाता सम्मेलनों में चीन के जलवायु राजदूत शी झेनहुआ और उनके अमेरिकी समकक्ष जॉन कैरी ने कहा कि दोनों देश जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से जरूरी उत्सर्जन कटौती को तेजी से पूरा करने के लिए मिलकर काम करेंगे। शी ने संवाददाताओं से कहा कि यह न केवल हमारे दोनों देशों के लिए फायदेमंद है बल्कि पूरी दुनिया के लिए है। दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियों चीन            और अमेरिका को विशेष अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों और वचनबद्धताओं का निर्वाह करना चाहिए। कैरी ने कहा कि जो कदम हम उठा रहे हैं, वह उन सवालों का जवाब दे सकते हैं जो लोगों के मन में चीन की काम करने की गति को लेकर हैं।


चीन ने भी ग्रीनहाउस गैस मीथेन पर रोकथाम के बाइडन प्रशासन के प्रयासों के बाद मीथेन के रिसाव पर रोकथाम के लिए पहली बार सहमति जताई है। बीजिंग और वाशिंगटन उत्सर्जन कम करने के लिए प्रौद्योगिकी साझा करने पर सहमत हुए हैं। पेरिस में सरकारें वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल के बाद दो डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने के लिए संयुक्त रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती के लिए तैयार हुई हैं। शी ने कहा कि दोनों पक्ष मानते हैं कि जलवायु प्रदूषण को कम करने के वैश्विक प्रयासों और पेरिस समझौते के लक्ष्यों के बीच अभी अंतराल है। अमेरिका और चीन के बीच 2014 में एक द्विपक्षीय समझौते से इसके अगले साल ऐतिहासिक पेरिस समझौते की रूपरेखा तैयार करने में बड़ी मदद मिली। ट्रंप प्रशासन ने समझौते से अमेरिका को हटा लिया और सहयोग रुक गया। बाइडन प्रशासन ने फिर से अमेरिका को समझौते में शामिल किया है लेकिन उसका साइबर सुरक्षा, मानवाधिकारों तथा चीन के क्षेत्रीय दावों जैसे अन्य विषयों को लेकर चीन के साथ गतिरोध रहा है।

सऊदी अरब ने ग्लासगो में जलवायु वार्ता में बाधक की भूमिका से इनकार किया

संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में सऊदी अरब द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से बाधा डालने के बार-बार लग रहे आरोपों पर देश के ऊर्जा मंत्री ने अचंभा जताया है।
ग्लासगो में वार्ता में इस सप्ताह शहजादा अब्दुलअजीज बिन सलमान अल सऊद ने कहा, ‘आप जो सुन रहे हैं वह एक गलत इल्जाम है।’ वह उन पत्रकारों को जवाब दे रहे थे जो उन आरोपों पर प्रतिक्रिया करने के लिए दबाव डाल रहे थे कि सऊदी अरब के वार्ताकार जलवायु संबंधी उन कदमों को अवरुद्ध करने के लिए काम कर रहे हैं जिससे तेल की मांग को खतरा हो सकता है।
शहजादा अब्दुलअजीज ने कहा संयुक्त राष्ट्र वार्ता के प्रमुखों और अन्य के साथ ‘हम अच्छे से काम कर रहे हैं।’ दुनियाभर में जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में कटौती और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अगले कदमों पर सप्ताहांत की समय सीमा खत्म होने से पहले सर्वसम्मति बनाने के लिए लगभग 200 देशों के वार्ताकार काम कर रहे हैं। जलवायु वार्ता में सऊदी अरब की भागीदारी अपने आप में असंगत लग सकती है क्योंकि वह एक ऐसा देश है जो तेल के कारण समृद्ध और शक्तिशाली बन गया है और वार्ता में मुख्य मुद्दा तेल और अन्य जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करना है। देश में उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों में शामिल होने की प्रतिबद्धता जताते हुए, सऊदी नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक मांग बनी रहती है, तब तक वे अपने तेल को निकालने और बेचने का इरादा रखते हैं। ग्लासगो में सऊदी अरब के दल ने बातचीत छोड़ने के आह्वान से लेकर कई अन्य प्रस्ताव रखे हैं जिस पर जलवायु वार्ता के जानकारों का आरोप है कि वह कोयले, गैस और तेल से दुनिया को दूर करने के लिए कड़े कदमों पर समझौते को अवरुद्ध करने के उद्देश्य से देश के गुटों को एक दूसरे के खिलाफ खेलने के जटिल प्रयास कर रहा है।
सऊदी अरब पर लंबे समय से जलवायु वार्ता को बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है, और इस साल यह निजी तौर पर बोलने वाले वार्ताकारों और सार्वजनिक रूप से राय रखने वाले पर्यवेक्षकों द्वारा अलग-थलग किया जाने वाले प्रमुख देश है। रूस और ऑस्ट्रेलिया भी वार्ता में सऊदी अरब के साथ उन देशों के रूप में जुड़े हुए हैं जो अपने भविष्य को कोयले, प्राकृतिक गैस या तेल पर निर्भर मानते हैं, और ऐसे ग्लासगो जलवायु समझौते के लिए काम कर रहे हैं जो इसे खतरा नहीं पहुंचाए। अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के प्रयासों के बावजूद, सऊदी अरब के राजस्व में आधे से अधिक योगदान तेल का है, जो राज्य और शाही परिवार को बचाए और स्थिर रखता है।

एपी
ग्लासगो


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