भारतीय शोधकर्ताओं ने कोरोना टेस्ट के लिए बनाया सस्ता, विद्युतरहित सेंट्रीफ्यूज

Last Updated 05 Jul 2020 02:51:53 AM IST

एक भारतीय वैज्ञानिक के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने एक सस्ता, विद्युत रहित सेंट्रीफ्यूज विकसित किया है जो नए कोरोना वायरस की जांच के लिए किसी मरीज की लार के नमूनों से घटकों को अलग कर सकता है।


भारतीय शोधकर्ताओं ने कोरोना टेस्ट के लिए बनाया सस्ता, विद्युतरहित सेंट्रीफ्यूज

इस खोज से दुनिया के गरीब क्षेत्रों में कोरोना के निदान की पहुंच बढ़ सकती है।
अमेरिका के स्टेनफोर्ड विविद्याल के मनु प्रकाश समेत वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘हैंडीफ्यूज’ उपकरण ट्यूब में रखे नमूनों को बेहद तेज गति से घुमाता है जो मरीज के लार के नमूने से वायरस के जीनोम (जीन के समूह) को अलग करने के लिए पर्याप्त है वह भी बिना विद्युत के। मेडरिक्सिव नाम के डिजिटल मंच पर प्रकाशित इस अध्ययन की अभी विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा नहीं हुई है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि सस्ते सेंट्रीफ्यूज को पहले से उपलब्ध घटकों का उपयोग करके प्रति इकाई पांच डॉलर से भी कम की लागत में तैयार किया जा सकता है। सेंट्रीफ्यूज या अपकेंद्रित्र दरअसल ऐसे उपकरण को कहते हैं जिसमें अपकेंद्री बल के इस्तेमाल से विभिन्न घनत्व के पदाथरें को अलग-अलग किया जाता है। इसी के इस्तेमाल से लार के नमूनों से कोरोना के जीनोम को अलग किया जा सकता है। यह तकनीक नैदानिक जांच से जुड़े लोगों और वैज्ञानिकों को एक त्वरित और सस्ती जांच की तकनीक उपलब्ध कराती है जिसे ‘एलएएमपी’ जांच कहते हैं। मरीज की लार के नमूनों में कोरोना वायरस के जीनोम की मौजूदगी की पहचान की जा सकती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक ‘एलएएमपी’ व्यवस्था सरल है, इसमें किसी विशेष उपकरण की जरूरत नहीं है, त्वरित है (नमूना लेने से नतीजे आने तक में करीब एक घंटे लगते हैं) और सस्ती है। जांच में जहां यह फायदे हैं वहीं वैज्ञानिकों ने कहा कि लार के नमूनों में वायरस के जीनोम की पहचान के नैदानिक तरीकों के कारण नतीजों में विभिन्नता हो सकती है।
वैज्ञानिकों ने अध्ययन में लिखा, निष्क्रिय किए गए नमूनों से प्रतिक्रिया अवरोधकों को अलग करने के लिये अपकेंद्रित्र को एक विसनीय एलएएमपी प्रवर्धन के तरीके के तौर पर दर्शाया गया है। उन्होंने कहा, कुछ मिनटों तक 2000 चक्कर प्रति मिनट (आरपीएम) की आवश्यक गति सुरक्षित तरीके से प्राप्त करने में सक्षम सेंट्रीफ्यूज में सैकड़ों डॉलर की लागत आती है और उसमें विद्युत आपूर्ति की भी आवश्यकता पड़ती है। स्टेनफोड विविद्यालय में जैव आभियांत्रिकी के प्रोफेसर प्रकाश ने कहा कि हैंडीफ्यूज से इस कमी से पार पाया जा सकता है। उनकी प्रयोगशाला पूर्व में सस्ता ‘ओरीगामी सुक्ष्मदर्शी’ बना चुकी है जिसे ‘फोल्डस्कोप’ नाम दिया गया।

भाषा
न्यूयार्क


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