अंतर में ध्यान

Last Updated 23 Jul 2022 08:21:55 AM IST

खुशी और शांति पाने के लिए इंसान तरह-तरह के प्रयास करता है।


संत राजिन्दर

ज्यादातर सभी लोग सोचते हैं कि धन-दौलत जमा करके, जायदाद इकट्ठी करके, नई-नई खोजें या अविष्कार करके, सत्ता पाकर या फिर नाम प्रसिद्धी प्राप्त करके वह इस दुनिया की हरेक खुशी पा लेंगे, लेकिन अगर हम उन लोगों की ओर देखें जिनके पास ये सब चीज़ें हैं तो हम पाएंगे कि वे लोग फिर भी दु:खी हैं।

उन्हें भी यह लगता था कि उन चीजों से उन्हें खुशी मिलेगी किंतु इस दुनिया की कोई भी चीज हमें सदा-सदा की खुशी नहीं दे सकती क्योंकि यहां की हर चीज अस्थायी है। सभी संत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि इस संसार की हर चीज जड़ता की बनी है और वह एक न एक दिन नष्ट हो जाती है किंतु हमारी आत्मा जोकि परमात्मा का अंश है वह जड़ नहीं, चेतन है और सदा-सदा रहने वाली है।

हमारी आत्मा को सच्ची खुशी तभी मिलती है जब वह पिता-परमेर से जुड़ती है। तब वह परमानंद, खुशी, प्रेम और दिव्य ज्योति से भरपूर रहती है। ध्यान-अभ्यास एक ऐसी विधि है जिसके जरिये हमारी आत्मा यह दिव्य अनुभव करती है। तब ही हम अपनी आत्मा को जान पाते हैं और प्रभु-प्रेम का अमृत पी सकते हैं। जो लोग ध्यान-अभ्यास करते हैं वह अपने आपको हर समय शांति और आनंद से भरा हुआ पाते हैं। यह ऐसी शांति है जोकि सदा-सदा हमारे साथ रहती है। हमें सिर्फ  अपना ध्यान बाहर की दुनिया से हटाकर अंतर में टिकाना है ताकि हम इसका अनुभव कर सकें।

इस समय हमारा ध्यान बाहर की दुनिया में फैला हुआ है। हम अपनी पांच इंद्रियों के द्वारा बाहरी संसार और अपने भौतिक शरीर को जान पाते हैं, लेकिन अगर हम अपने ध्यान को दो आंखों के बीच ‘शिवनेत्र’ पर एकाग्र कर लें तो हम अपनी आत्मा के खजानों का अनुभव कर पाएंगे। अंतर में ध्यान टिकाने की इस प्रक्रिया को कई नामों से पुकारा गया है जैसे ध्यान-अभ्यास, अंतर्मुख होना या प्रार्थना करना। जो लोग आंतरिक शांति का अनुभव कर लेते हैं, वो बाहरी संसार में भी शांति स्थापित करने में मददगार होते हैं। क्योंकि वो अपने अंतर में शांति प्राप्त कर बाहरी दुनिया की परेशानियों में बहुत ही शांत तरीके से व्यवहार करके उनका समाधान करते हैं और उस शांति को वे अपने चारों ओर के लोगों में भी फैलाते हैं।



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